न्यूज डेस्क
कोरोना वायरस का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। कोरोना ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है। गरीब-अमीर सभी इससे प्रभावित हुए हैं। भारत की अर्थव्यवस्था को भी कोरोना वायरस की वजह से तगड़ा झटका लगा है। इतना ही नहीं कोरोना वायरस का असर रेमिटेंस (प्रवासियों द्वारा भेजे जाने वाले धन) पर भी पडऩे वाला है।
प्रवासी भारतीय अपने देश धन भेजने के मामले में सबसे आगे हैं। यही वजह है कि लंबे समय से प्रवासियों द्वारा भेजे जाने वाले धन (रेमिटेंस) के मामले में भारत शीर्ष पर रहा है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा। जानकारों के अनुसार कोरोना का असर रेमिटेंस पर भी पडऩे वाला है।
विश्व बैंक के अनुसार, दुनिया के अधिकांश मुल्कों के कोरोना की वजह से लॉकडाउन में जाने से वैश्विक तौर पर प्रवासियों द्वारा भेजी जाने वाली रकम (ग्लोबल रेमिटेंस) में लगभग 20 फीसदी की बड़ी कमी आ सकती है।
विश्व बैंक के ‘माइग्रेशन एंड डेवलपमेंट ब्रीफ’ द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्लोबल रेमिटेंस का सबसे बड़ा हिस्सा पाने वाला भारत भी इससे प्रभावित होगा। 2018 में भारत को ग्लोबल रेमिटेंस के रूप में 79 अरब डॉलर मिले थे। भारत को जिन देशों से सबसे अधिक रेमिटेंस मिलता है, उनमें अमेरिका दूसरे नंबर पर है। कोविड-19 से अमेरिकी अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह प्रभावित है, जिसका असर भारत पर भी पड़ने की संभावना है।
विश्व बैंक ने अनुमान लगाया है कि साल 2020 में भारत में रेमिटेंस 23 फीसदी कम आ सकती है। इस साल प्रवासी भारतीय 64 बिलियन डॉलर रेमिटेंस भेज सकते हैं। वहीं 2019 में देश में 83 बिलियन डॉलर की रकम भेजी गई थी। पिछले साल रेमिटेंस में 6 फीसदी तक की बढ़त रही थी।
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विश्व बैंक की ओर से जारी बयान के अनुसार कोरोना वायरस के संक्रमण और लॉकडाउन की वजह से दुनियाभर की अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है। यही वजह है कि इस साल ग्लोबली रेमिटेंस में 20 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है। वहीं भारत के संदर्भ में बात करें तो रेमिटेंस 23 फीसदी कम रहने का अनुमान है। यह बीते कुछ सालों की सबसे बड़ी गिरावट है।
पड़ोसी मुल्कों में कितना धन आने का है अनुमान
भारत के अलावा पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की बात करें तो यहां भी 23 फीसदी की गिरावट का अनुमान विश्व बैंक ने जताया है। इस साल प्रवासी पाकिस्तानी 17 बिलियन डॉलर रेमिटेंस भेज सकते हैं। एक साल पहले यानी 2019 में 22.5 बिलियन डॉलर प्रवासी पाकिस्तानियों ने पैसे भेजे थे। वहीं बांग्लादेश में इस साल 14 बिलियन डॉलर रेमिटेंस आने का अनुमान है। यह एक साल पहले के मुकाबले 22 फीसदी कम है। इसी तरह, नेपाल और श्रीलंका के रेमिटेंस में क्रमश: 14 फीसदी और 19 फीसदी की गिरावट आ सकती है।
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यूरोप-सेंट्रल एशिया का क्या रहेगा हाल
विश्व बैंक के अनुमान के मुताबिक यूरोप और सेंट्रल एशिया में 27.5 फीसदी रेमिटेंस कम रहने का अनुमान है। इसी तरह साउथ एशिया में 22.1 फीसदी, मिडिल ईस्ट और नॉर्थ अफ्रीका में 19.6 फीसदी कम रेमिटेंस आ सकता है। इस मामले में लैटिन अमेरिका और कैरिबियन को 19.3 फीसदी का नुकसान होने का अनुमान है।
क्या होता है रेमिटेंस?
किसी दूसरे देश में रहने वाला एक प्रवासी अपने मूल देश को बैंक, पोस्ट ऑफिस या ऑनलाइन ट्रांसफर के जरिए धनराशि भेजता है तो उसे रेमिटेंस कहते हैं। उदाहरण के लिए आस्ट्रेलिया, सिंगापुर या अमेरिका में रहने वाले प्रवासी भारतीय, भारत में रहने वाले अपने परिजनों के लिए पैसे भेजते हैं उस रकम को रेमिटेंस की कैटेगरी में रखा जाता है। रेमिटेंस का फायदा देश की इकोनॉमी को होता है। इसके जरिए हम विदेशी मुद्रा अर्जित करते हैं, जो इकोनॉमी के लिए अच्छी बात होती है।
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