न्यूज डेस्क
ये कोरोना काल है। इस काल में धीरे-धीरे सब बदल रहा है। इस काल में सकारात्मकता की जगह नहीं है। इसमें सिर्फनकारात्मकता हावी है। कोरोना वायरस से बचने के लिए हम मानवता को भूल गए हैं। कोरोना काल में नफरत और बाहरी लोगों के भय या जेनोफोबिया की एक सुनामी आ गई है। हम कोरोना वायरस के बहाने एक-दूसरे को हराने में लगे हुए हैं। पूरी दुनिया में हेट स्पीच इस कदर बढ़ चुकी है कि इसका असर दशकों तक दिखेगा। कुल मिलाकर कोरोना वायरस दुनिया एक ऐसे दौर में ले जा रहा है जहां सिर्फ नफरत दिखाई दे रही है।
कोरोना महामारी का हर तबके पर व्यापक असर पड़ा है। कोरोना ने सिर्फ अर्थव्यवस्था ही तबाह नहीं की है बल्कि मानसिक स्तर पर भी लोगों को बदला है। कोरोना ने लोगों के नजरिये को भी प्रभावित किया है। तभी तो संयुक्त राष्ट्र संघ कई बार पूरी दुनिया को इसको लेकर आगाह कर चुका है।
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एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने कहा है कि कोरोनावायरस की वजह से नफरत और बाहरी लोगों के भय या जेनोफोबिया की एक सुनामी आ गई है और इसका अंत करने के लिए पुरजोर कोशिश की जरूरत है।
बिना किसी एक देश का नाम लिए, गुटेरेश ने अपने एक बयान में कहा, “महामारी की वजह से नफरत, जेनोफोबिया और आतंक फैलाने की एक सुनामी आ गई है। इंटरनेट से लेकर सड़कों तक, हर जगह विदेशियों के खिलाफ नफरत बढ़ गई है। यहूदी-विरोधी साजिश की थ्योरियां भी बढ़ गई हैं और कोविड-19 से संबंधित मुस्लिम-विरोधी हमले भी हुए हैं।”
दरअसल संयुक्त राष्ट्र के महासचिव का बयान यूं ही नहीं आया है। दुनिया के कई मुल्कों से मानवता को शर्मसार करने वाली तस्वीरें सामने आ रही हैं। सोशल मीडिया पर तो ऐस संदेशों और वीडियो की बाढ़ आ गई है जो नफरत फैलाने में महती भूमिका निभा रहे हैं।
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भारत भी इससे अछूता नहीं है। भारत में भी यह प्रवृत्ति और विशेष समूहों के खिलाफ नफरत फैलाने की कोशिशें देखी जा रही हैं। पिछले दो माह से हर दिन किसी न किसी शहर से अमानवीय खबरें सामने आ ही जा रही है। सोशल मीडिया पर तो समाज को बांटने का पूरा खेल खेला जा रहा है।
इतना ही नहीं उन पत्रकारों, स्वास्थ्यकर्मियों, राहत-कर्मियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जिन्हें हम कोरोना वरिर्यस कहते हैं और सरकार उनका सम्मान करने की अपील कर रही है, उनके साथ दुव्र्यवहार किया जा रहा है। इस समय कोरोना से लड़ाई डॉक्टर के भरोसे ही लड़ी जा रही है और इस पृथ्वी के भगवान पर हमला हो रहा है। ये मामले रूकने का नाम नहीं ले रहे हैं, जबकि इन लोगों को सुरक्षा देने के लिए कई राज्यों में सरकारों ने कठोर कानून भी बना दिया है।
पिछले कुछ दिनों में इन लोगों को निशाना बनाए जाने के कई प्रकरण सामने आए। सात मई को ही महाराष्ट्र के नासिक में ही कोविड-19 पॉजिटिव पाए गए एक डॉक्टर को उसके पड़ोसियों ने उसे आवासीय परिसर में घुसने नहीं दिया। हैरानी की बात यह है कि कुछ ही दिनों पहले इन्हीं पड़ोसियों ने इस डॉक्टर को “कोरोना-योद्धा” की उपाधि दे कर उनकी प्रशंसा की थी और उनके लिए तालियां बजाई थीं। जाहिर है ये सब चिंता बढ़ाने वाले मामले हैं। लोगों का यह डर और नफरत समाज के बीच ऐसी खाई पैदा कर रहा है जिसकी भरपाई करने में कई साल लग जायेेंगे।
यह तो भारत की बात हो गई। ऐसे कई मुल्कों में ऐसे ही हालात दिख रहे हैें। इन सारे हालात पर संयुक्त राष्ट्र नजर बनाए हुए है। तभी महासचिव बार-बार दुनिया को आगाह करने के साथ-साथ अपील भी कर रहे हैं।
शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंटोनियोम गुटेरेश ने कहा, प्रवासियों और शरणार्थियों को “वायरस का स्त्रोत बता कर उनका तिरस्कार किया गया है, और फिर उसके बाद उन्हें इलाज से वंचित रखा गया है।” उन्होंने यह भी कहा, कि इसी बीच “घिनौने मीम भी निकल कर आए हैं जो बतलाते हैं” कि बुजुर्ग जो कि वायरस के आगे सबसे कमजोर लोगों में से हैं, ” सबसे ज्यादा बलिदान करने के योग्य भी है। ” गुटेरेश ने इस बात पर भी ध्यान दिलाया कि “पत्रकारों, घोटालों और जुर्म का पर्दाफाश करने वाले व्हिसलब्लोओर, स्वास्थ्यकर्मी, राहत-कर्मी और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को महज उनका काम करने के लिए निशाना बनाया जा रहा है।”
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने दुनिया से अपील की है कि “पूरी दुनिया में हेट स्पीच का अंत करने के लिए एक पुरजोर कोशिश” की जरूरत है। उन्होंने विशेष रूप से शिक्षण संस्थानों की जिम्मेदारी को रेखांकित किया और कहा कि इन संस्थानों को युवाओं को “डिजिटल साक्षरता” की शिक्षा देनी चाहिए क्योंकि वे “कैप्टिव दर्शक हैं और जल्दी निराश हो सकते हैं।”
गुटेरेश ने मीडिया और विशेष रूप से सोशल मीडिया कंपनियों से भी अपील की कि वे “नस्ली, महिला-विरोधी और दूसरी हानिकारक सामग्री के बारे में सूचित करें और उसे हटाएं भी।”
संयुक्त राष्ट्र संघ प्रमुख पहले भी इन खतरों के बारे में आगाह कर चुके हैं। कुछ ही दिनों पहले उन्होंने कहा था कि कोरोना वायरस महामारी तेजी से एक मानव संकट से मानवाधिकार संकट में बदल रही है।
अपने एक वीडियो संदेश में उन्होंने कहा था कोविड-19 से लडऩे में जन सुविधाओं को लोगों तक पहुंचाने में भेदभाव किया जा रहा है और कुछ ढांचागत असमानताएं हैं जो इन सेवाओं को सब तक पहुंचने नहीं दे रहीं हैं।
उनका कहना था कि इस महामारी में जो देखा गया है उसमें “कुछ समुदायों पर कुछ ज्यादा असर, हेट स्पीच का उदय, कमजोर समूहों को निशाना बनाया जाना, और कड़ाई से लागू किए गए सुरक्षा के कदम शामिल हैं जिनसे स्वास्थ प्रणाली का काम प्रभावित होता है”।
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