न्यूज डेस्क
कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए देशव्यापी तालाबंदी से जो समस्याएं आ रही है वह कोरोना से भी घातक साबित होने वाली हैं। देश में करोड़ों नौकरियों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। छोटे-बड़े उद्योग दिवालियां होने के कगार पर पहुंच रहे हैं। आर्थिक जानकार लगातार नौकरियां बचाने के लिए अर्थव्यवस्था खोलने की बात कर रहे हैं। उनका कहना है कि अर्थव्यवस्था रहेगी तभी कोरोना की जंग भी लड़ी जा सकती है।
दिल्ली, मुंबई, पुणे, लुधियाना, अहमदाबाद जैसे कई शहरों में छोटे-बड़े उद्योग तालाबंदी की वजह से दिवालियां होने के कगार पर आ गए हैं। कोई अपने कामगारों को सैलरी नहीं दे पा रहा है तो नकदी का संकट झेल रहा है।
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एक स्टार्टअप कंपनी को 90 लाख मास्क बनाने का ऑर्डर मिला है लेकिन उसे अभी भी बैंक से पैसे मिलने का इंतजार है, क्योंकि उसके पास फंड की कमी है। लुधियाना में भी एक एक्सपोर्ट कंपनी का बिल क्लियर नहीं हो पा रहा है।
कोरोना संकट की वजह से देशभर में माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज (MSME) से जुड़ी ऐसी तमाम कंपनियां हैं जो कोरोना वायरस की वजह से देशव्यापी लॉकडाउन में निराशा के अंधकार के बीच डूब रही हैं।
ऐसी कंपनियां देश में बड़े औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र की स्थापना करती हैं और बड़े उद्योगों के लिए सहायक इकाइयों के रूप में बड़े पैमाने पर काम करती हैं।
ऐसी 5 करोड़ इकाइयों में करीब 11 करोड़ लोग काम करते हैं। कोरोना संकट और देशव्यापी लॉकडाउन में सिर्फ ये 11 करोड़ नौकरियों ही दांव पर नहीं हैं बल्कि भविष्य में होने वाले देश के कुल विनिर्माण उत्पादन का 45 प्रतिशत, 40 प्रतिशत निर्यात और राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 30 प्रतिशत भी दांव पर आ चुका है।
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बीते दिनों भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी सरकार को सलाह दी थी कि लॉकडाउन को जल्द से जल्द सावाधानी के साथ खोलने की जरूरत है ताकि लोगों की नौकरियां बची रह सकें। उन्होंने कहा कि हमारे पास लंबे समय तक लोगों को एक सीमा से ज्यादा मदद की ताकत नहीं है। राजन ने कहा था कि पूरा फोकस इस बात पर होना चाहिए कैसे ज्यादा से ज्यादा अच्छी गुणवत्ता वाली नौकरियां तैयार की जा सकें।
वहीं इंडस्ट्री लीडर्स और एक्सपर्ट्स भी सरकार से मांग कर चुके हैं कि स्थिति को संभालने के लिए पैकेज जारी किए जाने की जरूरत है। राजन से पहले देश के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाह अरविंद सुब्रमण्यन ने भी कहा था कि पॉलिसीमेकर्स को इस आर्थिक गिरावट से निपटने का प्लान तय करना चाहिए।
सुब्रमण्यन ने कहा था कि यदि लॉकडाउन को लंबे समय तक जारी रखा गया तो अर्थव्यवस्था को भी कीमत चुकानी होगी। खासतौर पर किसानों की आय को दोगुना करने और देश की 20 फीसदी आबादी को गरीबी रेखा से बाहर लाने का वादा करने वाली सरकार के लिए यह झेलना मुश्किल हो जाएगा।
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