जुबली न्यूज़ डेस्क
कोरोना संकट की इस घड़ी में तरह-तरह क बदलाव देखने को मिल रहे हैं। लोग अब इस महामारी के साथ ही जीना सीख रहे हैं। जो गरीब है सो गरीब है वो सरकार की मदद के ही भरोसे है वहीं नौकरी करने वाले कई लोग अपने गांव पहुंच कर नए काम धंधे की शुरुआत करने की योजना बना रहे हैं पर हमेशा की तरह किसान एकबार फिर से सबसे ज्यादा दंश झेल रहा है।
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बता दें कि बेशक शहरी इलाकों में सब्जियों के दामों में बढ़ोतरी ने सब ध्यान खींचा है कई जगह इस संकट के समय में लोगों की परेशानी का नाजायज फायदा उठाने पर कार्यवाही भी की गई है लेकिन ग्रामीण स्तर पर ठीक उलट स्थिति देखने को मिल रही है।
बेबस सा हो गया है सब्जी बेचने वाला किसान
आज सबको एक मात्र चिंता है राशन औऱ पैसे का भंडारण कैसे हो तब देखेंगे की ग्रामीण क्षेत्रों में आप सब्जी खरीदने जायेंगे जो झोला पहले 300 रुपये में भरकर आता था वो अब 150 में आने लगा है. यह स्थिति उस ओर इशारा कर रही है जहाँ किसान औने पौने दामों में भी सब बेचने को तैयार हो जाता है उसकी लागत के वाज़िब दाम हो या ना हो।
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कारोबारी अभी भी कारोबार कर रहे है लेकिन किसान का कारोबार बिलकुल चौपट हो गया है। किसान के पास पहुँचने पर वो रेट तो बतलाता है लेकिन बिचौलिया जो रेट दे देते है संकट की घड़ी में किसान उसी रेट पर अपना माल बेच देते हैं।
इसमें सवाल कई है मुनाफाखोर अपना मुनाफा भी उन किसानों से कमा रहे है लेकिन देश के इस संकट के समय में किसानों ने मोलभाव करना बंद कर दिया है।
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