प्रीति सिंह
देश में जिस तरह से कोरोना संकट के बीच सोशल मीडिया पर भ्रामक और फर्जी खबरों को वायरल किया जा रहा है, वह सरकार के लिए चुनौती बनती दिख रही है। अब तो हालत यह हो गई हैं मुख्यधारा की मीडिया फर्जी खबरें चलाने लगी है। सोशल मीडिया पर आई फर्जी खबरों और वीडियो की बाढ़ में कौन सही है यह पता लगा पाना बेहद मुश्किल हो गया है।
देश में कोरोना के केस आने के बाद से सोशल मीडिया पर इससे जुड़ी फर्जी खबर और वीडियो की बाढ़ आ गई है। और सबसे बड़ा सकंट यह है कि इन खबरों की विश्वसनीयता जाने बगैर चैटिंग एप व्हॉट्सएप पर लोग आगे बढ़ा दे रहे हैं। हालांकि बाद में यह संदेश झूठे साबित हो रहे हैं, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुका होता है। जिस मकसद से ऐसी खबरें वायरल की जा रही है वह अपना काम कर जाती है।
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हमारे देश में एक कहावत है-झूठ के पाव नहीं होते, लेकिन देश में पिछले कुछ सालों से यह कहावत चरितार्थ होती नहीं दिख रही। देश में सोशल मीडिया का इस्तेमाल गलत मकसद हासिल करने के लिए ज्यादा हो रहा है। सोशल मीडिया ने फर्जी खबरों को पाव नहीं पंख दे दिया है। मिनटों में फर्जी खबरें कश्मीर से कन्याकुमारी तक पहुंच जाती है और देखते ही देखते मामला तूल पकड़ लेता है। पिछले दिनों लोगों में भय पैदा करने के इरादे से कई ऐसी खबरें फैलाई गई, जो बाद में झूठी करार दी गई।
सोशल मीडिया और व्हॉट्सएप पर पिछले दिनों देश में लॉकडाउन को लेकर लेकर एक पोस्ट बहुत तेजी से वायरल हुई। इसमें दावा किया गया कि भारत में तालाबंदी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के लॉकडाउन प्रोटोकॉल के मुताबिक की गई है। वायरल संदेश में कहा गया कि 20 अप्रैल से 18 मई के बीच तीसरा चरण लागू होगा। इस संदेश में दावा किया गया कि डब्ल्यूएचओ ने लॉकडाउन की अवधि को चार चरणों में बांटा है और भारत भी इसका अनुसरण कर रहा है। इस संदेश को डब्ल्यूएचओ के साथ साथ भारत सरकार ने भी झूठा करार दिया।
Claim : A so-called circular, said to be from WHO is floating around on whatsapp, saying that it has announced a lockdown schedule.
Fact : @WHO has already tweeted it as #Fake ⬇️https://t.co/GB7rQ0t9lJ pic.twitter.com/3M5RBLoA3i
— PIB Fact Check (@PIBFactCheck) April 5, 2020
दो अप्रैल को देश का माहौल बिगाड़ने के लिए सोशल मीडिया पर कई वीडियो वायरल किया गया। इस वायरल वीडियो में पुलिस की गाड़ी में बैठा एक व्यक्ति पुलिस पर थूकते हुए दिख रहा है। इस वीडियो के बारे में दावा किया जा रहा था कि जमात में शामिल कोरोना संक्रमित लोगों ने पुलिस पर थूका ताकि उनमें भी संक्रमण फैल जाए। इस वीडियो को व्हॉट्सएप, ट्विटर और फेसबुक पर खूब शेयर किया गया, लेकिन जब इस वीडियो की सत्यता जांची गई तो यह फर्जी निकली। यह वीडियो महाराष्ट्र का था।
दो मार्च, 2020 को पब्लिश हुए इस वीडियो के मुताबिक, ‘एक अंडरट्रायल कैदी ने अपने साथ जा रहे पुलिस वाले से मारपीट की और उन पर थूका। दरअसल ये शख़्स पुलिस वालों से इसलिए नाराज था क्योंकि उसे वो खाना खाने की इजाजत नहीं दी गई जो उसके घर वाले उसके लिए लेकर आए थे।’ यह वीडियो महाराष्ट्र टाइम्स और मुंबई मिरर पर भी मिला। मुंबई मिरर ने इस वीडियो को 29 फरवरी, 2020 को शेयर किया है।
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एक और घटना का जिक्र करना जरूरी है। कुछ दिनों पहले ही व्हॉट्सएप पर एक संदेश बड़ी तेजी से वायरल हुआ कि व्हॉट्सएप ग्रुप में कोरोना वायरस को लेकर कोई मजाक या जोक साझा किया तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इस संदेश में लिखा था कि मजाक या जोक साझा करने पर ग्रुप एडमिन के खिलाफ धारा 68, 140 और 188 के उल्लंघन की ही तरह कार्रवाई की जाएगी। इस संदेश को प्रेस इनफॉर्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) ने इस संदेश को भी फर्जी करार दिया।
Fake message is going around on social media claiming that legal action would be taken against admin and group members who post jokes on #Coronavirus , hence group admin should close the group for 2 days.
This is #Fake! No such order has been issued by the Government pic.twitter.com/TFB5GCH2Vg
— PIB Fact Check (@PIBFactCheck) April 6, 2020
ऐसा नहीं है कि सरकार इससे वाकिफ नहीं है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने फेसबुक और चीनी वीडियो एप टिकटॉक से ऐसे वीडियो हटाने को कहा है जो गलत जानकारी को बढ़ावा दे रहे हैं। वहीं दिल्ली स्थित डिजिटल एनालिटिक्स कंपनी ने कुछ वीडियो के विश्लेषण के बाद केंद्र सरकार को रिपोर्ट सौंपी है। इस कंपनी ने एक वीडियो में खास पैटर्न की पहचान की है। सोशल मीडिया वीडियो कुछ धार्मिक मान्यताओं का इस्तेमाल करते हुए मुसलमानों को लक्ष्य में रखते हुए बनाए गए है। इन वीडियो में धार्मिक मान्यताओं का उपयोग करते हुए, वायरस पर स्वास्थ्य सलाह की अवहेलना को उचित ठहराया जा रहा है।
कोरोना संकट के बीच सरकार के लिए ऐसी खबरें चुनौती बन रही है। एक ओर सरकार लोगों को लॉकडाउन में संयम और सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने की अपील कर रही है तो वहीं दूसरी ओर सोशल मीडिया पर भ्रामक खबरों की वजह से अफरा-तफरी मच जा रही है। आठ अप्रैल को उत्तर प्रदेश में ऐसा ही कुछ देखने को मिला। यूपी सरकार द्वारा एक कुछ जिलों के सील करने की खबर चली, जिसमें ये कहा गया कि तीस अप्रैल तक यूपी के 15 जिले सील किये जा रहे हैं। फिर क्या राशन और दवा की दुकानों पर लोगों का मजमा लग गया। हालांकि यह गलती सरकार की तरह से हुई थी, लेकिन खबर सोशल मीडिया के मार्फत 10 मिनट में यूपी के सभी में पहुंच गया। शाम 5 बजे स्थिति साफ हुई, लेकिन दो घंटे में ही लोग सड़क पर उतर आए और सारा सोशल डिस्टेंसिंग धरा का धरा रह गया।
खैर इन चिंताओं के लेकर ही सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने टिकटॉक और फेसबुक को पत्र लिखा है। पत्र में कहा है गया कि ऐसे यूजर्स को वे अपने मंच से हटा दें जो गलत जानकारी फैला रहे हैं और साथ ही उनकी जानकारी रखने को कहा है ताकि बाद में जरूरत पडऩे पर पुलिस और प्रशासन से साझा की जा सके।
अपने एक बयान में टिकटॉक ने कहा है कि वह सरकार के साथ सक्रियता से काम कर रहा है। वहीं फेसबुक ने फर्जी खबरों के बारे में कहा, “हम अपने मंच पर गलत सूचना और हानिकारक सामग्री को फैलने से रोकने के लिए आक्रामक कदम उठा रहे हैं।” इसी कड़ी में सात अप्रैल को व्हॉट्सएप ने मैसेज फॉरवडिंग को सीमित कर दिया था। कंपनी के नए नियम के मुताबिक फॉरवर्ड मैसेज को सिर्फ एक चैट के साथ ही साझा किया जा सकेगा।
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भारत में सोशल मीडिया पर फर्जी खबरें व वायरल पोस्ट को नियंत्रित करने के लिए लंबे समय से कवायद चल रही है, लेकिन अब तक इस दिशा में कुछ नहीं हो पाया। पिछले साल 24 सितंबर को एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने फेक न्यूज पर नियंत्रण करने को लेकर निर्देश जारी किया था। कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि हमें ऐसी गाइड लाइन की जरूरत है, जिससे ऑनलाइन अपराध करने वालों और सोशल मीडिया पर भ्रामक जानकारी पोस्ट करने वालों को ट्रैक किया जा सके। सरकार ये कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकती कि उसके पास सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने की कोई तकनीक नहीं है। जस्टिस दीपक गुप्ता ने सख्त लहजे में कहा था कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म और यूजर्स के लिए सख्त दिशा-निर्देशों की जरूरत है।
कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद देश में इस बात पर खूब बहस हुई थी कि क्या भारत में यह संभव है, तब आईटी के विशेषज्ञों ने साफ तौर पर कहा था कि यहां सोशल मीडिया को नियंत्रित कर पाना फिलहाल संभव नहीं है। विशेषज्ञों के अनुसार भारत में भी आईटी एक्ट है, जिसके तहत इस तरह के प्रावधान हैं, लेकिन ये कानून बहुत स्पष्ट नहीं है। इसके अलावा ज्यादातर राज्यों की पुलिस या अन्य जांच एजेंसियों को आईटी एक्ट के बारे में बहुत कम जानकारी है। ऐसे में लोग बिना सोचे-समझे किसी भी वायरल पोस्ट को फारवर्ड कर देते हैं।
आईटी विशेषज्ञों का कहना था कि अन्य मुल्कों में देखे में तो इस दिशा में अच्छा काम कर रहे हैं। भारत को उन देशों से मदद लेकर इस दिशा में काम करना चाहिए। फिलहाल यह वक्त अब भारत में आ गया है कि इस दिशा में सरकार ठोस कदम उठाए। जिस तरह मलेशिया, सिंगापुर, आस्ट्रेलिया, रूस, फ्रांस, जर्मनी, चीन और यूरोपियन देशों में जनता में भय फैलाने, माहौल खराब करने वाले या किसी भी तरह की फेक न्यूज फैलाने वालों के लिए भारी भरकम जुर्माना राशि और जेल की सजा का प्रावधान है, वैसा ही कुछ यहां भी करने की जरूरत है।