न्यूज डेस्क
योगी सरकार का तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा होने को है और उत्तर प्रदेश में राजनीतिक हलचलें तेज होती जा रही हैं। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) 2022 के चुनाव में विकास और हिंदुत्व ऐजेंडे को लेकर मैदान में उतरेगी, ये बात जाहिर हो चुकी है क्योंकि जिस तरह से योगी सरकार अपने चौथे बजट में अयोध्या और हिंदू तीर्थ स्थलों पर पानी की तरह पैसा बहा रही है, उससे साफ लग रहा है कि बीजेपी राम मंदिर के मुद्दे का छोड़ने वाली नहीं है।
वहीं, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस ने राज्य में मजबूती हासिल करने के लिए अपनी-अपनी रणनीति बनाने और बिसात बिछाने का काम तेज कर दिया है। हर कोई खुद को होड़ में सबसे आगे रखने की कोशिश में जुट गया है।
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हालाकि, पिछली बार सत्ता में होने और अब विधानसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी होने के कारण इस होड़ में कांग्रेस और बसपा से समाजवादी पार्टी को आगे होना चाहिए था। विधानसभा उपचुनावों के नतीजे उसे कांग्रेस और बसपा से आगे रख भी रहे हैं। लेकिन क्या अखिलेश यादव में इतनी क्षमता है कि वे अपने दम पर सपा को फिर से सबसे ऊपर ला सकें? इस पर सवालिया निशान खड़ा हो गया है। साथ ही मायावती के साथी एक-एक करके बसपा का साथ छोड़ते जा रहे हैं और उनके साथ बसपा का वोटर भी दूसरे दलों में छटकते जा रहे हैं।
लगभग 20 फीसद दलित वोट की हिस्सेदारी के लिए यूपी में शुरू हुई होड़ के साथ ही राजनीति का नया दांव नजर आ रहा है। नागरिकता संशोधन कानून (CAA) की शिद्दत से मुखालफत और अब दलित आरक्षण के हक में मुहिम छेड़ कांग्रेस ने इशारा कर दिया है कि वह दलित-मुस्लिम गठजोड़ के सहारे विधानसभा चुनाव में उतरना चाहती है।
अपनी मुट्ठी से हर वोट बैंक को गंवा चुकी कांग्रेस अब लगातार प्रयासरत है कि दलित वोटर उसके पाले में फिर से वापस आ जाएं। उत्तराखंड के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला नौकरियों में दलित-आदिवासियों को आरक्षण के खिलाफ आया तो कांग्रेस ने इस मुद्दे को हाथों-हाथ उठा लिया।
चाहे बात नागरिकता कानून की हो या फिर आरक्षण के मुद्दे की हो प्रियंका गांधी की टीम सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक हमेशा एक्टिव रहती है। प्रियंका गांधी सीएए आंदोलन में घायल पीड़ितों से मिलने गई तो संतरविदास मंदिर गई और मत्था भी टेका।
सीएए पर मुखर रही कांग्रेस अब समतामूलक समाज बनाने की बात भी कर रही है। अनुसूचित जाति, जनजाति, ओबीसी के आरक्षण को कमजोर किए जाने को लेकर पूरे देश में सियासत गर्म है। प्रयास यही है कि दलितों को बीजेपी से दूर किया जाए। उत्तर प्रदेश के हर ब्लॉक में संविधान पंचायत का अभियान शुरू कर दिया।
इसके लिए प्रियंका गांधी ने स्पेशल टीम बनाई है, जिसका फोकस दलित वोटरों को साधने में है। मिशन- 2022 की तैयारी में जुटी कांग्रेस अपना दलित एजेंडा नए चेहरों के जरिये लागू करेगी। इसके तहत कई वर्ष से अनुसूचित जाति विभाग के प्रदेश चेयरमैन के पद पर जमे भगवती चौधरी की छुट्टी कर महराजगंज जिले के निवासी आलोक प्रसाद पासी को कमान सौंपी गई है। संगठन में बदलाव के जरिए कांग्रेस पंचायत चुनाव पर नजर भी लगाए है।
प्रदेश प्रवक्ता बृजेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि निष्ठावान कांग्रेसी परिवार से ताल्लुक रखने वाले आलोक प्रसाद पासी वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव है। उनके पिता स्व. सुखदेव प्रसाद प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे हैं। पासी कोचेयरमैन बनने से संगठन को और अधिक मजबूती मिलेगी।
Many Congratulations to Shri Alok Prasad Pasi for his appointment as the Chairman of Scheduled Caste Department of Uttar Pradesh Congress Committee.
Best wishes 💐
Let’s fight together to protect the constitution of India and constitutional rights of people. pic.twitter.com/uIlFVsibdQ— Dalit Congress (@INCSCDept) February 21, 2020
सूत्रों का कहना है कि बसपा के प्रति दलितों का मोह कम होते जाने पर कांग्रेस की निगाहें लगी है। दलित राजनीति के जानकार हरिकिशन वर्मा आंबेडकर का कहना है कि आजादी के बाद दलितों की पहली पसंद कांग्रेस ही रही परंतु क्षेत्रीय दलों की ताकत बढ़ने के बाद वोटों का समीकरण गड़बड़ा गया था।
दलितों और अल्पसंख्यकों के हटने से कांग्रेस विशेष रूप से उप्र में अर्श से फर्श पर आ गई। प्रभारी प्रशासन सिद्धार्थ प्रिय श्रीवास्तव ने प्रदेश कांग्रेस के नौ प्रवक्ताओं व मीडिया विभाग संयोजक के नामों की सूची दोबारा जारी की। सूची में ललन कुमार वीरेंद्र मदान, अमरनाथ अग्रवाल, उमाशंकर पांडेय, अशोक सिंह, बृजेंद्र कुमार सिंह, अनूप पटेल, शुचि विश्वास और उबैदउल्ला नासिर के नाम शामिल हैं।
बताते चले कि वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में 403 में से 312 सीटें बीजेपी जीती और बसपा 19 पर सिमट गई। इसके बाद वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने प्रदेश की 17 सुरक्षित सीटों में से 15 जीत लीं। इससे साफ है कि बीजेपी दलित वोट बैंक में मजबूत सेंध लगा चुकी है। अब इसमें हिस्सेदारी के कांग्रेस के प्रयास बसपा के लिए नई चुनौती खड़ी करेंगे तो बीजेपी को भी सतर्कता बरतनी ही होगी।