जुबिली न्यूज डेस्क
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और राज्यपाल जगदीप धनखड़ एक बार फिर आमने-सामने हैं। हालांकि ये कोई पहली बार नहीं है कि ये दोनों एक-दूसरे के आमने-सामने हैंं। यदि पश्चिम बंगाल का राजनीतिक इतिहास देखे तो राज्यपाल और सरकार के बीच पहले भी टकराव होता रहा है।
हां इस बार थोड़ा मामला अलग है। राज्यपाल धनखड़ के पश्चिम बंगाल के राज्यपाल का कार्यभार संभालने के बाद से ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनके बीच छत्तीस का आंकड़ा रहा है और यह मामला सुलझता नजर नहीं आ रहा है।
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अब तक शायद ही कोई दिन ऐसा गुजरा है जब राज्यपाल ने अपने ट्वीट के जरिए सरकार, पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को कठघरे में नहीं खड़ा किया हो। चाहे वह कोरोना वायरस का मुद्दा हो, राशन वितरण का हो या फिर अंफान महामारी के बाद राहत और बचाव कार्यों का, राज्यपाल लगातार सरकार पर हमले करते रहे हैं।
एक बार फिर राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच विवाद बढ़ गया है। अब ताजा विवाद राज्यपाल के उस पत्र को लेकर शुरू हुआ है जो उन्होंने कानून व व्यवस्था के मुद्दे पर पुलिस महानिदेशक वीरेंद्र को भेजा था।
लेकिन उस पत्र का जवाब ममता ने राज्यपाल जगदीप धनखड़ को दिया है। मुख्यमंत्री ने अपने 9 पेज के जवाबी पत्र में राज्यपाल पर राजनीतिक पार्टी के एजेंट के तौर पर काम करने का आरोप लगाते हुए उनको संविधान के दायरे में रहने की नसीहत दी है। उसके बाद राज्यपाल ने भी ममता के पत्र का बिंदुवार जवाब दिया है।
ममता ने क्या लिखा है पत्र में
सीएम ममता बनर्जी ने अपने पत्र में लिखा है- ‘मैं आपके पत्र और पुलिस महानिदेशक को संबोधित टिप्पणी को पढऩे के बाद बेहद उदास और दुखी हुई, जिसे मेरे समक्ष प्रस्तुत किया गया था। साथ ही साथ इस बारे में आपके ट्विटर पोस्ट को देखकर भी दुख हुआ।’
धनखड़ ने जतायी थी चिंता
दरअसल, इस महीने की शुरुआत में राज्यपाल धनखड़ ने पुलिस महानिदेशक वीरेंद्र को लिखे पत्र में प्रदेश की कानून व्यवस्था को लेकर चिंता जाहिर की थी। इस पर महानिदेशक की ओर से दो लाइन का जवाब दिए जाने के बाद धनखड़ ने उनको 26 सितंबर तक मुलाकात करने और कानून-व्यवस्था में सुधार के लिए उठाए गए कदमों का ब्योरा देने को कहा था, पर महानिदेशक की बजाय उस पत्र का जवाब 26 सितंबर को ममता ने भेजा।
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शुरू से रहा है टकराव
जगदीप धनखड़ ने पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनने के बाद अब तक जितनी सुर्खियां बटोरी हैं, उतनी शायद उन्होंने अपने पूरे राजनीतिक करियर में नहीं बटोरी हों। वैसे पिछले राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी के कार्यकाल के आखिरी दिनों में भी सरकार के साथ उनके रिश्ते काफी तल्ख हो गए थे, लेकिन नए राज्यपाल धनखड़ के साथ तो उनके शपथ लेने के महीने भर बाद से ही टकराव शुरू हो गया था।
बीते साल 30 जुलाई को धनखड़ ने राज्यपाल के तौर पर शपथ ली थी। उस शपथ ग्रहण समारोह में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और राज्यपाल के बीच काफी सद्भाव नजर आया था, पर वह पहला मौका था। इसके बाद ये दोनों लोग और दो बार साथ नजर आए थे।
पहला मौका था बीते साल ममता के घर आयोजित कालीपूजा का। तब राज्यपाल सपत्नीक उनके घर गए थे। उसके बाद ममता ने एक बार राजभवन जाकर उनसे मुलाकात की थी। उसके बाद इन दोनों के बीच विवादों का सिलसिला लगातार तेज हुआ है।
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संविधान में राज्यपाल की भूमिका बहुत सीमित है। उन्हें मुख्यमंत्री की सिफारिश पर ही काम करना होता है। केंद्र सरकार उनकी नियुक्ति करती है। वह एक तरह से केंद्र के एजेंट के तौर पर ही राजभवन में रहते हैं। अब सवाल यह पैदा होता है कि अगर राज्यपाल दिन प्रतिदिन चुनी हुई सरकार के काम में दखल देने लगे तो फिर प्रशासन में अड़चन आना स्वाभाविक है।
ये आरोप भी लगेंगे कि वह केंद्र सरकार के इशारे पर चुनी हुई सरकार को अस्थिर करने के साथ ही उसकी छवि को भी खराब करने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे समय में जब कि बंगाल में बीजेपी तृणमूल कांग्रेस को हटा कर अपनी सरकार बनाने के लिये एड़ी- चोटी का जोर लगा रही है तब ये क्यों न कहा जाये कि धनखड़ दरअसल बीजेपी की मदद कर रहे हैं।
पहले भी सरकार का हुआ है राज्यपाल से टकराव
पश्चिम बंगाल में राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच टकराव का इतिहास काफी पुराना है। पहले भी यहां टकराव होते रहे हैं। अंतर यही है कि अब की यह टकराव लगातार लंबा खिंच रहा है और इसके निकट भविष्य में थमने के कोई आसार नहीं नजर आ रहे हैं। ताजा विवादों ने पहले के तमाम मामलों को पीछे छोड़ दिया है। अबकी यह टकराव चरम पर पहुंचता नजर आ रहा है।
धरम वीर
पश्चिम बंगाल के तत्कालीन राज्यपाल धरम वीर ने 21 नवंबर, 1969 को अजय मुखर्जी के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकार को बर्खास्त कर दिया था। वर्ष 1969 में मोर्चा की सरकार फिर सत्ता में लौटी। मंत्रिमंडल के गठन के बाद राज्यपाल के लिए जो अभिभाषण तैयार किया गया था उसके एक पैराग्राफ में धरम वीर की आलोचना की गई थी। धरम वीर ने अभिभाषण का वह हिस्सा पढऩे से इंकार कर दिया था।
बी. डी. पांडे
पश्चिम बंगाल की सत्ता में वर्ष 1977 में भारी बहुमत के साथ वाममोर्चा आई। वाममोर्चा की सरकार के सत्ता में आने के बाद भी राजभवन और सरकार के बीच टकराव के हालात बने थे। तत्कालीन राज्यपाल बी.डी. पांडे के साथ वाममोर्चा के संबंध ठीक नहीं थे। केंद्र के साथ टकराव होने पर उसने पांडे को निशाना बनाया था।
ए. पी. शर्मा
साल 1984 मे पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनने वाले अनंत प्रसाद शर्मा के साथ भी वाममोर्चा के रिश्ते ठीक नहीं रहे। कलकत्ता विश्वविद्यालय के वाइस-चांसलर के पद पर नियुक्ति के मुद्दे पर राज्यपाल और सरकार के रिश्तों में कड़वाहट पैदा हो गई थी। शर्मा ने ऐसे उम्मीदवार संतोष भट्टाचार्य के नाम पर मुहर लगाई थी जो सरकार की प्राथमिकता सूची में सबसे नीचे था।
गोपाल कृष्ण गांधी
वर्ष 2007 में नंदीग्राम में हुई फायरिंग और हत्याओं की कड़े शब्दों में आलोचना करने की वजह से तत्कालीन राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी को भी वाममोर्चा नेताओं की भारी नाराजगी का शिकार होना पड़ा था। गांधी के बाद राजभवन पहुंचने वाले पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम. के. नारायणन के रिश्ते भी वाममोर्चा या तृणमूल कांग्रेस सरकार के साथ मधुर नहीं रहे।
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केशरी नाथ त्रिपाठी
पश्चिम बंगाल की सत्ता में साल 2011 में तृणमूल कांग्रेस आई। तृणमूल कांग्रेस सरकार के शासनकाल में राजभवन और राज्य सचिवालय में टकराव की परपंरा जस की तस रही।
उत्तर 24 परगना जिले में दो गुटों के बीच सांप्रदायिक हिंसा के बाद तत्कालीन राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी ने राज्य प्रशासन की कड़ी आलोचना करते हुए कानून व व्यवस्था पर सवाल खड़े किए थे, जिसके बाद से सरकार और राजभवन के रिश्ते लगातार बिगड़े रहे।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तब त्रिपाठी पर अपना अपमान करने का भी आरोप लगाया था। आखिर में हालत यहां तक पहुंच गई कि ममता ने त्रिपाठी के विदाई समारोह में भी हिस्सा नहीं लिया। त्रिपाठी ने इस पर दुख भी जताया था। अब धनखड़ के आने के बाद रिश्ते और भी खराब हो गये हैं।