लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस्तीफा देकर पूरी कांग्रेस पार्टी को सासंत में डाल दिया है। अच्छा तो ये होता कि राहुल गांधी एक अच्छे योद्धा की तरह फिर से युद्ध लडऩे के लिए युद्धभूमि में उतर जाते। जब पार्टी पर वर्षों से उनके परिवार का ही कब्जा है तो उनके मैदान छोड़कर भाग जाने का क्या मतलब है।
कभी भी कोई राजा युद्ध में पराजय होने पर या तो आत्मसमर्पण करता है या फिर तलवार निकाल कर युद्ध भूमि में जयघोष करते हुए अपनी खोई हुई सत्ता को प्राप्त करने के लिए मैदान में उतर पड़ता है।
राहुल गांधी ने पता नहीं किन कारणों से पहला रास्ता अख्तियार किया। यानि उन्होंने भाजपा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और मोदी जी को संदेश दे दिया कि जैसा वो चाहते थे, वैसा ही कांग्रेेस मुक्त भारत वह बना लें। अब लड़ना उनके वश में नहीं रहा।
हो सकता है यह बात कांग्रेसियों को बड़ी कड़वी लगे, पर हकीकत यही है कि राहुल गांधी ने भाजपा के सामने ताल ठोककर खड़े हो जाने के बजाय आत्मसमर्पण करना पसंद किया। अब जब राजा ही आत्मसमर्पण कर देगा तो उसकी सेना किसके सहारे लड़ेगी।
डेढ माह से ज्यादा समय हो गया है, परंतु कांग्रेस पार्टी अपने लिया नया अध्यक्ष नहीं चुन सकी। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मोतीलाल बोरा को पार्टी ने अंतरिम अध्यक्ष बनाया था, परंतु वह भी अंतरध्यान हो गए हैं। इसका खामियाजा कांग्रेस पार्टी भुगत रही है। जब कोई नाथ ही नहीं है तो अनाथों की पार्टी का भविष्य खतरे में ही होगा।
दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी ने इस स्थिति का बखूबी लाभ उठाया। कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए कांग्रेस के तमाम विधायकों को इस शर्त पर भी तोड़ लिया कि वे विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दें दे और भाजपा की सरकार बनने दें।
इस बात की पुष्ट खबरें हैं कि इन विधायकों को स्पष्ट आश्वासन दिया गया है कि उपचुनाव होने पर भाजपा उन्हें अपने टिकट पर जिता लेगी। अब ये आश्वासन खाली टिकट के आधार पर तो विधायकों ने स्वीकार नहीं किया होगा।
अब ये विधायक कह रहे हैं कि उन्होंने आत्मा की आवाज पर भाजपा में शामिल होने का निर्णय किया है। नेताओं की आत्मा कुछ अलग प्रकार की होती है। उनकी आत्मा हमेशा सत्ता पक्ष के ही पक्ष में बगावत करने का संदेश देती है। आइये इसको क्रमवार समझते हैं कि ये आत्माओं का ये खेल कैसे चल रहा है।
कर्नाटक में क्योंकि कांग्रेस और जेडीएस सत्ता में है, इसलिए कांग्रेस के जिन 13 विधायकों ने इस्तीफा दिया है उनकी आत्मा ने सीधे भाजपा में उनको जाने से रोक दिया, क्योंकि ऐसा करके वे सीधे दलबदल कानून की जद में फंस जाते। अब आत्मा कितनी भी पावरफुल हो दलबदल कानून का तो उसे भी लिहाज करना पड़ेगा। इसलिए इन विधायकों की आत्मा ने इन्हें सीधे भाजपा में जाने के बजाए पहले इस्तीफा देने का सुझाव दिया, जिसे राजनैतिक रूप से इन पुण्य आत्माओं ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। इस समय ये सभी आत्माएं मुंबई के होटल में आराम फरमा रहे हैं और सैरसपाटे भी कर रहे हैं। अब इन आत्माओं का जीवन कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष रमेश कुमार के हाथ में है, जो स्वयं भी बहुत परेशान है, क्योंकि उनके ऊपर सुप्रीम कोर्ट की तलवार लटक रही है।
अब दूसरा दृश्य देखिए। गोवा में क्योंकि भारतीय जनता पार्टी सत्ता में थी, इसलिए वहां कांग्रेसी विधायकों की आत्मा ने उन्हें विधानसभा से इस्तीफा देने के बजाए सीधे भाजपा में शामिल हो जाने का आदेश दे दिया। ये देखिए फर्क। कर्नाटक में आत्मा का करतब और था और गोवा में कुछ और। अब गोवा में 15 में से 10 कांग्रेसी विधायक भाजपाई हो चुके हैं, जिनमें से कुछ विधायकों को आजकल में मंत्री बन जाने की भी पूरी संभावना है।
अब दो राज्यों कर्नाटक व गोवा में कांग्रेस का अस्तित्व पूरी तरह खतरे में पड़ गया है, पर राहुल गांधी भीष्म प्रतिज्ञा ठाने बैठे हैं। और कोई दूसरा अध्यक्ष बनने को तैयार नहीं है। ये देखकर बड़ा दुख होता है 135 वर्ष पुरानी कांग्रेस पार्टी जिसने दशकों तक इस देश पर शासन किया, वह एक अध्यक्ष नहीं तलाश पा रही है। नतीजा सामने है।
कर्नाटक व गोवा प्रकरण के बाद भी कांग्रेसी कुंभकर्णी नींद में सो रहे हैं और उधर भाजपा ने मध्य प्रदेश में भी तोडफ़ोड़ करने का मन बना लिया है।
बीजेपी के पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा, ‘मेरे पास एक व्हाट्सऐप आया है, गोवा के समंदर से मानसून उठा है, कर्नाटक होते मध्यप्रदेश की ओर बढ़ रहा है। कुछ दिनों बाद मध्य प्रदेश का मौसम सुहाना होगा।’
अब इन पूर्व मंत्री के बयान को अगर बारीकी से समझा जाए तो इसका सीधा-सीधा मतलब ये है कि भाजपा के पार्टी तोड़क एक्सपर्ट जल्द ही मध्य प्रदेश में अवतरित होंगे या हो सकता है अवतरित हो चुके हों।
कर्नाटक व गोवा की तरह यहां भी कांग्रेसी विधायकों की आत्माओं से संपर्क साधेंगे और उन्हें भाजपा में आने का निमंत्रण पत्र सौपेंगे, पर मध्य प्रदेश में चूंकि कांगे्रस की सरकार है और विधायकों की आत्माओं का एक नियम है कि वे सत्ताधारी दल के प्रति ही अपनी निष्ठा व्यक्त करती हैं, इसलिए यहां के लिए भाजपा के चाणक्यों को कोई अलग तीन तिकड़म खोजना पड़ेगा। दलबदल कानून से बचने के लिए दो तिहाई कांग्रेसी आत्माओं को एक ही नाव में बैठाना काफी मुश्किल काम है, इसलिए यहां ऑपरेशन की कौन सी तकनीक अपनाई जायेगी यह कहना काफी मुश्किल है।
कभी-कभी लगता है कि कहीं ऐसा न हो कि कांगे्रस नया अध्यक्ष चुनने की कवायद में ही लगी रह जाए और भाजपा एक-एक कर उनके किले ढहाती जाए। ये विपक्ष की अन्य पार्टियों के लिए भी खतरें की घंटी है। उन्हें सतर्क हो जाना चाहिए। उनके किले भी ढहाये जा सकते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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