Monday - 28 October 2024 - 7:30 PM

ग्रामीण राजनीति के जरिये खुद को संवारने में लगी है कांग्रेस

जुबिली न्यूज़ डेस्क

लखनऊ। कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद और सड़क पर उतर कर राजनीति करने की रणनीति के जरिये यूपी में अपनी खोई जमीन वापस पाने की जद्दोजहद में जुटी कांग्रेस अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले ग्रामीण इलाकों में संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने की पुरजोर कोशिश कर रही है।

देश की राजनीति की दिशा तय करने वाले राज्य में दो दशकों से अधिक समय से हाशिये पर टिकी कांग्रेस ने बदलते परिदृश्य में ग्रामीण इलाकों में संगठन को मजबूत करने की बीड़ा उठाया है। इसके लिये पार्टी पिछले दो महीने से संगठन सृजन अभियान संचालित कर रही है।

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अभियान के तहत ब्लाक और पंचायत स्तर पर बैठकें आयोजित की जा रही है। पार्टी नेतृत्व का लक्ष्य ग्रामीण अंचलों में कार्यकर्ताओं का बड़ा नेटवर्क तैयार करना है जिसके जरिये न सिर्फ पंचायत बल्कि विधानसभा चुनाव में अपनी उल्लेखनीय उपस्थिति दर्ज कराने के साथ सत्ता पर काबिज होना है।

पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने कहा हमारी सबसे बडी चिंता गांवों में कार्यकर्ता का नहीं होना था जो नेटवर्क आज खड़ा हो चुका है। संगठन सृजन अभियान के जरिये हम प्रदेश के सभी तहसील, ब्लाक और पंचायत में पहुंचेगे। इस दिशा में 62% ब्लाकों तक पार्टी पहुंच चुकी है जबकि बचा हुआ काम महीने के अंत तक पूरा कर लिया जायेगा।

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उन्होने कहा दलित कांग्रेस, यूथ कांग्रेस, एनएसयूआई, महिला कांग्रेस समेत सभी फ्रंटल गांव गांव मोहल्ले टोले लगे हुये है। सड़क पर भी कांग्रेस पार्टी नम्बर एक की भूमिका है। विपक्ष की भूमिका का सही निर्वहन हम ही कर रहे हैं। हमारी चिंता ग्रामीण अंचलों में खुद को एक बार फिर खड़ा करना था जिस पर हम काम कर रहे हैं। उम्मीद है कि सशक्त रूप से हम खडे हो जायेंगे। कांग्रेस आज कार्यकर्ता आधारित पार्टी बन चुकी है।

लल्लू ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में ब्लाक स्तर पर 1100 से 1500 लोग जुड़ रहे है। हाल ही में उन्होंने आजमगढ़ के सरायमीर और मुबारकपुर के अलावा जौनपुर में सभा की जिसका रिस्पांस जबरदस्त रहा है। ग्रामीण इलाकों में पार्टी के पक्ष में करंट अच्छा है।

संपर्क और संवाद की इस नीति से नीचे तक का कार्यकर्ता खड़ा हो जायेगा। जब हम नीचे जाते है तो प्रत्याशी भी मिलते हैं, आदमी भी मिलते है और कार्यक्रम भी मिलता है। अभी पार्टी चुनाव के लिये नहीं बल्कि संगठन को मजबूत करने की कवायद में जुटी है।

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कृषि कानून के विरोध में किसानो के आंदोलन को सही बताते हुये उन्होंने कहा कि कृषि भारत की सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। कृषि की जो नीति किसानो के हित में नहीं बनेगी,उसका जुडाव किसानों से नहीं होगा। एक व्यावहारिक नीति बनायी जाती है और एक कागजी नीति बनायी जाती है। केन्द्र सरकार की नीति किसानों के प्रति व्यवहारिक नहीं है। वास्तव में सरकार की नीयत साफ नही है।

किसानों की आय दो गुना करने का वादा करने वाली मोदी और योगी सरकार के कार्यकाल में गन्ने का दाम दस गुना नीचे आ गया जबकि यूरिया के दाम में बढोत्तरी हाे गयी। डीजल और बिजली के दामों में भी इजाफा हुआ। पहले 700 रूपये में निजी ट्यूबवेल का लाइसेंस मिलता था जबकि आज 3000 से 3500 रूपये तक का बिजली का बिल आ रहा है।

उन्होंने कहा कि उनकी सरकार आने की दशा में इन्ही चीजों पर नियंत्रण किया जायेगा। नालों का जो जाल है। उसका पुनरूद्धार करेंगे। पानी सही समय पर मिले। इसकी व्यवस्था करेंगे। किसानों की गोष्ठयां कागजों में हो रही है।

उन्होंने कहा कि ये सही है कि उत्तर प्रदेश और बिहार के किसानों को नये कृषि कानून के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है और यही कारण है कि संगठन सृजन अभियान के तहत संपर्क संवाद कार्यक्रम की शुरूआत वह कृषि बिल से करते है और इस बिल के नफा नुकसान की बारीकी से व्याख्या करते हैं।

लल्लू ने कहा धीरे- धीरे लोग कृषि कानून के बारे में जानने लगे है। अभियान का यह भी एक हिस्सा है। बिहार और पूर्वाचल का किसान, किसान नहीं है बल्कि मजदूर है जो बैंक और साहूकार के कर्ज से दबा हुआ है। वह खुद बोता है खुद काटता है खुद गिराता है, खुद खाता है और खुद बेचता है।

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पश्चिम और हरियाणा में मंडियां है। यह मंडियां खत्म हो जायेगी तो उनका काराेबार खत्म हो जायेगा। उनके फार्म खत्म हो जायेंगे और उनके बेटे बेटियों का भविष्य खत्म हो जायेगा। हम दो लाख का गन्ना काटते है वह दो करोड़ का गन्ना काटते है। हम दस हजार का धान बोते है वह दस करोड का धान बोते हैं।

पश्चिम और पूर्वांचल के किसान में फर्क दिख रहा होगा। पश्चिम का किसान आंदोलित है मगर पूर्वांचल का किसान मजदूर है। इसलिये यह सुगबुगाहट नहीं दिख रही है। पार्टी में गुटबाजी की संभावनाओ को नकारते हुये प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं को जिम्मेदारी दी गयी है।

चुनौतियां तब तक थी जब तक जिम्मेदारी नहीं दी गयी थी। सबके पास जिम्मेदारी है। सभी का प्रयास है कि वे पार्टी को सरकार में वापस ले आये। इसके चलते गुटबाजी की संभावना न के बराबर है। हम संगठन पर विशेष फोकस दे रहे हैं। आलाकमान इस दिशा में खुद लगा हुआ है।

पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा खुद संवाद कर रही है। मेहनत का कोई विकल्प नहीं है और लक्ष्य पर हर हाल में पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता। सब मेहनत कर रहे हैं।

गौरतलब है कि पिछले दो दशकों के दौरान कांग्रेस के उत्तर प्रदेश में पतन के लिये बड़े नाम वाले नेताओं की महत्वाकांक्षा, अनुशासनहीनता और संगठन के प्रति उदासीन रवैये को जिम्मेदार माना जाता रहा है। पार्टी को विषम हालात से उबारने के लिये हालांकि समय समय पर पार्टी आलाकमान ने कुछ कदम उठाये मगर नतीजा आशा के अनुरूप नहीं रहा।

हालांकि पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा का उत्तर प्रदेश का प्रभार संभालने और प्रदेश की कमान अजय कुमार लल्लू को सौंपने के बाद पार्टी प्रदेश की राजनीति में फिर से अपने पांव जमाने की दिशा में तेजी से बढ़ रही है।

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