सुरेंद्र दुबे
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कल जनता कर्फ्यू की सफलता पर पूरे देश की पीठ थपथपाई. शाम पांच बजे पूरे देश में तालियां व थालियां बजाकर जिस तरह प्रधानमंत्री की लीडरशिप का इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर गुणगान किया गया उससे स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री ने भले ही साफ़ सुथरे मन से स्वास्थ्य कर्मियों तथा इमरजेंसी सेवाओं में लगे अन्य कर्मचारियों की हौसलाअफजाई के लिए पूरे देश से सहयोग का आह्वान किया था.
परंतु हमारे अधिकांश मीडिया ने इसे भी प्रधानमंत्री के इवेंट मैनेजमेंट के हुनर को दिखाए जाने का सुनेहरा मौका समझा. इसलिए फोटोशूट के लिए कैमरामैनों की टीमों पूरे देश में उतार दी गई. कहा गया था की घरों के अंदर रह कर अपने घरों की छतों व बालकनियों से ताली व थाली बजानी है
पर बड़े-बड़े नेताओं और अधिकारियों ने अपनी फरमाबरदारी दिखाने के लिए इस पूरे कार्यक्रम को फोटोशूट इवेंट में बदल दिया. तमाम शहरों में बड़े बड़े अधिकारी सड़कों पर निकल कर ताली, थाली व शंख घड़ियाल बजाने लगे.
कोरोना की रोकथाम के लिए जो उपाय सुझाये गये हैं उनमें एक उपाय एक दूसरे से कम से कम एक मीटर की दूरी बनाये रखना भी है. ताकि संक्रमण न फ़ैल सके. कल मुंबई, पुणे, दिल्ली व गुजरात से बड़ी संख्या में कामदारों ने अपने अपने घरों के लिए वापसी शुरू कर दी जिन्होंने रेलवे प्लेटफोर्मो व बस स्टेशनों पर कुम्भ मेले जैसे दृश्य उपस्थित कर दिए.
एक दूसरे से दूरी बनाये रखने की बात तो दूर रही कामगारों ने एक दूसरे के गले में हाथ डालकर यात्राएं की. पूरे देश में ऐसे लाख पचास हजार लोग जरूर रहे होंगे जिन्होंने कोरोना को फैलाने में सक्रिय भूमिका निभाई. यही कारण है की तीन दिन पहले तक पूरे देश में कोरोना संक्रमित लोगों की जो संख्या सवा सौ के आसपास थी वो अब पांच सौ के आसपास पहुंच गई है.
इस बात का गंभीर खतरा है कि अगर गांवों में पहुंचने वाले इन कामगारों ने मुठ्टी भर लोग भी संक्रमित हुए तो अन्य लोगों में कोरोना का संक्रमण बहुत तेजी से फ़ैल सकता है. गांवों में न तो स्वास्थ्य सेवाएं हैं और न ही कोरोना की टेस्टिंग के लिए प्रयोगशालाएं हैं. ट्रेनों की भीड़ और बस अड्डों पर मारामारी की तस्वीरें लगातार दिखाई जा रही हैं.
कहीं से कोई संकेत नहीं है की सरकार इन जगहों पर महामारी को रोकने के क्या प्रयास करेगी. पूरे देश में इस समय लगभग सवा सौ कोरोना टेस्टिंग लैब हैं जिनसे लगभग सात हजार लोगों में प्रतिदिन कोरोना की बीमारी को टेस्ट किया जा सकता हैं. जाहिर है कि गाँवों में पहुंचे इन कामगारों का ब्लड टेस्ट कराने का कोई इंतजाम हमारे पास नहीं है.
तो फिर क्या गाँवों को भगवान भरोसे या झोलाछाप डॉक्टरों के भरोसे छोड़ दिया जायेगा. सरकार अगर स्थिति को गंभीरता से समझते हुए अपने स्तर से कोई व्यवस्था नहीं करेगी तो इन गाँव वालों के मेडिकल भगवान हमेशा से झोलाछाप डॉक्टर ही रहें हैं इसीलिए उनके पास कोरोना से निपटने का अन्य कोई साधन उपलब्ध नहीं है.
हमारे डॉक्टर और सरकारें बार बार लोगों से मास्क लगाने और हाथों के साबुन से धोने की हिदायत दे रही हैं. पर ये गरीब कामगार मास्क और साबुन के लिए पैसे कहां से लाएंगे जब फैक्ट्रियां बंद हो गई हैं तो वेतन भी नहीं मिलेगा. कब तक नहीं मिलेगा कुछ कहा नहीं जा सकता. उत्तर प्रदेश सरकार ने कामगारों को एक हजार रूपये प्रतिमाह देने का वादा किया है.
अगर वादा निभाया भी गया तो इस वादे के जरिए तीस रूपये प्रतिदिन की खैरात मिलेगी जिसमें कामगार क्या खाएगा और क्या हाथ धोएगा. कुछ सरकारों ने ज्यादा पैसा देने की भी बात की है. सरकार की ओर से मास्क या सैनीटाइजर के मुफ्त वितरण की कोई योजना नहीं शुरू की गयी है जबकि यह काम सबसे पहले किया जाना चाहिए था
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कोरोना से हम लड़ तो रहे हैं पर बगैर किसी योजना के. कहा जा रहा है कि सरकार जनवरी से ही कोरोना से लड़ने की तैयारी कर रही थी. पर अगर ऐसा होता तो फिर आज देश में हजार दो हजार टेस्टिंग लैब होनी चाहिए थी. पूरे देश में फेस मास्क व हैंड सैनीटाइजर मुफ्त में वितरित हो रहा होता.
गांवों तक स्वास्थ्य सेवाओं को सुद्रढ़ कर आइसोलेशन वार्ड बना दिए गये होते. पर ऐसा कुछ सामने दिखाई नहीं पड़ रहा है. अगर गांवों में इस महामारी ने पैर फैला लिए तो फिर वाकई हमारी स्थिति बहुत गंभीर हो जाएगी जिसपर सरकार को फौरी कदम उठाने चाहिए.
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(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये लेख उनका निजी विचार है)