Saturday - 26 October 2024 - 4:48 PM

कोरोना बढ़ा रहा है स्ट्रोक्स और मेमोरी लॉस !

जुबिली न्यूज़ डेस्क

अभी तक कोरोना वायरस जैसी घातक महामारी के प्रमुख लक्षणों में तेज बुखार, सूखी खांसी, गले में सूजन, थकावट और सांस में तकलीफ होना बताया जा रहा था लेकिन कई ऐसे मरीज भी सामने आये हैं जिनमें ये लक्षण बिल्कुल भी नहीं थे फिर भी वो कोरोना का शिकार हो गये।

इस बीच हाल ही में कोरोना महामारी के मरीजों में कन्फ्यूजन, लॉस ऑफ स्मैल, व्यावहारिक बदलाव जैसे कुछ न्यूरोलॉजिकल लक्षण भी देखने को मिले हैं। इसकी चपेट में आये कई मरीजों की मानसिक स्थिति पर भी इसका बुरा असर पड़ता दिखाई दे रहा हैं। स्ट्रोक, ब्रेन हेमरेज और मेमोरी लॉस जैसे कई खतरनाक प्रभाव अब कोरोना वायरस के मरीजों में देखे जा रहे हैं।

इस मामले में जॉन्स होपकिंस यूनिवर्सिटी के एमडी रॉबर्ट स्टीवन्स कहते हैं कि, ‘कोविड-19 यूनिट में उन्होंने करीब आधे मरीजों में न्यूरोलॉजिकल लक्षण देखे हैं। फिलहाल वैज्ञानिक ये समझने की कोशिश में लगे हुए हैं कि आखिर वायरस का दिमाग पर बुरा असर क्यों पड़ रहा है।’

इससे संबंधित छपे एक आर्टिकल में उन वैज्ञानिकों के सिद्धांतों को सूचीबद्ध किया गया जो इस विषय पर रिसर्च कर रहे हैं। आर्टिकल के अनुसार, ‘पूरी दुनिया में कोरोना के मामलों में दिमाग से जुड़ी कई स्थितियां देखने को मिल सकती हैं। इनमें कन्फ्यूजन, होश खोना, दौरा पड़ना, स्ट्रोक, लॉस ऑफ स्मैल, लॉस ऑफ टेस्ट, सिरदर्द, फोकस ना कर पाना और व्यावहारिक बदलाव जैसी समस्या शामिल हैं।’

यही नहीं कोरोना के कुछ मरीजों में तो ‘कॉमन पेरिफेरल नर्व’ से जुड़ी समस्या भी देखी गई है, जोकि पैरालाइज और रेस्पिरेटरी फेलियर की एक मुख्य वजह है। इसी तरह के लक्षण कोरोना वायरस के कारण फैले SARS और MERS के प्रकोप में भी देखने को मिले थे। अब कोरोना का इंसान के दिमाग के साथ क्या कनेक्शन है? इसे लेकर जॉन्स होपकिंस की मौजूदा स्टडी में चार प्रमुख बातें बताई गई हैं।

स्टडी के अनुसार, अगर वायरस दिमाग में दाखिल होने में सक्षम है तो गंभीर और अचानक संक्रमण का खतरा काफी बढ़ सकता है। इस तरह के कुछ मामले चीन और जापान में देखे गए थे, जहां वायरस जेनेटिक मैटेरियल स्पाइनल फ्लूड में पाया गया था। साथ ही फ्लोरिडा में एक ऐसा ही मामला सामने आये था, जहां दिमाग की कोशिकाओं में वायरस पार्टिकल्स मिले थे।

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नॉवेल कोरोना वायरस से लड़ने पर बॉडी इम्यून सिस्टम पर भी इसका गहरा असर पड़ता है। इनफ्लेमेटरी रिस्पॉन्स के दौरान ‘मलाडैप्टिव’ के प्रोड्यूस होने से बीमारी में शरीर के टिश्यू और पार्ट डैमेज होते हैं। इसके अलावा कोविड-19 के कई मामलों में मरीज का बेहोश होना या कोमा में चले जाने जैसा खतरा भी देखा गया।

हालांकि एक सामान्य व्यक्ति कि तुलना में कोरोना के मरीजों में ब्लड क्लॉटिंग की संभावनाएं ज्यादा होती हैं। ब्लड क्लॉट्स इंसान के फेफड़ों और शरीर की गहरी नसों में हो सकते हैं, जिससे रक्त प्रवाह बंद हो सकता है। और अगर यही ब्लड क्लॉट दिमाग तक जाने वाली धमनियों का रास्ता बंद कर दें तो स्ट्रोक जैसी समस्या हो सकती है।

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