- 5 करोड़ प्रवासी सरकार की लाभुकों की शिनाख्त प्रक्रिया से बाहर
- कोविड-19 से 4.14 करोड़ प्रवासी कामगार प्रभावित हुए
न्यूज डेस्क
कोरोना महामारी का प्रभाव देश के हर तबके पर पड़ा है, लेकिन इससे सबसे ज्यादा प्रभावित निम्र मध्यम वर्ग और श्रमिक वर्ग पर पड़ा है।
निम्र तबके के लिए सरकार ने 1.7 लाख करोड़ रुपए के रिलीफ पैकेज की घोषणा कर उन्हें राहत देने की कोशिश की है। लोगों को पैसे, राशन आदि दिए जा रहे हैं। लेकिन इन राहत घोषणाओं का फायदा प्रवासी मजदूरों को नहीं मिल पा रहा है।
यह भी पढ़ें : कोरोना : तालाबंदी में भारत में हर दिन 1000 नए केस
इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलपमेंट (आईएचडी) के आकलन के अनुसार अल्पकाल के लिए काम की तलाश में बार-बार आने-जाने वाले करीब 5 करोड़ प्रवासी सरकार की लाभुकों की शिनाख्त प्रक्रिया से बाहर हैं
आईएचडी के मुताबिक, कोरोनावायरस महामारी के मद्देनजर जो राहत उपाय किए गए हैं, उसका लाभ देश के प्रवासी कामगारों के महज एक तिहाई हिस्से तक ही पहुंच पाया है।
यह भी पढ़ें : भारत में तालाबंदी से मलेशिया और इंडोनेशिया क्यों है परेशान?
यह भी पढ़ें : कोरोना : दांव पर देश की 30 प्रतिशत जीडीपी व 11 करोड़ नौकरियां
अल्पकाल के लिए काम की तलाश में बार-बार आने-जाने वाले करीब 5 करोड़ प्रवासी सरकार की लाभुकों की शिनाख्त प्रक्रिया से बाहर हैं। इंस्टीट्यूट ने ये अनुमानित आंकड़े 2 मई को आयोजित एक वेबिनार (इंटरनेट के जरिए आयोजित सेमिनार) में जारी किए।
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से दाखिल एक एफिडेविट में पिछली जनगणना के आधार पर बताया गया है कि कोविड-19 से 4.14 करोड़ प्रवासी कामगार प्रभावित हुए हैं।
सरकार के इस आंकड़ों से आईएचडी सहमत नहीं है। आईएचडी ने दावा किया है कि असल आंकड़ा अनुमानित आंकड़े से ज्यादा है।
आईएचडी के सेंटर फॉर एम्प्लाइमेंट स्टडीज के डायरेक्टर रवि श्रीवास्तव ने तर्क देते हुए कहा कि जनगणना में केवल लंबे समय से या स्थाई तौर पर रह रहे प्रवासियों को ही शामिल किया गया है। जनगणना में उन्हीं प्रवासियों को शामिल किया गया, जो किसी एक क्षेत्र में 6 महीने या उससे ज्यादा वक्त तक रहे हैं। अल्पकाल के लिए या घुमंतू प्रवासियों को छोड़ दिया गया है।
यह भी पढ़ें : कोरोना महामारी : नये अध्ययन में वैज्ञानिकों ने क्या खुलासा किया
रवि श्रीवास्तव ने जोड़ा कि ऐसे अनुमान बहुत कम हैं, जिनमें घुमंतू प्रवासियों को शामिल किया गया है। साल 2007-2008 के नेशनल सैंपल सर्वे में इन प्रवासियों को शामिल किया गया था, जिसके मुताबिक भारत में ऐसे प्रवासियों की संख्या लगभग 1.52 करोड़ थी, जो थोड़े-थोड़े समय एक से दूसरी जगह टिकते थे।
रवि श्रीवास्तव कहते हैं कि “हमने असली संख्या से कम अनुमान लगाया है। सेक्टर दर सेक्टर मूल्यांकन कर हमने 4.5-5 करोड़ घुमंतू प्रवासियों की की संख्या का अनुमान लगाया है। इनमें से 1 करोड़ प्रवासी कृषि मजदूर हैं”
केंद्र सरकार की रिलीफ फंड पर वह कहते हैं, “गरीब कल्याण योजना प्रवासी श्रमिक समुदाय पर महामारी के प्रभाव को कितना कम करेगा, ये किसी भी समझ से परे है। आश्रय और भोजन का दायरा बढ़ा था, लेकिन यह प्रवासी श्रमिकों के केवल एक तिहाई तक पहुंच सका।”
इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलपमेंट ने अर्द्ध स्थाई और स्थाई प्रवासियों में से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले प्रवासियों का आकलन किया है।
2011 की जनगणना को ध्यान में रखते हुए आईएचडी ने 2020 में प्रवासी कामगारों की संख्या का आकलन कर उनके उपभोग और पेशे के आधार पर उन्हें ‘नाजुक’ माना है।
आईएचडी के अनुमान के मुताबिक कोरोना महामारी की प्रभाव 5.59 करोड़ से 6.91 करोड़ प्रवासी कामगारों पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ेगा।
घुमंतू प्रवासियों को ‘बेवतन नागरिक’ की संज्ञा देते हुए रवि श्रीवास्तव ने कहा कि ये जहां काम करते हैं, वहां इनकी नागरिकता नहीं होती है और जहां से वे आते हैं, वहां इनकी नागरिकता कमजोर होती है, जिस वजह से वे सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक बहिष्कार और भेदभाव का शिकार हो जाते हैं।
अब हम देख पा रहे हैं कि सरकार और इन्हें काम देने वाले मालिकान कामगारों के इस बड़े वर्ग के बारे में कितना जानते हैं। और यह भी देख रहे हैं कि नीति ने किस तरह उनकी अवहेलना की व उनके खिलाफ काम किया।
यह भी पढ़ें : शराब की कमाई पर कितनी निर्भर है राज्यों की अर्थव्यवस्था ?
वह कहते है गरीबों के लिए सामाजिक सुरक्षा का दायरा बहुत बड़ा है, लेकिन इसमें कई खामियां भी हैं।
उन्होंने कहा, “ड्राफ्ट कोड आन सोशल सिक्योरिटी, 2018 वैश्विक दृष्टिकोण पर आधारित था। लेकिन, फाइनल बिल में खंडित सामाजिक सुरक्षा के हक में इस दृष्टिकोण को छोड़ दिया गया। इस माहामारी से सीख लेते हुए इस बिल पर गहराई से पुनर्विचार करना होगा।”
रवि श्रीवास्तव ने वैश्विक पंजीयन, न्यूनतम वैश्विक सुरक्षा और इनकी सुलभता जैसे मुद्दों की वकालत की।
इस महामारी को देखते हुए आईएचडी ने तर्क दिया है कि संसद में जो कोड आन आक्यूपेशनल हेल्थ एंड सेफ्टी एंड वर्किंग कंडीशंस बिल लंबित है, उसके मौजूदा स्वरूप को देखते हुए उसे रद्द कर देना चाहिए।
यह भी पढ़ें : कोरोना काल : सरकारें नहीं स्वीकारेंगी कि कितने लोग भूख से मरे
यह भी पढ़ें : खुलासा : सड़कों का निर्माण बढ़ा तो लुप्त हो जाएंगे बाघ