Friday - 1 November 2024 - 2:41 PM

क्या कनिका कपूर जैसी सुविधा एक आम भारतीय नागरिक को उपलब्ध है?

– कनिका कपूर छठे टेस्ट में कोरोना नेगेटिव
– आम सम्भावित मरीज़ों को एहतियातन टेस्ट भी नसीब नही: भारत के लिए बड़ी चुनौती
– क्या कनिका कपूर जैसी सुविधा एक आम भारतीय नागरिक को उपलब्ध है?
– भारत में कोरोना के मरीजो की कम संख्या का एक बड़ा कारण कम संख्या में होने वाले टेस्ट

योगेश बंधु

बॉलीवुड गायिका कनिका कपूर का COVID-19 के लिए PGI में चार टेस्टो के बाद पांचवा टेस्ट नेगेटिव आया हैं। इससे पहले लखनऊ के ही केजीएमसी में एक टेस्ट हो चुका था जिसमें उन्हें पाज़िटिव पाया गया था। हालांकि उन्हें अभी भी लखनऊ के PGI अस्पताल में रहना होगा। जब तक कि उनका और एक टेस्ट नेगेटिव नहीं आ जाता। जानकारी के अनुसार उनका हर दूसरे दिन टेस्ट किया जा रहा है।

किसी भी कोरोना मरीज़ का ठीक होकर अपने घर वापस होना निश्चित ही सुखद ख़बर है, लेकिन यहाँ ग़ैरतलब बात ये है, कि क्या कनिका कपूर जैसी सुविधा या कहिए इलाज की विलासिता एक आम भारतीय नागरिक को उपलब्ध है – इसका स्पष्ट रूप से जवाब ना में है। कई आलोचकों का कहना है की भारत में कोरोना के मरीजो की कम संख्या का एक बड़ा कारण कम संख्या में होने वाले टेस्ट हैं। जब टेस्ट ही नही हो रहे हैं तो मरीज़ों की संख्या का सही पता कैसे चलेगा।

भारत में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की सिफ़ारिशों के आधार पर कोरोना के संदिग्ध मरीजों का ही पालीमर चेन रिएक्शन टेस्ट (पीसीआर) कराया जाता है। यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि आईसीएमआर गाइडलाइन में कहा गया है, “बीमारी मुख्य रूप से प्रभावित देशों की यात्रा करने वाले व्यक्तियों या पॉजिटिव मामलों के करीबी संपर्क में होती है। इसलिए सभी व्यक्तियों का परीक्षण नहीं किया जाना चाहिए।”

इसका सीधा मतलब है कि अगर किसी को बुख़ार और ज़ुकाम जैसे कोरोना वायरस के लक्षण हैं और वो सीधे किसी सरकारी अस्पताल जाकर कोरोना वायरस के लिए टेस्ट कराना चाहते हैं तो उसको वापस भेज दिया जाएगा। इसके लिए उसे पहले कोरोना वायरस के लिए स्थापित हेल्पलाइन को फ़ोन करना पड़ेगा।

हेल्पलाइन में लोग उससे कुछ सवाल किए करेंगे, जैसे कि क्या उसने हाल में कोई विदेश यात्रा की थी या ऐसे किसी व्यक्ति के साथ समय बिताया था जो हाल ही में विदेश यात्रा से लौटे हैं? या फिर इस बीमारी से पीड़ित किसी व्यक्ति से मिला था? अगर जवाब हाँ में है तो उसे अस्पताल भेज करकर टेस्ट कराया जाएगा और अगर जवाब है नहीं तो उसे टेस्ट के लिए नहीं भेजा जाएगा। कोरोना के वास्तविक मरीज़ों की संख्या का पता लगाने में यही सबसे बड़ी समस्या है।

भारत ने 6 मार्च तक 3404 टेस्ट किए थे, आगे 30 मार्च तक भारत 38,442 टेस्ट ही कर पाया, अद्यतन आँकड़ो के अनुसार अभी तक देश में 66,००० टेस्ट किए जा चुके चुके हैं, यानी लगभग एक महीने में भी भारत एक लाख टेस्ट नहीं कर सका। अभी तक किए गए टेस्ट के आधार पर देश में कोरोना के कुल 3571 मामले सामने आ चुके थे जिसमें से वर्तमान में 3191 का इलाज चल रहा है। अभी तक कुल 281 ठीक हो चुके हैं और 99 मरीज़ों की मृत्यु हो चुकी है। यानी कुल किए गए टेस्ट में 18.5 प्रतिशत लोग कोरोना पाज़िटिव पाए गए।

नेशनल हेल्थ सिस्टम रिसोर्स सेंटर के पूर्व डायरेक्टर और पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट टी. सुंदररमन के अनुसार ”दुनिया के सभी देश जहां भी कोरोना के मामले सामने आए हैं उनके मुक़ाबले भारत में सबसे कम लोगों का टेस्ट किया गया है। भारत में अभी इसके मामले बढ़ना शुरू हुए हैं, एक बार अगर वायरस ने फैलना शुरू किया तो मुश्किलें और मामले दोनों बढ़ेंगे”।

विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना वायरस टेस्ट को लेकर भारत में अभी और गंभीरता लाने की ज़रूरत है। सवा अरब से ज़्यादा आबादी वाले देश में जिस तरह कोरोना वायरस के लिए स्क्रीनिंग और सैंपल टेस्ट किए जा रहे हैं वो नाकाफ़ी हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर किसी ऐसे व्यक्ति में इस वायरस की मौजूदगी है, जो कभी न तो विदेश गया और ही ऐसे किसी व्यक्ति के संपर्क में आया तो ख़तरा और बढ़ सकता है।

अगर कोई सामान्य दिखने वाला व्यक्ति साधारण जुकाम या वायरल बुखार में हो और वायरस के टेस्ट के लिए कहे तो उसका टेस्ट नहीं किया जाएगा. ऐसे में समस्या यह है कि आप तय नहीं कर पाएंगे कि कम्युनिटी में ये वायरस फैल रहा है या नहीं। एक बार अगर यह वायरस गांवों के स्तर पर फैलने लगा तो फिर इस पर जल्दी काबू पाना आसान नहीं होगा। एक मुद्दा यह हो सकता है कि हर व्यक्ति बुखार है उसका टेस्ट नहीं किया जा सकता लेकिन जिस किसी को भी लगातार बुखार की समस्या है और सांस लेने में परेशानी है उसका टेस्ट ज़रूर होना चाहिए।

विदेशों से आने वाले लोगों की जांच और उनसे संपर्क में आने वालों पर निगरानी एक “तर्कसंगत और उचित” दृष्टिकोण है। लेकिन भार में पिछले दो दिनो से जिस तरह से तबलीगी जमात से जुड़े लोगों के कोरोना से संक्रमित होने की घटनाए सामने आयी हैं और जमात के लोगों की दश के सुदूर इलाक़ों में उपस्थिति को देखते हुए कहा जा सकता है कि भारत कोरोना के तीसरे चरण के मुहाने पर खड़ा है – जिसमें संक्रमण का समुदाय में विस्तार हो जाता है। जिसे रोकना बहुत ही मुश्किल है।

इन परिस्थितियों में भारत के पास विकल्प बहुत सीमित हैं। पहला लाँकडाउन को और कड़ाई से लागू करते हुए इसकी अवधि को बढ़ाना, वर्तमान परिस्थितियों में जिसकी बहुत सम्भावना और आवश्यकता दिख रही है। दूसरा बड़ी मात्रा में सभी सम्भावित और संदिग्ध मरीज़ों की जाँच करना।

अभी तक के अनुभवो के आधार पर चीन के आलवा जिन देशों में वूहान वायरस के संक्रमण के विस्तार को रोकने में थोड़ा बहुत सफलता पायी है उन्होंने बड़ी मात्रा में टेस्ट किए हैं, जिससे संक्रमण के आरंभैक अवधि में ही इलाज देना सम्भव हो पाया है और बीमारी को तुरंत रोका जा सका है। सिंगापुर, फ़्रान्स, दक्षिण कोरिया और दूसरे अन्य देशों ने ज़्यादा से ज़्यादा टेस्ट करके इस पर लगाम लगायी है।

ग़ौरतलब है कि जहाँ दुनिया की चौथे नंबर की अर्थव्यवस्था जर्मनी, एक दिन 70,000 टेस्ट कर रहा था जिसे बढ़ा कर अब वो एक सप्ताह में 5 लाख टेस्ट कर रहा है। वहीं, पांचवें नंबर की अर्थव्यवस्था है भारत. वो एक दिन में 1500 टेस्ट भी नहीं कर पा रहा है। जर्मनी की लड़ाई दक्षिण कोरिया की तरह मिसाल बन गई है।

वहां कोरोना की संख्या तो बढ़ रही है मगर मृत्यु दर बहुत ही कम है, खासकर स्पेन इटली, फ्रांस और ब्रिटेन के मुकाबले। भारत अगर इस पर ध्यान नही देता तो वो भी वही ग़लती करेगा जो अमरीका ने टेस्ट करने में देरी करके की है। अमेरिका और अन्य देशों के मुक़ाबलर भारत में स्थित और गम्भीर हो सकती है क्योंकि पश्चिमी देशों के मुक़ाबले भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बहुत कमज़ोर है।

आज जब अमेरिका, इटली, स्विट्ज़रलैंड और फ़्रान्स जैसे योरोप के सबसे विकसित और अपेक्षाकृत छोटी आबादी वाले देशों में N-95 मास्क, पी पी किट और वेंटिलेटर जैसे आवश्यक सुविधाओं की कमी हो गयी है, भारत के लिए इन परिस्थितियों से निपटा बहुत मुश्किल होगा।

Radio_Prabhat
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