जुबिली न्यूज़ ब्यूरो
लखनऊ। किसी मंचीय नाटक, टीवी धारावाहिक या फिर फिल्मों में दर्शकों के सामने आने वाले चरित्रों को गढ़ने में उनकी वेशभूषा भी महत्वपूर्ण होती है। वेशभूषा इस तरह डिजाइन की जानी चाहिए कि जो देश, काल, वातावरण के साथ सम्बंधित चरित्र के व्यक्तित्व को पहचानने में मददगार साबित हो। कुछ ऐसी ही बातें प्रसिद्ध रंगकर्मी ललित सिंह पोखरिया ने उन प्रतिभागियों को बताई जो आज से उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की ओर से आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत आनलाइन आयोजित निःशुल्क वेषभूषा कार्यशाला में प्रतिभाग कर रहे हैं। यह कार्यशाला 27 अगस्त तक चलेगी।
अकादमी अवार्ड से नवाजे जा चुके लेखक-रंगकर्मी ललित का स्वागत करते हुए अकादमी सचिव तरुण राज ने आजादी की लड़ाई के महानायकों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि कोविड-19 के कारण इस सत्र में भी आनलाइन कार्यशालाओं का संचालन हो पा रहा है, किन्तु सकारात्मक पहलू यह है कि आनलाइन संचालन से इनमें देश -दुनिया और प्रदेश भर के प्रतिभागियों को भाग लेकर लाभान्वित होने और अनुभव लेने का अवसर मिल जाता है।
कार्यशाला संयोजक अकादमी की नाट्य सर्वेक्षक शैलजाकांत ने बताया कि कार्यशाला के लिए करीब 160 प्रतिभागियों ने पंजीकरण कराया है। इस अवसर पर प्रशिक्षक ललित सिंह ने रंगमंच के अभिनय, दृश्यबंध इत्यादि अन्य आयामों की परिभाषा व जरूरत बताते हुए वेशभूषा परिकल्पना की बुनियादी जानकारी मंचीय नाटकों के संग कैमरों के फ्रेम के हिसाब से देते हुए उन्होंने बताया कि चिंतन, विश्लेषण, सही और गलत तय करने की क्षमता के साथ ही चरित्र की मांग के अनुरूप उसका वेश निर्धारण करना चाहिए। वेशभूषा के साथ मेक-अप, मुखौटे, विग इत्यादि पूरक का काम करते हैं।
उन्होंने कहा कि जिस तरह के कपड़े हम सामान्य जीवन में पहनते हैं, वही हमारी पहचान बन जाते हैं, ठीक वैसे ही नाटक में चरित्र की वेशभूषा उसके व्यक्तित्व का अंग बनकर प्रेक्षकों के सामने आती है। लोककलाओं और नृत्य में वेशभूषा का अत्यंत महत्व है, जबकि रंगमंच में हम केवल अभिनय को सर्वाधिक महत्व देते है जबकि वेशभूषा जैसे अन्य पक्षों को उतना महत्व नहीं देते। जो काम अभिनेता अभिनय से करता है वही काम वेशभूषा से भी किया जा सकता है। कहानी की प्रस्तुति को किरदारों की वेशभूषा, दृश्यबंध आदि को सशक्त रूप से रचकर और प्रभावशाली तथा और अधिक कलात्मक बनाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि वेशभूषा में रंगों का भी बड़ा महत्व है जिसका निर्धारण बड़ी सूक्ष्मता से किये जाने की आवश्यकता है।
कार्यशाला में विनोद शर्मा, महर्षि, प्रणव, गौरव, सौरभ, आकांक्षा तिवारी, नित्प्रिया, सचिन, अलका भटनागर, आरती, कंचन, कविता आदि अनेक युवा व बड़ी उम्र के प्रतिभागी शामिल हुए।
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