प्रियंका परमार
इस समय पूरी दुनिया का एक ही मोटिव है और वह है जल्द से जल्द कोरोना वायरस का खात्मा। दुनिया के 200 से अधिक देश इस वायरस से जंग लड़ रहे हैं। कुछ देश कोरोना को हराने के करीब पहुंच भी गए हैं, लेकिन कुछ देश इसकी गंभीरता को नहीं ले रहे हैं। सरकार तो कोशिश कर रही है लेकिन जनता का सहयोग नहीं मिल रहा है। यह लड़ाई सिर्फसरकार की नहीं है बल्कि पूरे देशवासियों की है। कोराना को हम तभी हरा पायेंगे जब सरकार के साथ बच्चे-बूढ़े और जवान मिलकर लड़ेंगे। अन्यथा वहीं हाल होगा जो अमेरिका का है।
इस समय कोरोना वायरस का सबसे ज्यादा संक्रमण अमेरिका और यूरोप के देशों में हैं। एशिया के अधिकांश देश कोरोना की जद में हैं लेकिन स्थिति इतनी बुरी नहीं है जितनी यूरोप के देशों की है। दक्षिण एशिया के देशों में भारत पर सबकी निगाहें लगी हुई है। इसका कारण है भारत की आबादी। अब तक भारत का जो आंकड़ा सामने आया है उसे ज्यादा प्रभावित देशों की अपेक्षा चिंताजनक नहीं कहा जा सकता, लेकिन भारत में आंकड़े तेजी से बढ़ रहे हैं।
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भारत में लॉकडाउन की मियाद पूरी होने वाली है और सरकार इसे आगे बढ़ाने पर आज या कल में फैसला लेगी। यह सच है कि भारत के लॉकडाउन ही कोरोना को हराने का एक मात्र विकल्प है। यहां खुद से लोग घरों में कैद होने से रहे। लॉकडाउन के बीच जिस तरह भारत में अफरा-तफरी का माहौल था वह चिंता बढ़ाने वाला है और इसमें बड़ी भूमिका सोशल मीडिया निभा रहा है। ऐसे संकट के दौर में भारत में सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों और वीडियो की बाढ़ आई हुई है। हालत यह है कि भारत की मीडिया भी फर्जी खबरों के जाल में फंस गई है, जो सही नहीं है।
शनिवार को मैं भारत की खबरें देख रही थी जिसमें मैंने देखा कि मशहूर उद्योगपति रतन टाटा को एक फेक न्यूज पर सफाई देनी पड़ रही है। उनके नाम से फेक न्यूज लिखा गया था जिस पर उन्होंने कहा कि ‘ये बातें न तो मैंने कही हैं और न ही लिखी हैं. मैं आप सभी से अपील करता हूं कि व्हाट्सऐप और अन्य मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रसारित हो रहे इस पोस्ट की सत्यता का पता लगाएं। अब इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सोशल मीडिया पर भारत में लोग कुछ भी कहने और लिखने के कितने आजाद है। लोगों की ये आजादी देश को मुसीबत में डालने का काम कर रही है।
भारत को दूसरे देशों से सबक लेने की जरूरत है। सिंगापुर भी कोरोना वायरस से प्रभावित हैं। एक समय था कि चीन के बाद दूसरे नंबर पर सिंगापुर था, जहां कोरोना के संक्रमित मरीजों की संख्या सबसे ज्यादा थी। 57 लाख आबादी वाले सिंगापुर में आज तीन माह बाद भी आंकडें उतने भयावह नहीं हुए हैं जितने अन्य देशों में हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है कि यहां के लोग सरकार के हर आदेश को गंभीरता से ले रहे हैं और सोशल मीडिया का इस्तेमाल सकारात्मक काम में कर रहे हैं। दरअसल इसका बड़ा कारण है सख्ती।
सिंगापुर में जनता में भय फैलाने, माहौल खराब करने वाले या किसी भी तरह की फेक न्यूज फैलाने वाले के लिये 10 साल जेल की सजा का प्रावधान है। इसके अलावा फेक न्यूज रोकने में नाकाम रहने वाली सोशल मीडिया साइट्स पर 10 लाख सिंगापुर डॉलर (5.13 करोड़ रुपये) का जुर्माना लगाया जा सकता है।
यहां कानून के तहत किसी भी व्यक्ति को उसका पोस्ट हटाने या संशोधित करने के निर्देश दिए जा सकते हैं। निर्देशों का पालन न करने वाले व्यक्ति पर 20 हजार सिंगापुर डॉलर (10.26 लाख रुपये) का जुर्माना लगाया जा सकता है। साथ ही एक साल तक की जेल भी हो सकती है। जाहिर है इतनी सख्ती होगी तो भला कौन मुसीबत मोल लेना चाहेगा।
यहां भी लोगों के हाथों में भी स्मार्ट फोन है और उसमें सोशल मीडिया एप है, लेकिन यहां के लोग इस संकट के दौर में सोशल मीडिया एप से ज्यादा कोरोना संक्रमण से बचने के लिए जो एप यहां की एक कंपनी ने बनाया है उसका इस्तेमाल कर रहे हैं। लोग स्मार्ट फोन की मदद से कोरोना के संक्रमण को रोकने में लगे हुए हैं।
सिंगापुर 7 अप्रैल से लॉकडाउन है। लोग अपने घरों में बंद हैं। जिनका काम घर से हो सकता है वह कर रहे हैं और जिनका दफ्तर खुला है वह जा रहे हैं। इस माहौल में कभी भी अफरा-तफरी या डर नहीं है। मैं सिंगापुर की तुलना भारत से करना नहीं चाह रही, बल्कि यह कहना चाह रही हूं कि कुछ चीजों पर नियंत्रण कर माहौल खराब होने से रोकने में दूसरे देशों से सीख ले सकते हैं।
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भारत में जिस तरह सोशल मीडिया के मार्फत माहौल खराब करने की कोशिश की जा रही है वह जघन्य अपराध की श्रेणी में है। भारत में इस समय सबसे बड़ा मुद्दा है कोरोना के संक्रमण की चेना को ब्रेक करना, लेकिन सोशल मीडिया पर आने वाले फेक न्यूज लॉकडाउन के मंतव्य और सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जिया उड़ा रहे हैं। राशन-दवा लेने के लिए लोगों की जो भीड़ उत्तर प्रदेश में पिछले दिनों उमड़ी थी, वह 15 दिनों की सारी मेहनत पर पानी फेर दिया था।
मैं सिंगापुर में रहती हूं, भारत से मेरे पास भी खूब वीडियो और मैसेज आते रहते है जिनको देखकर एक बार को मैं भी विश्वास कर लेती हूं। जब उससे जुड़ी खबरों की पड़ताल करती हूं तो पता चलता है कि यह फेक है। मैं बस इतना कहना चाहती हूं कि जिन भारतीयों के हाथों में मोबाइल फोन है वह मैसेज को फारवर्ड करने से पहले अपने विवेक का इस्तेमाल करें, क्योंकि कोरोना वायरस जाति-धर्म, अमीरी-गरीबी नहीं देखती। उसे सिर्फ मानव शरीर से मतलब है, चाहे वह किसी का भी हो। इसलिए असल मुद्दों से न भटके और दूसरों को भी न भटकाएं।
(प्रियंका सिंगापुर में रहती हैं। वह आईटी कंपनी में कार्यरत हैं। )