दिनेश पाठक
सूरत एक-दिल्ली से मुंबई और पंजाब से लेकर यूपी तक । चहुँओर हाल खराब है। अस्पतालों में बिस्तर नहीं। बिस्तर है तो डॉक्टर नहीं। श्मशान पर अंतिम संस्कार के लिए जगह नहीं। आश्चर्यजनक रूप से जांचें कम हो रही हैं।
अन्य रोगों के शिकार मरीज अस्पताल में भर्ती नहीं किये जा रहे| क्योंकि उनके पास कोविड निगेटिव रिपोर्ट नहीं है। कहीं जोर-जुगाड़ से सैम्पल दे भी दिया तो रिपोर्ट जब तक आ रही है तब तक लोग प्रभु को प्यारे हो रहे हैं।
सूरत दो-चुनावी राज्य बंगाल, असम, तमिलनाडु आदि में कोरोना अपनी ‘कृपा’ बनाए हुए है। वहां न तो जनता को कोई तकलीफ है और न ही बिना मास्क खुले में घूम रहे किसी नेता को। हरिद्वार कुम्भ में आने की दावत उत्तराखंड की सरकार रेडियो और अन्य माध्यमों से कर रही है। यूपी में पंचायत चुनाव की दुन्दुभी बज चुकी है। इसके लिए सरकारी तंत्र के लोग ही जगह-जगह नियम-कानून तोड़ रहे हैं।
सूरत तीन-कहीं मास्क न लगाने पर पुलिस भारी जुर्माना लगा रही है तो कहीं लट्ठ मार रही है। कहीं पुलिस का एक सकारात्मक चेहरा भी सामने आ रहा है। पुलिसजन मास्क बाँट रहे हैं। डीएम लखनऊ ने स्वास्थ्य कर्मियों को महामारी कानून के दायरे में लाते हुए उनकी छुट्टियाँ रद कर दी हैं तो उसी लखनऊ में वायरल हुए वीडियो में कुछ स्वास्थ्य कर्मियों को कई महीने से वेतन न मिलने की जानकारी आ रही है।
बावजूद इसके नेता-अफसर बयानबाजी में जुटे हैं। विभिन्न माध्यम से प्रचार जारी है। इनकी मान लें तो देश में रामराज चल रहा है। जबकि सच से इसका कोई वास्ता फ़िलहाल नहीं है। लोग डरे हुए हैं। परेशान हैं। परेशान वे लोग भी हैं जिनकी सेहत ठीक है। परेशान वे गंभीर रोगी और उनके परिवारीजन भी हैं जिनका इलाज इन दिनों बाधित चल रहा है।
साहेबान, समझो| समस्या का हल खोजो। छिपाने से बात नहीं बनेगी। सबसे पहले ज्यादा से ज्यादा जांचें शुरू करो। रिपोर्ट जल्दी बनवाओ। जिससे मरीज का उपचार शुरू हो। पिछले साल यह समस्या अपेक्षाकृत कम थी। पिछले वर्ष शमशान घाटों पर आज की तरह दिक्कत नहीं थी। अगर आक्सीजन की कमी से मौतें हो रही हैं तो आप देते रहिये सफाई कि कहीं कोई कमी नहीं है।
अगर वरिष्ठतम प्रशासनिक अधिकारी, यूपी राजस्व परिषद के चेयरमैन को पीजीआई में दाखिल होने में घंटों लग सकते हैं, लखनऊ की गली-गली में लोकप्रिय इतिहासकार योगेश प्रवीण को एम्बुलेंस मिलने में घंटों लग सकते हैं, अगर बिना सत्ता के दबाव के पीजीआई जैसे अस्पताल में जगह नहीं मिल पा रही है तो सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि सब कुछ सामान्य नहीं है।
हमें यह भी नहीं भूलना है कि जनता की पहुँच भले आप तक न हो लेकिन अब वो सच जानती है। वह समय आने पर हिसाब किताब कर भी लेती है। डंडे के जोर पर आप उसे चुप करवा सकते हैं। बिस्तर पर कराहते हुए मरीज की चीख संभव है कि आप तक न पहुँचे लेकिन यह चीजें छिपती नहीं हैं। असामाजिक आदमी भी इन दिनों रोज तीन-चार-पांच मौतों की सूचना से दो-चार हो रहा है।
ऐसा बिलकुल नहीं है कि सिस्टम काम नहीं कर रहा है, कर रहा है। लेकिन इसे पूरे नंबर तभी मिलेंगे जब तबीयत ख़राब होने पर अस्पताल में भर्ती होने की सुविधा मिल जाए। पूरे नंबर तभी मिलेंगे जब कोविड की जाँच के केंद्र और खोले जाएँ और रिपोर्ट समय से आये।
यह बात गले नहीं उतरती कि जब मरीजों की संख्या कम थी तो सरकारी और निजी सभी जगह कोविड जांचें हो रही थीं और जब मरीज बढ़ते जा रहे हैं तो निजी लैब में जांचें बंद हो गयी हैं और सरकारी प्रयोगशालाओं में तीन-चार दिन बाद रिपोर्ट आ रही है।
जब राज्यों के मुख्यमंत्री चाहे योगी आदित्यनाथ जी हों या शिवराज या उद्धव ठाकरे, सब चाहते हैं कि मरीजों की मदद हो। बिस्तर बढ़ें। जांचें तेज हों। किसी को कोई असुविधा न हो तो तो यह समझना मुश्किल नहीं होता कि बाधा कहाँ है? या तो अफसर मुख्यमंत्रियों की सुन नहीं रहे या फिर मुख्यमंत्री की बैठक से निकलने वाली प्रचार सामग्री फर्जी है। सच कुछ भी, सामान्यजन की पीड़ा हरना लोकतंत्र में सरकारों की जिम्मेदारी है।
यह भी समझने का विषय है कि अगर सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा है तो यूपी के कैबिनेट मंत्री बृजेश पाठक को अधिकारियों को पत्र लिखकर क्यों चेतावनी देनी पड़ रही है? क्यों उन्हें मुख्य चिकित्सा अधिकारी दफ्तर जाने से अधिकारियों को रोकना पड़ रहा है? अगर एक मंत्री के कहने के बावजूद योगेश प्रवीण जी को कई घंटे एम्बुलेंस नहीं मिल पा रही है और वे दम तोड़ देते हैं तो इसे कैसे सामान्य माना जाए? डीएम को आक्सीजन की भरपूर आपूर्ति के दावे क्यों करने पड़ रहे हैं?
क्यों नहीं ऐसा कोई सिस्टम बन पा रहा है, जहाँ बिना सिफारिश जाँच भी हो, भर्ती भी और एम्बुलेंस भी मिले। क्यों नहीं अस्पतालों में उपलब्ध बिस्तर, एम्बुलेंस ऑनलाइन किया जा सकता? साडी व्यवस्था को ऑनलाइन कर दीजिये, वः भी पारदर्शी तरीके से| आदमी खुद ऑनलाइन जाकर अपने लिए नजदीकी अस्पताल में बेड देखकर भर्ती सुनिश्चित कर ले। ऐसा करने के बाद सिस्टम को सिर्फ यह देखना रह जाएगा कि अगर बिस्तर कम पड़ रहे हैं तो उन्हें और इंतजाम करना होगा।
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मतलब साफ़ है कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ है और उसे ठीक करना होगा। यह सरकारों की पहली और अंतिम जिम्मेदारी है। जरूरत भर जाँच किट उपलब्ध करायी जाए। निजी एवं सरकारी लैब को जांच की अनुमति दी जाए।
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कोविड मरीजों के अलावा किडनी, मधुमेह, लिवर, दिल एवं अन्य गंभीर रोगियों को भी प्राथमिकता के आधार पर समुचित इलाज मुहैया कराया जाए। असमय मौतों को रोकने का और कोई दूसरा उपाय नहीं है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)