Tuesday - 29 October 2024 - 4:41 PM

क्या है सिंधिया को राज्य सभा भेजे जाने के पीछे का गेम ?

अनिल शर्मा

मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री कमलनाथ और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया एवं पूर्व केन्‍द्रीय मंत्री दोनों के बीच वर्चस्व की लड़ाई जारी है।

मध्य प्रदेश सरकार को बचाने तथा डेमेज कंट्रोल करने के लिए कांग्रेस के आला कमान ने समझौते का एक रास्ता निकाला है कि ग्वालियर के महाराज त्योतिरादित्य सिंधिया को मध्य प्रदेश से राज्य सभा का सदस्य बनाकर केन्द्र में भेजा जाये।

चूंकि गुलाम नबी आजाद का संसदीय कार्यकाल मार्च में पूरा होने वाला है, इसलिए सिंधिया को राज्य सभा में कांग्रेस पार्टी का सचेतक बना दिया जाये ताकि मध्य प्रदेश के दो बड़े कांग्रेसी नेताओं के बीच का विवाद खत्म हो जाये और मध्य प्रदेश की कमलनाथ की सरकार को अस्थिर करने के प्रयासों पर भी लगाम लगा दी जाए।

मालूम हो कि मध्य प्रदेश के पिछले वर्ष हुए विधान सभा चुनाव में युवा कांग्रेसियों में यह जोश भरा गया था कि यदि इस बार मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो सिंधिया ही प्रदेश के मुख्यमंत्री होंगे। इसके चलते महाराज सिंधिया के समर्थक तन-मन-धन से विधान सभा चुनाव में जुट गये थे, जिसका परिणाम यह हुआ था कि मध्य प्रदेश के चम्बल संभाग से सिंधिया जी के समर्थकों को बम्पर जीत मिली और उन्होंने इस संभाग से 30 में से 27 सीटें जीत लीं।

उधर कांग्रेस को इस तरह की एकतरफा जीत किसी संभाग से नहीं मिली। परिणाम यह हुआ कि कुल 230 सीटों वाली मध्य प्रदेश की विधान सभा में कांग्रेस को 114 और भाजपा को 107 सीटें मिलीं थी।

इतनी कांटे की टक्कर में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को और खासतौर पर सिंधिया के समर्थकों को पूरा विश्वास हो गया था कि इस बार युवा चेहरा महाराज सिंधिया ही मुख्यमंत्री बनेंगे। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी भी अपने मित्र ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाने की कोशिश में थे।

लेकिन चर्चा है कि छिंदवाड़ा से कांग्रेस पार्टी के 9 बार सांसद रह चुके पूर्व केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ ने केन्द्रीय नेतृत्व को अपनी बढ़ती उम्र का हवाला देते हुए उन्हें मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री पद की बागडोर एक बार संभालने का अवसर देखने का अनुरोध किया था। कमलनाथ के पक्ष में एक बात और जाती थी कि मध्य प्रदेश के विधान सभा चुनाव में चुनाव का खर्च कमलनाथ ने अपने कुशल प्रबंधन के नाते उठाया था।

चर्चा यह भी है कि मध्य प्रदेश के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस का लगभग 324 करोड़ चुनाव प्रचार में खर्च हुआ था। यह ऐसा नैतिक दबाव था जिसके आगे कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व को झुकना पड़ा और एनवक्त पर कांग्रेस की सबसे ताकतवर नेता सोनिया गांधी और उनकी किचन कैबिनेट के सहयोगियों ने अंततः कमलनाथ को ही मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री के तौर पर ताजपोशी करवा दी।

इधर इस निर्णय से ज्योतिरादित्य सिंधिया भीतर ही भीतर नाराज हो गये लेकिन उन्‍होनें अपनी नाराजगी का खुलकर इजहार नहीं किया। वहीं इस निर्णय से आहत उनके समर्थक खुलकर अपनी नाराजगी का इजहार करने लगे। इस बीच कमलनाथ ने कांग्रेस के 114 बसपा के 2 सपा 1 तथा 4 निर्दलीयों को मिलाकर अपनी संख्‍या 121 कर ली और प्रदेश में पूर्णबहुमत की सरकार बना ली। लेकिन दो दिग्‍गज नेताओं कमलनाथ और सिधियां की गुटबाजी ने रंग दिखाना शुरू कर दिया।

यह भी पढ़ें : दिल्ली के बाद यहां CAA के खिलाफ़ हिंसा में एक शख्स की हुई मौत

किसानों की समस्याओं का मुददे लेकर जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने समर्थकों के साथ सड़क पर उतरने की चेतावनी दे डाली तो इसके जबाब में मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पलटवार करते हुए श्री सिंधिया को सड़क पर उतरने वाले बयान पर तंज कसा और कहा कि वे चाहे तो शौक से किसानों के समर्थन में सड़क पर उतर सकते हैं। यह लड़ाई जब कांग्रेस के आला कमान के पास पहुंची तो उनके कान खड़े हो गये क्योंकि 230 विधायकों वाली विधान सभा में कांग्रेस के 114 तथा भाजपा के 107 विधायक है। जबकि सपा, बसपा और दो निर्दलीय विधायकों की मदद से कांग्रेस ने किसी तरह बहुमत का आंकड़ा प्राप्त किया है। यदि ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक 27 विधायक यदि कांग्रेस के मुख्यमंत्री कमलनाथ की सरकार से हाथ खींच लें तो उसी छड़ कमलनाथ की सरकार गिर जायेगी।

चूंकि केन्द्र में भाजपा की सरकार है इसलिए भाजपा के नेताओं को मध्य प्रदेश में सरकार बनाने का सुनहरा मौका मिल जायेगा। इस स्थिति से बचने के लिए मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री कमलनाथ की ओर से कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव और उत्तर प्रदेश की प्रभारी श्रीमती प्रियंका गांधी को मध्य प्रदेश से राज्य सभा की रिक्त सीटों में से नामांकन करने का गोपनीय प्रस्ताव भेजा। उधर प्रियंका गांधी को यह बात अच्छी तरह से पता है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य के बीच लड़ाई कैसे सड़क पर आ गयी है। इस पर प्रियंका गांधी ने मुख्यमंत्री कमलनाथ के इस प्रस्ताव को विनम्रता पूर्वक नकारते हुए कहा कि फिलहाल वे उत्तर प्रदेश की प्रभारी हैं और वर्ष 2022 में उत्तर प्रदेश में कैसे कांग्रेस की सरकार बने इसकी तैयारियों में और रणनीतियों में अपनी टीम के साथ लगी हैं।

उधर काग्रेस के आला कमान ने इस लड़ाई का पटाक्षेप करने के लिए एक प्रस्ताव तैयार किया है, इसके तहत मध्य प्रदेश से ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्य सभा का टिकट देकर उन्हें जिताकर केन्द्र में लाने की योजना है। चर्चा यह भी है कि इस समय राज्य सभा में कांग्रेस के नेता गुलाम नवीं आजाद का कार्यकाल इसी मार्च में समाप्त हो रहा है। इसलिए भी जरूरी है कि राज्य सभा में ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसा युवा और तेज-तर्रार नेता को राज्य सभा में लाया जाए ताकि कांग्रेस का पक्ष राज्य सभा में मजबूत हो जाए। देखना यह है कि जिस तरह से मुख्यमंत्री कमल नाथ ने एनवक्त पर केन्द्रीय नेतृत्व को साधकर ज्योतिरादित्य सिंधिया की जगह अपने को मुख्यमंत्री बनवा लिया है। कहीं 12 मार्च को मध्य प्रदेश में राज्य सभा सांसद के होने वाले नामांकन के पहले कहीं कोई उसी तरह का शह और मात का खेल श्री सिंधिया के खिलाफ तो नहीं खेला जायेगा।

अब कांग्रेस हाईकमान पर है कि वह पहले मध्य प्रदेश में कांग्रेस के राज्य सभा प्रत्याशियों की सूची में सिंधिया जी का नाम जल्द से जल्द घोषित करे और पार्टी में व्याप्त भीषण गुटबाजी के बावजूद सिंधिया को जिताने के लिए वोटों की व्यवस्था करे, उनकी निगरानी करे और सिंधिया को राज्य सभा के सदस्य के रूप में चुनवाये। अगर सिंधिया राज्य सभा के सांसद नहीं बने तो मध्य प्रदेश में कमलनाथ की सरकार पर संशय की तलवार लटकती रहेगी।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, लेख में उनके निजी विचार है)

यह भी पढ़ें : यहां 7000 खाली पदों पर हो रही भर्ती, नौकरी पाने का बेहतरीन मौका

यह भी पढ़ें : ‘मेरे साथ आतंकी जैसा सलूक किया जा रहा’

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com