Monday - 28 October 2024 - 9:24 PM

मीडिया के हथियार से देश को घायल करने का षडयंत्र

डा. रवीन्द्र अरजरिया

वर्तमान समय में वातावरण के सृजन का काम पूरी तरह से मीडिया ने ले लिया है। टेलीविजन चैनल्स, समाचार पत्र और सोशल मीडिया के अंतर्गत आने वाली अनगिनत और अनियंत्रित साइड्स के माध्यम से लोगों की मानसिकता को प्रभावित करने का काम बखूबी किया जा रहा है। मानसिकता का सीधा प्रभाव कार्य शैली के चयन, आपसी व्यवहार और घटनाओं को देखने के नजरिया पर पडता है।

आपसी चर्चाओं का विषय भी मीडिया के उठाये गये मुद्दों पर ही केन्द्रित होता है। रेडियो पर क्रिकेट की कमेन्ट्री और टीवी पर सीधा प्रसारण करके हाकी, कबड्डी जैसे खेलों को हाशिये पर पहुंचाने काम भी मीडिया को हथियार बनाकर ही किया गया था। दिखने, छपने और चर्चाओं में बने रहना ही लोकप्रियता की कसौटी हो गई है। चिन्तन चल ही रहा था कि तभी कालबेल का मधुर स्वर गूंज उठा।

दरवाजा खोला, तो सामने हमारे पुराने मित्र और धार्मिक चैनल्स के पुरोधा लोकेश शर्मा जी सामने थे। उन्होंने आगे बढकर प्रणाम किया तो हमने भी उन्हें गले से लगाकर आशीष दी। वर्षों बाद अचानक उनकी उपस्थिति ने हमें रोमांचित कर दिया। उन्होंने बताया कि आज सुबह से ही उन्हें हमारी याद सताने लगी। बस फिर क्या था। चल पडे यादों के कारवां को कुछ कदम और आगे बढाने। हमने नौकर को आवाज दी।

चाय के साथ कुछ स्वल्पाहार लाने को कहा। कुशलक्षेम पूछने-बताने के बाद हमने उन्हें अपने मन में चल रहे चिन्तन से अवगत कराया। मीडिया के वर्तमान स्वरूप की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि ज्यादातर संस्थानों में अब संपादकीय विभाग सिकुडने लगे हैं। विज्ञापन विभाग का आकार निरंतर विस्तार की ओर है। बनी बनाई खबरों, पकी पकायी स्टोरीज़ परोसने वाली एजेन्सियां अब पेड स्टोरीज भी भेजने लगीं हैं।

पहले यह प्रायोजित श्रंखला केवल समाचार पत्रों में छपने वाले आलेखों के बीच में प्रकाशित होने वाले लोगोज़ के रूप में होती थी। अब तो चैनल्स में एक से वीजुअल्स, एक सी बाइट्स और लगभग एक सी ही स्क्रिप्ट्स, एक ही समय पर देखने को मिलती है।

कई बार तो विज्ञापनों का क्रम और आवृत्तियां भी एक सी ही होतीं है। ऐसे में इसे एक ही तंत्र व्दारा किये जा रहे कार्य के रूप में परिभाषित करना गलत नहीं होगा

हमने उन्हें बीच में ही टोकते हुए कहा कि इस तंत्र को आप किस रूप में देखते हैं। एक लम्बी सांस लेते हुए उन्होंने कहा कि इसी मारामारी के कारण ही तो हमने न्यूज चैनल्स से दूर धार्मिक चैनल्स की ओर रुख किया था। पत्रकारिता का 30 वर्ष का हमारा अनुभव यह कहने के लिए बाध्य करता है कि मीडिया के हथियार से देश को घायल करने का षडयंत्र कुछ लोगों व्दारा किया जा रहा है।

पारदर्शिता पर लगाया निशान

यह विकास की ओर नहीं बल्कि विनाश की ओर लेकर जायेगा। हमने बीच में ही प्रश्नवाचक चिन्ह अंकित कर दिया। ट्रंप के उस वक्तव्य को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि अमेरिका के राष्ट्रपति ने कहा था कि मोदी जी आप जैसा मीडिया यदि हमें मिला होता तो हम बहुत कुछ कर सकते थे। ट्रंप ने प्रशंसा नहीं बल्कि कटाक्ष किया था। पारदर्शिता पर निशान लगाया था।

समाज की तस्वीर दिखाने वाले आइने पर लगीं बिन्दियों को उजागर किया था। और हम थे कि उसे प्रशंसा मानकर फूले नहीं समा रहे थे। एक विव्दान ने अपनी पत्नी को चन्द्रमुखी कह कर उस पर कटाक्ष किया किन्तु पत्नी ने स्वयं को सुन्दरता का चरम मानकर उल्लास में कूदना ही शुरू कर दिया। एक बार फिर हमने उन्हे सीधे रास्ते पर लाने की गरज से राष्ट्रहित की ओर बढने के उपाय पूछना शुरू कर दिये।

मीडिया अनियंत्रित होता जा रहा है

पूरी गम्भीरता के साथ उन्होंने कहा कि उपाय तो केवल, केवल एक ही है। स्वनियंत्रित होने की आशा में हम मीडिया को अनियंत्रित बनाते जा रहे है। उस पर अनुशासन की तलवार लटकना चाहिये। संदर्भ के लिए लोकसभा के चुनावों को ही ले लें। उसे दौरान तो कई चैनल्स के एंकर ही पार्टी विशेष के प्रवक्ता बनकर व्यवहार करते रहे। चुनाव को आंकडों और मीडिया की दम पर लडा गया।

चैनल्स, सोशल साइड्स और अखबारों के माध्यम से प्राप्त होने वाली दिशा ही लोगों को आगे बढने की राह सुझाती रही। रोटी, कपडा और मकान गौढ हो गये थे। कश्मीर, परिवार, स्वतंत्रता दिलाना, उसे कायम रखा, पूर्व की गलतियों का पोस्टमार्टम, पडोसी की हनक, धार्मिक भावनाओं जैसे कारकों को नारे की तरह बुलंद किया गया। इस दिशा में जिस ने जितना किया, उतना ही उसके खाते में वोटों का खजाना आया।

बुलेट और तेजस का सुख तो तब उठा सकेगी आवाम, जब वो लावारिश पशुओं की भीड पार करके स्टेशन तक पहुंच पाये। आंकडों की बाजीगरी में मस्त लोग वातानुकूलित कमरों में बढते हुए देश को देख सकते हैं।

बिजली के अभाव में पंखा झलने वाली झोपडी में रहती मां, अपने मासूम को आज भी फटी हुई धोतियों की कथरी में सुलाती है। वहां न तो मीडिया के चैनल्स जाते हैं, न अखबारनबीस और न ही सोशल मीडिया का दम भरने वाली फौज।

भरभरा उठी आवाज

उनकी आवाज भरभरा उठी। आंखों में खारा पानी तैरने लगा। शब्द ठहर गये। मौन में ही हमें उनके अन्त: में उठने वाली सिसकियां सुनाई देने लगीं। हमने उनके कंधे पर हाथ रखा। पानी से भरा गिलास उनके आगे किया । उन्होंने एक ही सांस में पूरा गिलास खाली कर दिया। तभी नौकर ने कमरे में प्रवेश कर सेन्टर टेबिल पर चाय और स्वल्पाहार सजाना शुरू कर दिया। हमें अपने विचारों को संतुष्ट करने हेतु पर्याप्त सामग्री प्राप्त हो चुकी थी।

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com