सुरेंद्र दुबे
कोरोना महामारी को रोकने के लिए पूरे देश में 3 मई तक लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई है। यानी सारा कामकाज बंद है, पर पेट का कामकाज चालू है। ऐसा नहीं है कि कमाने नहीं जाएंगे तो भूख नहीं लगेगी, बल्कि भूख ज्यादा लगेगी। घर पर कितना मनोरंजन करेंगे, कितने दिनों तक बच्चों को पुरानी कहानियां सुनाएंगे। कहानी और किस्से पिछले 21 दिन के लॉक ऑउट में स्वयं किस्से बन चुके है। अब धीरे-धीरे आटा व दाल के कनस्तर अपनी ओर हमारा ध्यान खीचने लगे हैं।
जब हम लोवर मिडिल क्लास की बात कर रहे हैं तो हमारा आशय लोवर मिडिल क्लास बिजनेस मैन व कर्मचारी दोनों से है। हमारी अर्थव्यस्था पिछले काफी अरसे से संकट के दौर से गुजर रही है। लघु व मध्यम दर्जे के तमाम उद्योग या तो बंद हो चुके है या फिर आधी-अधूरी छमता से चल रहे थे। लाखों कर्मचारियों को जनवरी से नगद-नारायण के दर्शन नहीं हुए है। रिजर्व बैंक के गवर्नर ने भरोसा दिलाया है कि सिस्टम में कैश की कमी नहीं होने दी जायेगी। पर जब कर्मचारियों के खाते में पैसा आयेगा ही नहीं तो लोगों को पैसा मिलेगा कैसे। आर्थिक संकट के कारण पहले से ही चल रही छंटनी का दौर और तेज हो गया है।
जाहिर है, सरकार को सब पता है इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 अप्रैल को लॉक ऑउट की अवधि बढ़ाते समय मालिकों से कहा था कि किसी को नौकरी से न निकालें। पर क्या उनके कह देने मात्र से छंटनी रुक जायेगी।
पढ़े ये भी : तो क्या चीन की लैब से आया है कोविड 19?
पढ़े ये भी : कोरोना : अब जानवर ही बनेंगे दूसरे जानवरों का चारा
दरअसल प्रधानमंत्री की यह केवल मौखिक सहानभूति थी। यदि उन्हें सच में सबकी चिंता होती तो वह कहते कि सरकार कर्मचारियों की छंटनी नहीं करने देगी। वह इनकी मदद के लिए पैकेज देंगे। नहीं कुछ तो वह यही कह सकते थे कि वह छह महीने कोई टैक्स नहीं लेंगे। लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा। जाहिर है लॉकडाउन की वजह से सब कुछ बंद हैं। छोटे बिजनेस हो या बड़े सभी का राजस्व शून्य है तो वह सैलरी कहां से देेंगे, यह भी महत्वपूर्ण सवाल है।
हमारा मानना है कि इस कोरोना काल में सबसे ज्यादा संकट लोवर मिडिल क्लास के सामने ही है। इनकी व्यथा कथा किसी के भी एजेंडे में नहीं है। लोवर मिडिल क्लास का आदमी शेल्टर होम जाकर खाने के लिए लिए लाइन नहीं लगायेगा। सरकार इनके लिए घर पर भोजन भेजने से रही। मालिक पिछला वेतन देना दूर उन्हें नौकरी पर ही रखने के लिए भी तैयार नहीं हैं। दुकानदार अब उधार देने में आनाकानी करने लगा है। अब ऐसे हालात में उनके सामने सिर्फ एक विकल्प यह है कि पत्नी का जेवर बेंचकर घर क राशन लाए, पर वह भी संभव नहीं है, क्योंकि दुकानें बंद हैं। जेवर बिकेगा नहीं।
पढ़े ये भी : जानें 44 साल में कैसे बदली इस शहर तकदीर
लोवर मिडिल क्लास के आदमी के पास और कुछ हो न हो पर आत्म सम्मान के नाम झौआ भर इगो जरूर पाले रहता है। हम भूखे है इस नारे के साथ सड़क पर वह आंदोलन नहीं कर सकता। सरकार इन लोगों को कोई आर्थिक पैकेज देगी इसकी कोई संभावना नहीं दिखती। इनके खातों में कोई पैसा भेजा जाये ऐसा पहले कभी हुआ नहीं।
इस वर्ग को भुखमरी से बचाने के लिए इनकी नौकरियों को बचाना होगा और इन्हें भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत अनाज उपलब्ध कराना होगा, पर सरकार तो अभी गरीबों को ही राशन उपलब्ध नहीं करा पा रही। सरकार के पास अनाज के भंडार भरे हुए हैं। आपात स्थिति को देखते हुए रईसों को छोड़कर सभी को सस्ता अनाज उपलब्ध कराया जाना चाहिये। सारी परीक्षा जनता ही क्यों दे। जनता घरों में रहकर देश को बचाये और सरकार अपने भंडार खोल कर जनता को पेट भरे। यही राजधर्म है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये लेख उनका निजी विचार है)