न्यूज डेस्क
देश में कोरोना वायरस के मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। कोरोना संकट को देखते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने 14 अपैल तक 21 दिनों का लॉकडाउन का आदेश दिया है। आज लॉकडाउन का 13वां दिन है, पूरे देश में इस दौरान बंदी है। बावजूद इसके कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा होता जा रहा है और मरीजों की संख्या 4362 हो गई है, जहां 121 लोग जान गंवा चुके हैं और 328 लोग पूरी तरह से ठीक हो गए हैं या फिर उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है। स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना वायरस का प्रकोप देश के 29 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में फैल चुका है। इनमें 65 विदेशी मरीज भी शामिल हैं।
इस दौरान कई जगहों से मरीजों का इलाज कर रहे डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के कोरोना संक्रमित होने की खबरें आ रही हैं। दिल्ली में आधा दर्जन से ज्यादा डॉक्टर कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। साथ ही 100 से ज्यादा स्वास्थ्यकर्मियों को आइसोलेट करके रखा गया है। साथ ही इनके संपर्क में आए मरीजों और लोगों को क्वारनटीन किया गया है। अकेले दिल्ली से ऐसी खबरें नहीं आ रही हैं। बल्कि जयपुर, मुंबई, केरल, लखनऊ जैसे कई शहरों से खबरें आ रही हैं कि कोरोन संक्रमित मरीजों का इलाज करते समय डॉक्टर भी वायरस के संक्रमण का शिकार हो गए हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसा क्या कारण कि डॉक्टर संक्रमित हो जा रहे हैं। क्या वे इलाज के दौरान लापरवाही बरत रहे हैं। सुरक्षित कपड़े, मास्क और ग्लव्स पहनने के बावजूद डॉक्टर, नर्स और अन्य स्वास्थ्यकर्मी बाकी लोगों के मुकाबले संक्रमण के ज़्यादा शिकार हो रहे हैं। इसकी क्या वजह है।
इस सवाल को लेकर जब हमने गोरखपुर उदय मेडिकल सेंटर के डॉ त्रिलोक से बात की तो उन्होंने बताया कि जिस तरह स्वास्थ्यकर्मी वायरस के संपर्क में आ रहे हैं, उतना शायद कोई और नहीं, उनके बीमार होन की बड़ी वजह भी यही है। उन्होंने बताया कि कोरोना वायरस की पहचान 10 से 15 दिनों के बाद हो पा रही है और इस दौरान डॉक्टर सामान्य फ्लू समझकर मरीजों का इलाज कर रहे हैं ये भी एक बड़ी वजह है जिस कारण डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मी संक्रमित हो जा रहे हैं। हालांकि उन्होंने ये भी बताया कि अब जब वायरस का संक्रमण बढ़ने लगा है तो डॉक्टर पूरी समझदारी और सुरक्षा के साथ मरीजों का इलाज कर रहे हैं।
वहीं, महाराजगंज केएमसी डिजिटल हॉस्पिटल के डॉ भरत ने बताया कि कोरोना वायरस किसी को भी हो सकता है। इसके लिए सभी को सावधानी बरतनी चाहिए। जहां तक मरीजों का इलाज कर रहे डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की बात है तो उन्हें सबसे ज्यादा सावधानी रखनी चाहिए। पीपीई किट का इस्तेमाल सही से करना चाहिए। उन्होंने बताया कि पीपीई किट को हर आठ घंटे में बदलना चाहिए लेकिन इसकी कमी की वजह से डॉक्टर इसे 12 से 14 घंटे तक पहन रहें हैं। जबकि इस किट का प्रभाव आठ घंटे बाद कम होने लगता है। इस वजह से भी इन्फेक्शन हो सकता है।
भारत में पीपीई किट को लेकर विवाद शुरू हो गया है। दिल्ली सरकार के सीएम अरविंद केजरीवाल कई बार कह चुके हैं कि डॉक्टरों के पास पीपीई किट का स्टॉक अब बस कुछ ही दिनों का शेष बचा है हमे इसकी और जरूरत है। वहीं देश के ग्रामीणों क्षेत्रों की बात करें तो पीपीई किट और बाकी जरूरी स्वास्थ्य संबंधी सामानों की कमी पहले से ही जग जाहिर है। ऐसे में डॉक्टरों के सामने कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज करना और इस दौरान संक्रमण उनके अंदर न फैले इसका ध्यान रखना जैसी दोहरी चुनौती है।
हालांकि ऐसा नहीं है कि किसी डॉक्टर ने इसके लिए आवाज नहीं उठाई है। शायद वो आवाज सरकार तक पहुंच नहीं पाई है। कुछ दिन पहले लखनऊ के राम मनोहर लोहिया इंस्टिट्यूट में काम करने वालीं शशि सिंह का वीडियो सोशल मीडिया पर हज़ारों लोगों ने शेयर किया।
उस वीडिया में उन्होंने शिकायत करते हुए कहा था कि नर्सों को बेसिक ज़रूरी चीज़ें नहीं मिल रही हैं। उनके पास एन95 मास्क नहीं हैं। एक प्लेन मास्क और ग्लव्स से ही मरीज़ों को देखा जा रहा है। उनका आरोप है कि पूरे उत्तर प्रदेश में यही हाल है और इस बारे में बोलने से रोका जा रहा है।
क्या होता है पीपीई किट
कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज करते समय डॉक्टरों को पूरा वक्त हमें ख़ास ड्रेस जिसे पीपीई किट कहते हैं वो पहननी होती है। ये किट पहनकर उन्हें गर्मी से जूझना पड़ता है। साथ ही इस दौरान जो मास्क लगाते हैं, वो काफ़ी पेनफुल होता है। इसकी वजह से डॉक्टरों के चेहरा पर निशान भी बन जाता है। एक बार पीपीई किट को पहनने में काफी समय लगता है और उसे उतारते समय काफी सावधानी बरतनी पड़ती है अगर सुरक्षित तरीके से किट को नहीं निकाला तो किट को पहनने वाले के संक्रमित होने की संभावना बढ़ जाती है।