जुबिली न्यूज डेस्क
कोरोना महामारी और तालाबंदी की वजह से देश के कई राज्यों की वित्तीय स्थिति चरमरा गई है। राज्य सरकारों के सामने आर्थिक संकट इस कदर हो गया है कि कर्मचारियों को सैलरी नहीं दे पा रहे हैं।
कोरोना का असर अब दिखने लगा है। आम आदमी तो इसकी मार से काफी पहले से आहत है, पर अब राज्य सरकारों के सामने भी दिक्कत शुरु हो गई है। राज्यों में कर्मचारियों के सैलरी भुगतान में देरी और पूंजीगत खर्चे में भारी कटौती देखी जा रही है।
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कई राज्य इसका ठीकरा केंद्र सरकार पर फोड़ रहे हैं और आरोप लगा रहे हैं कि जीएसटी बकाया नहीं देने की वजह से ये हाल हुआ है। आज (27 अगस्त) को जीएसटी के बकाया बिलों के भुगतान पर जीएसटी परिषद की बैठक होनी है।
केंद्र सरकार को सभी राज्यों ने त्राहिमाम संदेश भेजा है। महाराष्ट्र, पंजाब, कर्नाटक और त्रिपुरा उन राज्यों में शामिल हैं, जहां कोरोना काल में भी स्वास्थ्यकर्मियों को समय पर वेतन नहीं दिया जा रहा।
वहीं उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और मध्य प्रदेश ऐसे राज्य हैं, जहां कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के टीचर और स्टाफ को समय
पर सैलरी का भुगतान नहीं किया जा रहा है। ऐसी हालत में अधिकांश राज्य केंद्र पर ठीकरा फोड़ रहे हैं और आरोप लगा रहे हैं कि इस साल अप्रैल से ही उन्हें जीसएटी बकाए का भुगतान नहीं किया गया है।
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कुछ बीजेपी शासित राज्यों समेत अन्य राज्यों के बीच यह आम राय है कि आज होने वाली जीएसटी परिषद की बैठक में बिना शर्त राजकोषीय घाटे की सीमा बढ़ाने की अनुमति मिले साथ ही बकाया जीएसटी भुगतान को भी हरी झंडी मिले।
वित्तीय संकट से जूझ रहे राज्य नए खर्चे नहीं बढ़ा पा रहे हैं, जबकि पिछले कुछ वर्षों में राज्य केंद्र से मिली राशि के करीब डेढ़ गुना तक पूंजीगत खर्चे बढ़ाते रहे हैं। यह संकट ऐसी स्थिति में आया है, जब राज्यों पर कोरोना महामारी की वजह से हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा देने का दबाव है। जीएसटी से होने वाली आय घटने के अलावा राज्य उत्पाद शुल्क और स्टाम्प शुल्क में आई कमी से भी परेशान हैं।
हालांकि, इस संकट को देखते हुए केंद्र सरकार ने राज्यों के लिए सशर्त उधार लेने की सीमा को बढ़ा दिया है लेकिन यह कदम ज्यादा कारगर नहीं क्योंकि केवल आठ राज्य ही इसके लिए अर्हता रखते हैं।
कोरोना महामारी के बीच में अब कई राज्यों के वित्त मंत्रियों ने केंद्र सरकार के खिलाफ जीएसटी भुगतान में बिलंब समेत अन्य कर संग्रह मुद्दों पर बोलना शुरू कर दिया है क्योंकि राज्यों के पास पेट्रोलियम, शराब और स्टाम्प ड्यूटी को छोड़कर कोई और कर संग्रह का अधिकार नहीं रह गया है। इन तीनों को छोड़ बाकी कर अब जीएसटी में शामिल किए जा चुके हैं। जीएसटी में राज्यों के कर राजस्व का लगभग 42 प्रतिशत हिस्सा है, और राज्यों के कुल राजस्व का लगभग 60 फीसदी जीएसटी से आता है।