सुरेंद्र दुबे
आइये आज हम आपको एक ऐसी कहानी सुनाते हैं जिसे आप जानते हुए भी नहीं जानते। आप स्वयं इस कहानी के किरदार है पर आपको खबर ही नहीं क्योंकि आप अपने को पहचानते ही नहीं। कहानी युगों युगों से से चली आ रही है। पर किस्सा गोई भी कोई चीज़ है इसलिए सोचा नये अंदाज़ में सुना दूं।
तो चलो शुरू करते हैं दो भूखों की कहानी। इसके दो किरदार हैं। एक है हमारी सरकार और दूसरा किरदार है जनता। जब हम सरकार की बात कर रहे है तो हमारा आशय दुनिया भर की सरकारों से है। इसमे अमेरिका की सरकार भी है जिसके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प कोरोना के मरीजों को कीटाणु नासक इंजेक्शन लगा कर मरीजों को ठीक करने की सलाह दे रहे है।
ये वही नेता हैं जिनके सम्मान में गुजरात में नमस्ते ट्रम्प कार्यक्रम का आयोजन कर पूरे देश का सीना 56 इंच का हो गया था। चलो सनकी समझ कर उन्हें माफ कर देते हैं।
पूरी दुनिया कोरोना की महामारी से जूझ रही है। उद्योग धंधे बंद हो गये है। जाहिर है क़ि ऐसे में सरकार की आमदनी बिल्कुल बंद हो गयी है। पर सरकार को भी तो सरकार चलाने के लिये पैसे चाहिये। पैसे पेड़ पर नहीं उगते। सभी सरकारें भूखी है।
उन्हें माल पानी चाहिए। सरकार की हालत उस गर्भवती मां की तरह है जिसकेपेट में पल रहा शिशु मां को मिलने वाले भोजन पर ही निर्भर है। भोजन कम हो गया है पर भूख तो बढ़ गयी है। खुद भी खाना है और जनता को भी खिलाना है।
कहते हैं कि जान है तो जहान है। पर जहान की बात को परे रखते हैं। दुनियां के अमीर मुल्क तो चार छह महीने कम खाकर भी भूखे नहीं रहेंगे क्योंकि उनके पेट काफी भरे है। हम क्या करें। हमारा पेट तो बड़े अरसे से पीठ से चिपका हुआ है। हमारी सरकार का पेट भी अब पीठ से चिपकने लगा है। पर भूख तो उसे भी लगी है। या फिर कहें कि बड़े जोर की भूख लगी है। सो कुछ भोजन का जुगाड़ कर लिया है और कुछ के लिए हाथ पसारना शुरू कर दिया है।
केंद्र सरकार का पेट बड़ा है इसलिए उसने सांसदों को मिलने वाली निधि को बंद कर अपने लिए राशन पानी की व्यवस्था तपाक से कर ली। रिज़र्व बैंक से 2 लाख करोड़ रु. तक उगाहने का जुगाड़ कर लिया है। और भी बहुत से जुगाड़ कर लिये हैं जैसे पी एम केयर फंड। जितना बंन पड़ेगा उतना पेट राज्य सरकारों का भर देंगे। जनता को भी कुछ न कुछ देते ही रहेंगे।कल चुनाव भी लड़ना है।
अब राज्य सरकारों पर आते हैं। जनता का पेट भरना मूलतः इनकी जिम्मेदारी है। केंद्र सरकार राज्य सरकारों को जी एस टी सहित तमाम बकायों का भुगतान करने में आना कानी कर रही है। राज्यों का पैसा कोरोना से निपटने के मेडिकल प्रयासों में चुकता होता जा रहा है। सरकारें मीडिया में अपनी छवि सुधारने में लगी हुई हैं।
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गरीबों के पास न काम है और न अनाज। घंटों लाइन में लगकर कभी एक वख्त का तो कभी दोनो वख्त का भोजन मिल पा रहा है। स्वयंसेवी संस्थाओं व दानवीरों के बल पर आम आदमी की भूख कब तक मिटेगी। सरकारी कर्मचारियों को छोड़ कर सभी कर्मचारियों को या तो तालाबंदी या फिर वेतन कटौती का दंश झेलना पड़ रहा है।
नेता जी हर बार डिजाइनर गमछा बांध कर आते है और गरीब।की भूख की चर्चा किये बगैर अंतर्ध्यान हो जाते हैं।एकबार मालिकों से जरूर कहा था क़ि लोगों को संकट की घड़ी में नौकरी से न निकालें। पर किसी पर कोई असर नही पड़ा।लोग भूख के और नजदीक पहुंचते जा रहे है। लोगों की धुक धुकी बढ़ गई है। लॉक डाउन फिर बढ़ सकता है।
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पहली बार पता चला क़ि मालिक इतने बेफिक्र हो गये है। ये भी तो राष्ट्र प्रेम का ही मुद्दा है। मौका मिला तो किसी दिन अक्षय कुमार से पूछ लेंगे। उनके अलावा और कोई तो पूंछ भी नही सकता।