प्रीति सिंह
जब हम कहीं फोन मिलाते हैं तो रिंग जाने से पहले एक महिला की आवाज आती है। वह महिला कोरोना से बचने की अपील करती है और साथ में कहती है कि बीमारी से बनाएं दूरी बीमार से नहीं। अपनों की करें देखभाल तो देश जीतेगा कोरोना से हर हाल।
यह अपील काफी दिनों से की जा रही है, लेकिन कुछ घटनाओं को देखकर तो ऐसा लग रहा है कि लोगों पर इसका असर नहीं दिख रहा है। कोरोना इंसान को ही नहीं बल्कि रिश्तों को भी संक्रमित कर रहा है।
शायद दुनिया में भारत ही एक ऐसा देश जहां हर चीज पर रिश्ता भारी पड़ता है। हमारे बारे में कहा जाता है कि हम रिश्तों को जीते हैं। रिश्ते बचाने के लिए जान की भी परवाह नहीं करते, लेकिन कोरोना काल में सब कुछ बदल रहा है। कोरोना से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग अपनाने की सलाह दी गई, लेकिन अब हालत यह है कि लोग शारीरिक रूप से तो दूर हुए ही है बल्कि मानसिक रूप से भी दूर हो गए हैं।
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जब कोरोना ने भारत में दस्तक दिया था तो संक्रमण से बचने के लिए जो गाइडलाइन दी गई थी तो उसको देखकर कहा जा रहा था कि कोरोना के जाने के बाद रिश्ते-नाते बहुत हद तक बदल चुके होंगे। कोरोना कब जायेगा यह किसी को नहीं मालूम लेकिन लोगों की यह आशंका कोरोना काल में ही सच साबित होने लगी है।
पिछले दिनों हैदराबाद में एक ऐसा मामला सामने आया जिसमें रिश्तों पर कोरोना भारी पड़ गया। हैदराबाद के गांधी अस्पताल में 14 जून को एक 58 वर्षीय कोरोना संक्रमिता महिला को भर्ती कराया गया। पूरी तरह ठीक हो जाने के बाद उन्हें 30 जून को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया। उनके परिजनों को सूचना दी गई कि वे आकर ले जाए। डिस्चार्ज के कई घंटे बीत गए लेकिन महिला को लेकर उनके परिवार का कोई सदस्य नहीं आया। जब कोई नहीं आया तो महिला को दोबारा आइसोलेशन वॉर्ड में भेज दिया गया।
यह घटना तो एक बानगी है। अकेेले हैदराबाद के गांधी अस्पताल में ही 35 कोरोना के मरीज हैं, जो अब एकदम से ठीक हो चुके हैं लेकिन उनके परिजन ले जाने को तैयार नहीं हैं। अस्पताल का कहना है कि कि जब कोई व्यक्ति ठीक होकर डिस्चार्ज के लिए तैयार हो जाता है तो हम परिवार को सूचना देते हैं। कुछ मामलों में परिवार कहता है कि उनके घर पर छोटे बच्चे हैं तो वे जोखिम नहीं उठा सकते, इसलिए वे ठीक हो चुके अपने परिजन को वापस घर नहीं लाते। वे हमसे कुछ और दिनों के लिए मरीज को अस्पताल में ही रखने को कहते हैं।
कोरोना से लोग इस कदर डरे हुए है कि अपने ही मां-बाप को बच्चे घर ले जाने को तैयार नहीं हैं। पूरी तरह ठीक हो जाने के बाद भी परिजनों से दूरी बनाए हुए हैं। वह उन्हें घर न लाना पड़े इसके लिए तरह-तरह का बहाना बना रहे हैं। इतना ही नहीं वह अपने बीमार मां या बाप को फोन तक नहीं करते कि कहीं वह घर ले जाने का न कह दें।
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अस्पताल के मुताबिक ठीक हुए कोरोना मरीज को घर न ले जाने में सबसे ज्यादा इस्तेमाल में लाया गया बहाना ‘घर में छोटे बच्चे हैंÓ का होता है। कुछ लोग कहते हैं कि उनका फ्लैट और घर बहुत छोटा है, सिर्फ एक छोटा बाथरूम है, इसलिए वे ठीक हो चुके मरीज को कुछ दिनों तक आइसोलेशन में नहीं रख सकते।
जिस देश में रिश्तों को जिया जाता हैं वहां आज रिश्तों पर कोरोना भारी पड़ रहा है। लोग अपनों से दूरी बनाने के लिए तरह-तरह के बहाने बना रहे हैं। उनकी बेरूखी का असर अस्पतालों में इंतजार कर रहे उनके परिजनों पर पड़ रहा है। वह अनाथ जैसा महसूस कर रहे हैं। जब उन्हें सबसे ज्यादा अपनों के साथ और स्नेह की जरूरत है तो उनके अपने उनसे दूरी बनाएं हुए हैं। डॉक्टरों की माने तो ऐसे मरीजों पर परिजनों की बेरूखी का असर दिख रहा है। जिन्हें इस मुश्किल समय में रिकवरी के बाद परिवार की मदद की जररूत है, ये लोग अनाथ महसूस करते हैं, जबकि कुछ में तो डिप्रेशन के लक्षण हैं।
इस समय जो लोग अपनों की बेरूखी का सामना कर रहे हैं, उनसे आप क्या उम्मीद करते हैं। क्या वह ये पीड़ा भूल जायेेंगे? जाहिर है नहीं भूलेंगे। जैसें इंसान के शरीर में कोई संक्रमण होता है तो शरीर में कुछ न कुछ छोड़ जाता है वैसे ही रिश्तों में एक बार संक्रमण हो जाए तो वह भी पहले जैसा नहीं रहता। रिश्तों के बीच में बर्फ की सिल्ली आ जाती है जिसे छूने पर सिर्फ आह निकलती है।