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कोरोना संकट के बीच मेडिकल पीजी के दाखिले में हो गई बड़ी धांधली

जुबिली न्यूज ब्यूरो

उत्तर प्रदेश जहां कोविड-19 की लड़ाई में चिकित्सकों की कमी से जूझ रहा है, वहीं शासन ने गुपचुप ढंग से 24 सरकारी डाक्टरों को एम्स ऋषिकेश में दो साल के पीजी डिप्लोमा करने के लिए लिस्ट जारी कर दी और शासन के पत्र को आधार बनाकर, कई डाक्टर रिलीव भी हो गये। जब इस मामले की जानकारी पीएमएस एसोसिएशन को हुई तब जाकर मामला खुला । महानिदेशक,चिकित्सा स्वास्थ्य लखनऊ ने शासन के इस पत्र के आधार पर मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को आदेश दिया था कि कोविड-19 के समाप्त होने के बाद ही इन चिकित्सकों को रिलीव किया जायेगा।

महानिदेशक के आदेश के बावजूद बदायूं के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र दातागंज के तीन चिकित्सक एक साथ रिलीव हो गये। दातागंज सीएचसी के अधीक्षक के अनुसार, डा०अमित, डा०सिनोद मिश्रा और डा०नेहा गुप्ता 14 अप्रैल को ही रिलीव हो गए । शामली में भी एक चिकित्सक को रिलीव किये जाने की सूचना है।

इस सम्बन्ध में सीएमओ बदायूं डा०यशपाल सिंह ने जुबली पोस्ट से हुई बातचीत में बताया कि, उन्हे महानिदेशक के आदेश की जानकारी नहीं थी। शासन के आदेश पर ही दिनांक 14 अप्रेल को रिलीव कर दिया था।

बदायूं जनपद में दाता गंज के विधायक राजीव कुमार सिंह”बब्बू भइया ने जुबली पोस्ट को बताया कि उन्होंने इसकी शिकायत स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह से की है। बताते चलें कि बदायूं में कोरोना पाजिटिव की संख्या 13 थी और चिकित्सकों की बेहद कमी भी है।

विभागीय सूत्रों की माने तो कोरोना काल में भी जब रिटायर्ड चिकित्सक कमी पूरी कर रहे हैं तब सीएमओ स्तर पर अधीक्षक को दबाव में लेकर बैक डेट में ही 3 चिकित्सकों को एक साथ रिलीव कर दिया। महानिदेशक के आदेश की तिथि 15.04.2020 थी इन्हे एक दिन पहले ही रिलीव किया गया ।

सूत्रों के अनुसार इन चिकित्सकों से नियमानुसार बाण्ड भी नहीं भराया गया है, जबकि डिप्लोमा की पढ़ाई के लिये जाने वालों से महानिदेशालय में पचास लाख का बाण्ड भराया जाता है।

निदेशक प्रशिक्षण को सौंपी जांच

पीएमएस एसोसिएशन ने इस मामले को प्रमुखता से उठाया है । मामले की शिकायत स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह और महानिदेशक से की गई तो महानिदेशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवायें ने निदेशक प्रशिक्षण को मामले की जांच सौंपी दी है।

दाखिले में शासन की धांधली की जांच पर लीपापोती की कोशिश

महानिदेशालय और शासन के पत्राचार से पता चलता है कि एम्स ऋषिकेश में पीजी के दाखिले में सारा मामला शासन स्तर पर निराधारित किया गया और पूरी प्रक्रिया से महानिदेशालय को पूरी तरह से अलग रखा गया। अब इसकी जांच निदेशक प्रशिक्षण को जांच सौंपी गई है जबकि शासन स्तर के आदेश की जांच का प्रमुख स्तर के किसी अधिकारी से करनी चाहिए । निदेशक प्रशिक्षण शासन की धांधली जांच करने में सक्षम ही नहीं हैं।

क्या है- पूरा मामला, शासन ने कैसे जारी की चयन सूची

इस पूरी चयन प्रक्रिया के को जानने के लिए आवश्यक है कि हम सिलसिलेवार जो कार्यवाही महानिदेशालय और शासन के बीच हुई, उस पर गौर करें तो तस्वीर साफ हो जाती है।

दिनांक 1 अक्टूबर 2019 में एम्स ऋषिकेश में डीएमआरडी, डी.आर्थो, डीसीएच,डीए,डी.आप्थ, डीटीएम,डीआरएम,डीजीओ के पाठ्यक्रमों के लिए प्रति पाठ्यक्रम 3 यूपीपीएमएस के डॉक्टरों के नाम प्रशिक्षण के लिए दिनांक 30 नवंबर 2019 को उत्तर प्रदेश सरकार से मांगे थे।

लेकिन वर्तमान समय में इस संबंध में ऐसा कोई शासनादेश नहीं है जिससे कि प्रदेश के बाहर प्रशिक्षण के लिए भेजा जा सके। इसलिए महानिदेशालय ने अपने पत्र संख्या प्रशि०प्रको०/2019/प्रशि०/4997 25 नवंबर 2019 द्वारा महानिदेशालय ने शासन से निर्देश मांगा। परंतु इस संबंध में कोई भी दिशा निर्देश शासन ने नहीं दिया।

उपरोक्त पाठ्यक्रमों के लिए डॉ अवनीश चंद्र श्रीवास्तव और डॉक्टर नंदलाल गुप्ता ने निदेशालय में डांक से आवेदन भेजा। जिसे महानिदेशालय के पत्र संख्या प्रशि०प्रको०/2020/17 दिनांक 6 जनवरी 2020 द्वारा शासन को आवश्यक कार्रवाई हेतु प्रेषित कर दिया। इसके बाद कई जनपदों से नियंत्रक अधिकारियों की संस्तुति सहित महानिदेशालय को आवेदन मिले जिसे मूल रूप में संलग्न करते हुए शासन भेज दिया गया।

महानिदेशालय ने इस पत्र में स्पष्ट कर दिया था कि महानिदेशालय स्तर से न तो कोई विज्ञापन जारी किया गया है और ना ही कोई निर्देश पत्र जारी है। जिले के किसी भी अधिकारी से इस संबंध में कोई आख्या भी प्राप्त नहीं हुई है।

लेकिन शासन ने महानिदेशालय के पत्रों में लिखे तथ्यों को नजरअंदाज करते हुए प्रशिक्षण के लिए पूरी सूची जारी कर दी।

शासन के पत्र संख्या-514/चि-3-2020-यू०ओ०-11/ 2020 दिनांक 17मार्च,2020से कुल13,पत्र संख्या-572/ चि-3-2020 दिनांक 03 एवं संख्या-660/चि-3-2020-यू०ओ०-11/ 2020 दिनांक 12 अप्रैल,2020द्वारा 08 चिकित्सकों की लिस्ट भेज दी गयी। विवशता में महानिदेशक निदेशक ने आदेश जारी किया कि कोविड-19के समाप्त होने के बाद ही इन चिकित्सकों को रिलीव किया जायेगा।

चयन प्रक्रिया में क्या रहा शासन का खेल

प्रांतीय चिकित्सा सेवा संघ,उत्तर प्रदेश का कहना है कि, उक्त स्नातकोत्तर अध्ययन में बिना किसी मानक एवं नियमों को प्रख्यापित किये ही सूची जारी की गयी है।उनका आरोप है कि स्वास्थ्य महानिदेशालय से कोई भी प्रस्ताव नहीं भेजा गया है,कुछ चिकित्सक नीट में बैठे भी नहीं और कुछ की परिवीक्षा अवधि भी पूरी नहीं है,वरिष्ठता एवं बिना किसी सर्कुलर के सूची बना दी गयी है।

विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रदेश के बाहर चिकित्सा संस्थानों में प्रशिक्षण का कोई शासनादेश नहीं है इसका प्रमाण महानिदेशक,चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं का मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया को लिखे पत्र से मिलता है जो शासन के चयन सूची आने पर लिखा गया है। पत्र में पूछा है कि एम्स ऋषिकेश में प्रशिक्षण के बाद वापस आने पर चिकित्सा विभाग में इनका रजिस्ट्रेशन होगा या नहीं ।लेकिन जहां तक जानकारी है कि इसका कोई भी जवाब अब तक नहीं मिला।

शासन ने सारी चयन प्रक्रिया को धता बताते हुए शासनादेश ना होते हुए भी अपने स्तर से मनमाने ढंग से चयन सूची शिक्षार्थियों की जारी कर दी जबकि महानिदेशालय जनपदीय अधिकारियों से सूचना प्राप्त करता है कि कितने स्थान उनके पास रिक्त हैं कितने लोगों को प्रशिक्षण के लिए भेजा जा सकता है फिर उस आधार पर एक लिस्ट प्राप्त करके और फिर वरिष्ठता क्रम से तैयार करके शासन को भेजा जाता है।

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शासन में इस प्रक्रिया को पूरी करने के लिए एक कमेटी निर्धारित है। कमेटी में यह मामला रखा जाता है और फिर इस पर निर्णय ले करके इसे स्वास्थ्य मंत्री के अनुमोदन के बाद ही अंतिम रूप से जारी किया जाता है। शासन में निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया गया या नहीं,यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा।

शासन के इस खेल के चर्चित किरदार

चर्चा है कि चिकित्सा अनुभाग के एक लिपिक,सेक्शन आफिसर से अनुसचिव बन कर उसी सेक्शन में पदस्थापित अधिकारी और विशेष सचिव स्तर के एक अधिकारी इस खेल के किरदार हैं। यह भी संभावना है कि इसमें काफी बड़ा लेन-देन भी हुआ हो। फिलहाल यह जांच का विषय है । जांच के बाद ही असली खेल करने वाले मुख्य किरदार सामने आयेंगे।

शासन स्तर से जांच का आदेश क्यों नहीं

जब चयन प्रक्रिया पर ही उंगली उठी है और पीएमएस एसोसियेशन तथा महानिदेशालय के पत्रों से भी साफ है कि इसमें पूरी तरह से नियमों की धज्जी उड़ाई गई, शासन आदेश की अवहेलना की गई तो शासन को प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी से इसकी जांच करानी चाहिए।

देखना है कि मुख्यमंत्री योगी के भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति को ध्यान में रख कर स्वास्थ्य मंत्री जांच करा कर दोषियों को दण्डित करते हैं या नहीं।

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