जुबिली न्यूज डेस्क
कोरोना महामारी का असर भारत पर बुरी तरह पड़ा है। पहले से बबार्द अर्थव्यवस्था इस दौर में और बर्बाद हो गई। भारत का पहला छमाही नकारात्मक रहा है और अगला छमाही भी नकारात्मक रहने का अनुमान है।
कोरोना महामारी को रोकने के लिए सरकार द्वारा किया गया देशव्यापी तालाबंदी ने अर्थव्यवस्था को काफी चोट पहुंचाया है। तालाबंदी के चलते आर्थिक गतिविधियों को चालू रखने के लिए केंद्र सरकार द्वारा रोजगार और रियायती राशन के लिए जारी कुल फंड की 45 फीसदी के करीब राशि खर्च हो गई।
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सरकारी आंकड़ों के मुताबिक ये राशि 2020-21 वित्त वर्ष के पहले चार महीनों में खर्च की गई है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA) के जरिए 9 करोड़ घरों को अप्रैल और जुलाई में काम मिला। इसी तरह राष्ट्रीय खाद्य अधिनियम (NFSA) के तहत रियायती दरों पर 7.20 करोड़ लोगों को अप्रैल-जुलाई के बीच हर महीना राशन दिया गया।
पूरे देश में 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा की जो 25 मार्च से अमल में आ गया और अगले 68 दिनों तक लागू रहा। इस दौरान सभी विनिर्माण और सेवा इकाइयां बंद रहीं। इसी तालाबंदी में बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों का पलायन शुरू हो गया। इनमें अधिकतर दैनिक मजदूर थे जो उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों से शहरों में आए थे।
रिपोर्ट के मुताबिक मनरेगा के तहत जुलाई में 2.42 करोड़ घरों को रोजगार मुहैया कराया गया। ये संख्या जून में 3.89 करोड़ और मई में 3.31 करोड़ थी। इस योजना के तहत ग्रामीण परिवार में एक सदस्य को साल में कम से कम 100 दिन काम की गारंटी दी जाती है।
मनरेगा के केंद्रीय सलाहकार परिषद के पूर्व सदस्य और राजस्थान में ग्रामीण इलाकों में काम करने सामाजिक कार्यकर्ता निखिल दे ने बताया, ‘जुलाई में इस योजना के तहत काम पाने वाले लोगों की संख्या कम थी क्योंकि प्रवासी श्रमिक वापस शहरों में लौट आए। इसके अलावा मजदूर बुवाई के काम में जुट गए, जो जुलाई में अच्छी बारिश के बाद शुरू हो जाता है।’
मालूम हो कि इस साल हृक्रश्वत्र्र के तहत प्रदान किया गया रोजगार साल 2019 और साल 2018 की तुलना में लगभग 50 फीसदी अधिक है। इस अवधि के दौरान 100 दिनों का रोजगार पाने वाले लोगों की संख्या 2019 से लगभग तीन गुना है।
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