जुबिली पोस्ट डेस्क
लखनऊ। साल 2019 में चीन से शुरू हुआ कोरोना वायरस इस कदर फैला कि पूरी दुनिया संक्रमण की चपेट में आ गयी। इस संक्रमण के बचाव के लिए तरह-तरह की सावधानियां और जागरूकता के बावजूद लगातार बढ़ते संक्रमण को देखते हुए एक के बाद एक देश लाकडाउन जैसे गंभीर फैसले लेने को मजबूर हुए।
वैज्ञानिकों की टीम भी जुटी इस संक्रमण के प्रभाव को रोकने की वैक्सीन बनाने में लेकिन साल 2020 के अंत तक कई देशों ने वैक्सीन पर सफलता प्राप्त की और तेजी से वैक्सीनेशन का काम शुरू हुआ। तेजी से हो रहे वैक्सीनेशन के बीच चीन से निकले कोरोना वायरस ने अपनी दूसरी लहर से एक बार फिर से दुनिया के कई देशों को चपेट में लेना शुरू कर दिया।
कोरोना वायरस की पहली लहर में भारत ने कड़े फैसले करते हुए लाकडाउन लगा दिया था। हालाँकि लाकडाउन के बाद भारत के कई हिस्सों से बेहद गंभीर और मानवता को शमर्सार करने वाली तस्वीरें हर किसी के नज़र के सामने से जरूर गुजरी। जिसने चिंतन और मंथन करने को मजबूर किया।
देश के बड़े-बड़े शहरों से जब मजदूरों ने अपने गांव का रूख किया तो यातायात के सारे संसाधन बंद थे, लेकिन मजदूर तो मजदूर कहाँ मानने वाले, निकल पड़े मजबूत इरादों के साथ सूनसान सड़कों पर। हजार से तीन हजार किलोमीटर के सफर पर जिसमे उनकों न भूख का ख्याल था न ही प्यास की परवाह थी। इस दौरान बहुत तरह की घटनाएं घटी कहीं रास्ते में महिला ने बच्चे को जन्म दिया, तो कही मजदूरों ने लाठी खाई, तो कहीं रेल से काटकर स्वर्ग को पहुंच गए तो कहीं सेनेटाइजर से उनको नहलाया गया तो कहीं लोगों में उनको खाना भी खिलाया और पानी भी पिलाया।
जैसे तैसे इस कठिन दौर से देश बाहर निकल ही रहा था, सैकड़ों हजारों किलोमीटर का पैदल सफर करके अपने गांव अपने परिवार के बीच पहुँच चुके मजदूरों की याद फिर से कंपनियों और फैक्ट्रियों को आयी और उनको वापस लाने के लिए रिज़र्व बसें तक कंपनियों ने भेजी और फिर ऐसा लगने लगा कि धीरे-धीरे सब कुछ सामन्य हो गया है।
राजनितिक पार्टियां चुनाव प्रचार में जुट गयी, शहरों में होटल से लेकर सिनेमाघरो में फिर से चहलकदमी होने लगी और हम सब लोग यह भूल गए कि संक्रमण कम हुआ है लेकिन खत्म नही। संक्रमण ने यही भूल का फायदा उठाया और पहले से ज्यादा विकराल रूप लेकर सामने आया।
जब तक लोग सतर्क और जागरूक होते तब तक काफी देर हो गयी। यह दूसरी लहर का बहुत तेजी से और विकराल रूप दिखने लगा हालत यह हो गए की बीते साल सूनसान सड़कों पर पैदल चलते मजदूर दिख रहे थे लेकिन उनमे इतनी ताकत और हौसला था कि दो-तीन हजार किलोमीटर का सफर भी उनको कमज़ोर नहीं कर पा रहा था लेकिन इस बार अस्पताल से लेकर कब्रिस्तान और श्मसान तक में जगह नहीं बची।
बीते साल सूनसान सड़कों पर दिन रात पैदल चलते मजदूर थे, तो इस बार दिन-रात शमशान घाटों पर चिताएं जल रही है। कब्रिस्तान में लगातार कब्रें तामीर हो रही हैं। कुछ कब्रीस्तानों में तो कब्रों के लिए जगह ही नहीं रह गयी। श्मशान घाटों पर चिता को जलाने के लिए अस्थाई जगह बनाई गयी। हालत इस कदर ख़राब हुए कि बीते साल प्रशासन की सख्ती के बाद भी लोग सड़कों पर दिख जा रहे थे लेकिन इस बार लोग खुद से ही सड़कों पर निकलने से बच रहे हैं।
अब हालात इतने ख़राब हो चुके हैं की ऑक्सीजन के लिए लोग लम्बी-लम्बी कतारों में अपनी बारी का इंतजार कर रहे है। सड़कों पर ऑक्सीजन और इलाज के आभाव में दम तोड़ते लोगों की तस्वीरें जरूर डर पैदा कर रही हैं। सरकारें शायद इसी डर से जनता को निकालने के लिए बता रही हैं कि अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है।
सरकार के यह दावे की बेड और आक्सीजन की कोई कमी नहीं क्या इसको वह परिवार वाला सच मानेगा जिसने किसी अपने को खोया है। दिन रात एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल में भागदौड़ के दौरान उसके किसी अपने ने जान गवा दी हो। अंतिम संस्कार के लिए कब्रिस्तान और श्मसान में अपनी बारी का इंतजार कर रहे परिवार वाले के मन से यह डर इतनी जल्दी खत्म हो जाएगा यह बड़ा प्रश्नचिंह है।