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मुकम्मल आज़ादी का नाम है कान्स्टीट्यूशन

शबाहत हुसैन विजेता

26 नवम्बर 1949. हिन्दुस्तान की हिस्ट्री का वह सुनहरा दिन जब हमारा अपना कांस्टीट्यूशन मुकम्मल हुआ. हालांकि यह 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया.

आईन के लिए जितनी ज़रूरी आज़ादी है, उतना ही ज़रूरी कांस्टीट्यूशन भी है. कहने को यह सिर्फ एक किताब है लेकिन हकीकत यह है कि यही किताब हमें हमारे हकूक दिलाती है.

हम शुक्रगुज़ार हैं अपने फ्रीडम फाइटर्स के जिन्होंने हमें गुलामी के पिंजरे से आज़ादी दिलाई. अपनी मर्जी की ज़िन्दगी जीने का हमें मौका मुहैया कराया.

आज़ाद हिन्दुस्तान में जब हमारे पास कांस्टीट्यूशन है, हुकूमत है, अपनी बात कहने की आज़ादी है. तो फिर वो कौन सी चीज़ें हैं जो हमें ज़िन्दा रखने का सबब हैं. वो कौन सी कमियां हैं जिन्हें लेकर हमें प्रोटेस्ट करने होते हैं. वो कौन सी बातें हैं जिनके लिए हुकूमत को रात दिन काम करना होता है.

आजादी के 73 साल गुज़र जाने के बाद भी हिन्दुस्तान की आईन के सामने चैलेंजेज का एवरेस्ट खड़ा है. चैलेन्ज बदलते रहते हैं मगर कभी खत्म नहीं हो पाते. एक चैलेन्ज खत्म होता है तो दूसरा सामने आ जाता है. हकीकत यह भी है कि यही चैलेंजेज हमारी ज़िन्दगी की वजह है.

ज़िन्दगी हमेशा कुछ नया हासिल करने का नाम है. जिस दिन सब कुछ मिल गया उसी दिन ज़िन्दगी का मकसद खत्म हो जाता है. यही वजह है कि यह चैलेंजेज भी बहुत ज़रूरी हैं.

अच्छी एजुकेशन हासिल करना इस दौर का सबसे बड़ा चैलेन्ज है. हुकूमत ने स्कूल बनाए हैं. वक्त गुजरने के साथ-साथ इन स्कूलों में भी बदलाव की ज़रूरत भी होती है. सरकार स्कूलों के मुकाबले प्राइवेट स्कूल तमाम तैयारियों के साथ खड़े हो गए हैं. प्राइवेट स्कूलों में अच्छी इमारतें हैं. ज्यादा काबिल टीचर हैं. उनके पास अच्छी लेबोरेट्री हैं. शानदार लायब्रेरी हैं. जब सब कुछ शानदार है तो फीस भी सरकारी स्कूल के मुकाबले कई गुना है.

हर माँ-बाप यही चाहते हैं कि उनके बच्चे अच्छी एजूकेशन हासिल करें लेकिन एजूकेशन अब बाज़ार में तब्दील होने लगी है. जितनी बेहतर एजूकेशन चाहिए उतनी ही ज्यादा रकम खर्च करनी होगी. यह ज्यादा रकम कहाँ से आये माँ-बाप के लिए यह बड़ा चैलेन्ज है.

दिल्ली की हुकूमत ने छह सरकारी स्कूलों को प्राइवेट स्कूलों से बेहतर कर एक मिसाल पेश की. यह इतने शानदार स्कूल बन गए कि अमेरिकन प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रम्प को पीएम मोदी ने वह स्कूल दिखाए. दिल्ली की तरह से हिन्दुस्तान के बाक़ी सूबों की हुकूमतों को भी सरकारी स्कूलों को बेहतर बनाना चाहिए. एक साथ सभी स्कूलों को बेहतर नहीं किया जा सकता लेकिन साल में एक स्कूल भी अच्छा बनाया जाए तो हमारी नई जनरेशन को तरक्की का मौका मिल सकता है.

यह कोरोना का दौर है. यह ऐसी बवा है जिसने हर खास-ओ-आम को परेशान कर दिया है. इस बवा की कोई दवा नहीं है. कोरोना पूरी दुनिया के लिए सबसे बड़ा चैलेन्ज बनकर सामने आया है. इसकी वजह से इकानामी पूरी तरह से चरमरा गई है. लोगों की नौकरियां चली गई हैं. बेरोजगारी बहुत बुरी तरह से बढ़ गई है.

हुकूमत ने हालात के मद्देनज़र मुफ्त अनाज की स्कीम चलाई है, ताकि कोई भूख से न मर सके. दिक्कत की बात यह है कि नौकरीपेशा जो लोग अच्छा ख़ासा पैसा कमा रहे थे और जिनकी सोसायटी में अच्छी रेपुटेशन थी, बेरोजगार होने के बाद अगर वह भूखे भी हैं तो भी राशन की दुकान पर जाकर हुकूमत से मिल रहा अनाज नहीं ले सकते. ऐसे लोगों के लिए ज़िन्दगी को चलाते रहना भी बहुत बड़ा चैलेन्ज है.

हिन्दुस्तान के सामने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान और चीन भी बड़ा चैलेन्ज बने हुए हैं. पाकिस्तान आये दिन सीजफायर तोड़कर मुसीबत बना रहता है तो चीन लगातार हमारी ज़मीन पर कब्ज़ा जमाता चला जा रहा है. चीन ने हिन्दुस्तान के खिलाफ जिस तरह की चालें चली हैं उससे निबटना हिन्दुस्तान की हुकूमत के लिए बहुत बड़ा चैलेन्ज है.

चीन ने हमारे खिलाफ नेपाल को खड़ा कर दिया. चीन ने पीओके पर काफी हद तक अपनी पकड़ मज़बूत कर ली है. लद्दाख में वह काफी अन्दर तक घुस ही आया है. अरुणांचल प्रदेश की तरफ भी वह बदनीयती से देखा करता है. श्रीलंका में पोर्ट बनाने के बहाने से बैठा हुआ है. पाकिस्तान में भी चीन ने दो जगह पर अपनी फौजें जमा कर रखी हैं. चीन, पाकिस्तान और नेपाल जो हालात बना रहे हैं वह कहने को तो हुकूमत के सामने के चैलेन्ज हैं मगर हकीकत यही है कि यह चैलेन्ज हिन्दुस्तान की आइन का भी है.

मौजूदा दौर में सोशल मीडिया भी आइन के सामने एक बड़ी चुनौती बनकर उभरा है. सोशल मीडिया आया था तो दुनिया करीब आती दिखी थी. बिछड़े हुए दोस्त इसके ज़रिये जमा होने लगे थे. जो साथ रहकर भी काफी वक्त तक एक दूसरे की खैरियत नहीं जान पाते वो सोशल मीडिया की वजह से एक दूसरे से लगातार रूबरू हो रहे थे.

सोशल मीडिया का यह अंदाज़ उन ताकतों को भी अच्छा लगा जो भाईचारे पर भरोसा नहीं करते. कुछ साल पहले सोशल मीडिया पर मज़हब को लेकर जिस तरह की छींटाकशी शुरू हुई उसने मोहब्बत को नफरत में बदलना शुरू कर दिया. सोशल मीडिया आइन के सामने एक बड़े चैलेन्ज की शक्ल में उभरा है तो यह हुकूमत के लिए भी एक बड़ा चैलेन्ज है.

सियासत और हुकूमत में फर्क होता है. सियासत में तमाम खाने हो सकते हैं लेकिन हुकूमत तो पूरे मुल्क की होती है. मुल्क में एक-एक शख्स की ज़िम्मेदारी हुकूमत की होती है. पीएम मोदी आये दिन यह बात मेरे 130 करोड़ देशवासियों कहकर साबित भी कर देते हैं.

सोशल मीडिया की वजह से जो बदमजगी शुरू हुई है और जो नफरत का माहौल बना है उसके लिए हुकूमत को भी सख्त कदम उठाने की ज़रूरत है. हुकूमत नरमी से चलती है तो सबको अच्छा लगता है लेकिन इस मामले में हुकूमत को सख्त हो ही जाना चाहिए. ऐसे लोगों के साथ सख्ती की ज़रूरत है जो इतने शानदार मुल्क में नफरत की दास्तान लिखने को आमादा हैं.

हिन्दुस्तान में चैलेंजेज की जब भी बात होती है तो जन्नत जैसी ज़मीन कश्मीर याद आ जाती है. कश्मीर में जिस तरह से लोगों ने टेरोरिज्म झेला है उसे लफ्जों में बयान नहीं किया जा सकता. आम आदमी तो छोड़िये जम्मू-कश्मीर के गवर्नर जगमोहन वहां की खूंरेजी देखकर दहल गए थे. जगमोहन ने कश्मीर के हालात पर एक किताब लिखी थी माई फ्रोजेन टर्बुलेंस इन काश्मीर.

कश्मीर पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की आँखों में भी चुभता है और चीन की भी. पाकिस्तान लगातार कश्मीर में सीजफायर तोड़ता है. अपने घुसपैठियों को भेजता है. आये दिन वहां खून की होली खेलता है. पीएम मोदी की हुकूमत ने हालांकि कश्मीर मामले में सख्त कदम उठाया है. टेररिस्ट को भी यह मैसेज भेज दिया है कि बहुत हुआ अब बर्दाश्त नहीं किया जा सकता तो दूसरी तरफ अपने साथ हुकूमत चलाने वाली महबूबा मुफ्ती को भी बता दिया है कि मुल्क से बड़ा कोई रिश्ता नहीं.

हिन्दुस्तान की आइन की चाह भी यही है कि हुकूमत ऐसी हो जो सुकून लेकर आये. हुकूमत ऐसी हो जो नफरत के अँधेरे को मिटाकर मोहब्बत का चिराग रौशन कर सके.

सांस लेने वाले किसी भी इंसान के लिए तीन चीज़ें बुनियादी ज़रूरत हैं- रोटी, कपड़ा और मकान. हकीकत यही है कि आइन के सामने सबसे बड़ा चैलेन्ज भी इन्हीं तीन बुनियादी चीज़ों का है. मैं तो कहता हूँ कि इन तीन बुनियादी चीजों के साथ एक चौथी चीज़ और जोड़ दी जानी चाहिए हेल्थ.

हर हाथ को अगर काम नसीब हो जाए तो रोटी और कपड़े की प्राब्लम काफी हद तक साल्व हो सकती है. सारी ज़िन्दगी थोड़ा-थोड़ा जोड़कर इंसान अपनी खुद की छत का इंतजाम भी कर लेता है. नरेन्द्र मोदी की हुकूमत ने प्राइममिनिस्टर हाउसिंग स्कीम भी चलाई है. रोज़गार की गारंटी सबके पास हो जाए तो लोन के ज़रिये घर का ख़्वाब भी पूरा हो सकता है.

हेल्थ के सेक्टर की तरफ हुकूमत को ज़रूर देखना चाहिए. हेल्थ सेक्टर वाकई सबसे बड़ा चैलेन्ज है. ज़िन्दगी के हर मोड़ पर मेडिकल फैसीलिटी की ज़रूरत पड़ती है लेकिन हुकूमत जो इंतजाम करती है वह ठीक से काम कर रहे हैं इस पर देखने की भी ज़रूरत है.

हुकूमत ने बड़ी तादाद में एम्बुलेंस खरीदी हैं मगर इमरजेंसी में एम्बुलेंस नहीं पहुँचती. कई बार एम्बुलेंस पहुँचने से पहले मरीज़ मर जाता है और कई बार एम्बुलेंस में ही दम तोड़ देता है. मरीज़ अस्पताल पहुँच जाए तो अस्पताल में भर्ती कराना बहुत मुश्किल काम होता है. सरकारी डाक्टर अस्पताल से बाहर की दवाएं लिखते हैं. कई बार हुकूमत सख्ती दिखाती है. बाहर की दवा लिखने पर डाक्टरों का सस्पेंशन करती है तो डाक्टर मरीज़ को वह दवाएं लिख देते हैं जो अस्पताल में मौजूद नहीं होतीं. आम आदमी के पास दिक्कत है कि वह अपनी शिकायत लेकर किसके पास जाए.

अस्पताल जाने वाले मरीजों के सामने कोरोना भी एक चैलेन्ज की शक्ल में सामने आया है. डॉक्टर ने भी मरीजों से दूरी बना ली है. ज़ाहिर है कि सैकड़ों मरीजों को रोजाना देखने वाला डॉक्टर आखिर रिस्क कैसे ले. अगर वह खुद ही इन्फेक्टेड हो जाए तो फिर बाकी मरीजों का क्या हो. किसी भी आपरेशन से पहले कोविड टेस्ट ज़रूरी है.

उत्तर प्रदेश समेत कई सूबों में हुकूमतों ने सरकारी अस्पताओं के स्टैण्डर्ड में हालांकि बहुत बदलाव किया है. अस्पताल अब साफ़ सुथरे मिलने लगे हैं. एक रुपये के पर्चे में ही डॉक्टर को दिखाया जा सकता है. लेकिन दिक्कत की बात यह है कि डॉक्टर कम हैं और मरीज़ ज्यादा हैं. अस्पतालों में लाइनें रोजाना लम्बी हो रही हैं.

जो दवाएं बाहर से लिखी जा रही हैं वह बहुत ज्यादा महंगी हैं. गरीब मरीजों की जेब उन दवाओं को खरीदने की इजाज़त नहीं देती. मरीज़ अगर बगैर इलाज मर जाता है तो यह हुकूमत के लिए अच्छी बात नहीं है. सरकारी अस्पतालों के मुकाबले प्राइवेट अस्पतालों का पनपते जाना आने वाले दिनों में हुकूमत के लिए वैसा ही चैलेन्ज बनेगा जैसा एजूकेशन के मामले में बना है.

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आज़ाद हिन्दुस्तान में आइन के सामने जो चैलेंजेज हैं उसमें सबसे अहम चैलेन्ज लॉ एंड ऑर्डर का चैलेन है. खाकी वर्दी और माफियाराज का जो गठजोड़ है उसने आम आदमी को इन्साफ से कोसों दूर कर दिया है. ऐसे हज़ारों किस्से हैं जिसमें रिपोर्ट लिखाने वाला ही जेल चला गया.

कानपुर के बिकरू गाँव में आठ पुलिस अफसरों की शहादत खाकी और माफियाराज के गठजोड़ का ही नतीजा है. सीएम योगी आदित्यनाथ ने इस हकीकत के सामने आने पर डीआईजी को सस्पेंड किया है.

जिस उम्मीद के साथ हमें कान्स्टीट्यूशन दिया गया था वो उम्मीदें कायम रखना भी एक बड़ा चैलेन्ज है. कान्स्टीट्यूशन का मकसद हर हाल में ज़िन्दा रहना चाहिए क्योंकि कान्स्टीट्यूशन महज़ एक किताब नहीं मुकम्मल आज़ादी का नाम है.

(संविधान दिवस के मौके पर 26 नवम्बर-2020 को आकाशवाणी लखनऊ से प्रसारित)

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