न्यूज डेस्क
लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से सहयोग न मिलने से आहत राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने पर अड़े हुए हैं। इस बीच रुठे राहुल के मान-मनौव्वल का दौर चल रहा है।
बूथ कार्यकर्ताओं से लेकर कई राज्य के मुख्यमंत्री तक राहुल को मनाने की कोशिश कर रहें हैं। यूथ कांग्रेस के नेताओं से लेकर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं तक सबने राहुल को वापस अध्यक्ष पद ग्रहण करने के लिए कई बार अनुरोध किया है, इसके बावजूद राहुल इस्तीफे की जिद से टस से मस नहीं हो रहे।
एक माह से अधिक का समय गुजर जाने के बाद भी राहुल अपनी जिद पर, कांग्रेस उम्मीद पर कायम है। रूठे राहुल की मनुहार का सिलसिला जारी है। कांग्रेसियों की राहुल गांधी को अध्यक्ष पद पर बने रहने के लिए मनाने की हर कोशिश बेकार गई है।
हर हथकंडा फेल होने के बाद कार्यकर्ता अब 2 जुलाई से पार्टी कार्यालय में अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल करेंगे। देखना होगा कि क्या भूख हड़ताल के दांव से राहुल गांधी मान जाएंगे या कांग्रेस में गैर गांधी युग का सूत्रपात होगा?
सोमवार को भी कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में राहुल गांधी से मुलाकात की। मान-मनौव्वल का दौर 2 घंटे तक चलता रहा। स्वयं गहलोत और कमलनाथ ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की पेशकश तक कर दी, लेकिन राहुल नहीं माने।
मुलाकात के बाद गहलोत ने राहुल के इस्तीफा वापस लेने की उम्मीद जताते हुए कहा कि उन्होंने हमारी बातें ध्यान से सुनीं। गहलोत कार्यकर्ताओं की भावनाएं राहुल गांधी तक पहुंचाने का दावा कर रहे थे, लेकिन सवाल यह भी है कि क्या राहुल गांधी तक इतने दिनों से कार्यकर्ताओं की भावनाएं नहीं पहुंच रही थीं?
क्यों इतने नाराज हैं राहुल
दरअसल, राहुल गांधी के पार्टी के नेताओं से नाराज होने की बड़ी वजह बताई जा रही है। सबसे पुरानी पार्टी का दर्जा प्राप्त कांग्रेस में नेता तो बहुत हैं लेकिन जमीनी कार्यकर्ताओं की कमी देखी गई है। जबसे राहुल ने अध्यक्ष पद संभाला है तब से राहुल कांग्रेस के बूथ कार्यकर्ताओं पर ज्यादा ध्यान दिया है, लेकिन पार्टी के अन्य नेता कभी भी अपने कार्यकर्ताओं पर ध्यान नहीं देते हैं इसके वजह से कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ता पार्टी से अलग होते चले गए है।
चुनाव के दौरान कई जगह पार्टी को उम्मीदवार नहीं मिले और जहां पार्टी को उम्मीदवार मिले वहां कार्यकर्ता नहीं मिले। कांग्रेस नेताओं पर एसी में बैठकर राजनीति करने का आरोप लगता रहा है और इसी वजह से उनके और कार्यकर्ताओं के बीच तालमेल नहीं रहा। इसी वजह से कांग्रेस का गढ़ कही जाने वाली अमेठी भी पार्टी हार गई।
इसके अलावा चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने अकेले पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से लोहा लिया। पार्टी के सभी दिग्गज नेता दबे मुंह राहुल पर उंगली उठाते रहे लेकिन सामने आकर किसी ने बीजेपी के खिलाफ मोर्चा नहीं खोला। उसके बाद जब चुनाव में हार मिली तब भी किसी भी बड़े नेता ने हार की जिम्मेदारी नहीं ली।
इस बात का खुलासा राहुल ने कार्यकर्ताओं से बैठक के दौरान किया। गौरतलब है कि राहुल गांधी से कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने भी मुलाकात कर मनाने की कोशिश की थी। कार्यकर्ताओं से मुलाकात के दौरान राहुल ने अपना दर्द जाहिर किया था। खबरों की मानें तो राहुल ने कहा था कि मुझे इस बात का दुःख है कि पार्टी की इतनी बड़ी हार के बावजूद पार्टी के किसी भी मुख्यमंत्री ने इस्तीफा नहीं दिया।
राहुल गांधी ने किसी एक मुख्यमंत्री का नाम नहीं लिया था, लेकिन राजनीति के जानकार इसे सीधे-सीधे अशोक गहलोत और कमलनाथ से ही जोड़ रहे हैं। राजनीति के जानकारों की मानें तो दोनों ही पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं। लोकसभा चुनाव से महज 6 माह पहले दोनों राज्यों के चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद युवा नेतृत्व की मांग पर राहुल गांधी ने वरिष्ठ नेताओं अशोक गहलोत और कमलनाथ पर भरोसा जताया था।
राहुल को यह आस थी कि अनुभवी हाथों में सरकार की बागडोर से पार्टी दोनों राज्यों में बेहतर प्रदर्शन करेगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। राजस्थान में 2014 की ही तर्ज पर कांग्रेस खाता खोलने में भी असफल रही। वहीं मध्य प्रदेश में महज एक सीट पर सिमट गई और राहुल के करीबी माने जाने वाले और प्रदेश के विधानसभा चुनाव में अहम भूमिका निभाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया भी चुनाव हार गए। पार्टी के इस प्रदर्शन के बाद राहुल को दोनों नेताओं से यह उम्मीद थी कि वह इसकी जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा देकर एक उदाहरण प्रस्तुत करेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
आपको बता दें कि कांग्रेस पार्टी पर अक्सर परिवारवाद का आरोप लगता रहा है। राहुल गांधी ने चुनाव के दौरान अपने बेटों और परिजनों को टिकट दिलाए जाने पर भी नाराजगी जताई थी। राहुल ने कहा भी था कि चुनाव में नेता इससे महज एक सीट पर केंद्रित होकर रह गए। गहलोत और कमलनाथ ने भी अपने पुत्रों को टिकट दिलाए थे। मध्य प्रदेश में पार्टी की झोली में एकमात्र छिंदवाड़ा संसदीय सीट आई, जहां कमलनाथ के पुत्र नकुलनाथ उम्मीदवार थे। अन्य सभी 28 सीटें पार्टी हार गई। वहीं अशोक गहलोत के पुत्र ने भी चुनाव लड़ा था। हालांकि वह हार गए। राहुल की नाराजगी की एक वजह यह भी है।