सुरेंद्र दुबे
अभी-अभी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी का संकल्प पत्र देखा। बड़ी तसल्ली हुई कि चलो भाजपा को बेरोजगारों की याद तो आई। पर एक करोड़ नौकरियों की बात सुनकर माथा भी ठनका।
भाजपा तो मानती ही नहीं है कि इस देश में बेरोजगारी है। जब कहा जाता है कि देश में 45 साल की सर्वाधिक बेरोजगारी है तब भक्त लोग नाराज हो जाते हैं। वह कहते हैं कि देश में लगातार रोजगार बढ़ रहे हैं।
पर चलिए चुनाव है और चुनाव के मौसम में तो राजनैतिक पार्टियां कोई भी ख्वाब दिखाने के लिए स्वतंत्र हैं। अब कह रहे हैं कि महाराष्ट्र में प्रति वर्ष 20 लाख के हिसाब से पांच वर्ष में एक करोड़ नौकरियां देंगे। वर्ष 2014 मे हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने दो करोड़ नौकरियां प्रतिवर्ष देने का वादा किया था।
अब जब नौकरियों की बात हो रही है तो देश की अर्थव्यवस्था की भी बात कर ली जाए तो कोई बुराई नहीं है। सरकार तो मानने को ही तैयार नहीं है कि देश की अर्थव्यवस्था बहुत ही संकट के दौर से गुजर रही है। जीडीपी लगातार नीचे जा रही है। सभी प्रकार के उत्पादन निगेटिव में जा रहे हैं। ऐसे में ये नौकरियां कहां से आएंगी। इस पर हम आप तो सोच ही सकते हैं। सरकार न सोचे तो न सोचे, हम उसका क्या बिगाड़ लेंगे?
इसी संदर्भ में अर्थशास्त्र के लिए मिले नोबल पुरस्कार की भी चर्चा कर लेते हैं। भारतीय मूल के अमरीकी इकॉनामिस्ट अभिजीत बनर्जी को इस साल अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार दिया गया है। अभिजीत बनर्जी के साथ इश्तर डूफलो और माइकल क्रेमर को संयुक्त रूप से ये सम्मान देने की घोषणा की गई है। ये नोबल पुरस्कार गरीबी दूर करने के प्रस्तावित उपायों पर ही दिया गया है, इसलिए अभिजीत बनर्जी से सरकार काफी कुछ मदद ले सकती है।
परंतु दिक्कत ये है कि अभिजीत बनर्जी कांग्रेसी विचारधारा के हैं इसलिए भाजपा के लिए अछूत हैं। नोबल पुरस्कार कमेटी को पुरस्कार देते समय कम से कम इतना तो ध्यान रखना चाहिए था कि एक भाजपाई सरकार के कार्यकाल में किसी कांग्रेसी विचारधारा के अर्थशास्त्री को नोबल पुरस्कार नहीं देना चाहिए था। उनके इस कृत्य को भक्त लोग राष्ट्रविरोधी भी मान सकते हैं।
अभिजीत बनर्जी ने पुरस्कार मिलने के बाद साफ-साफ कहा है कि देश की अर्थव्यवस्था को संकट से उबारने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंहा राव और मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियों को अपनाना पड़ेगा। अब भला भाजपाई सरकार कांग्रेस के पूर्व प्रधानमंत्रियों के फॉर्मूले को अपनाने के लिए क्यों तैयार होगी। आर्थिक संकट और गहराता है तो गहरा जाए पर कोई पार्टी अपना चोला तो नहीं बदल सकती। अभिजीत बनर्जी के बयान ने सरकार को और संकट में डाल दिया है।
अभिजीत बनर्जी पहले भी नोटबंदी व जीएसटी को आर्थिक मंदी का प्रमुख कारण बता चुके हैं। देश भर के अर्थशास्त्री तथा रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन सहित तमाम जानी-मानी हस्तियां देश में की गई नोटबंदी तथा जीएसटी को आर्थिक मंदी का मुख्य कारण माना है। यही दो बातें सरकार मानने को तैयार नहीं है और यही दो कारण है जिनपर विचार किए बगैर आर्थिक मंदी के संकट की समीक्षा संभव नहीं है।
अब अगर सरकार यह मान ले कि नोटबंदी एक गलत निर्णय था तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बड़ी हेठी हो जाएगी। नोटबंदी का फैसला पलटा भी नहीं जा सकता है। जो हो गया सो हो गया। पर इसके दुष्प्रभावों का आंकलन कर कोई सुधारात्मक कदम जरूर उठाये जा सकते हैं।
रही बात जीएसटी की तो इसमें न जाने कितने संशोधन किए जा चुके हैं इसलिए इस मामले में सुधार करने की गुजाईश हो सकती है। पर जब सरकार न सुधरने के ही मूड में है तो फिर इसमें सुधार कौन करेगा। नोटबंदी और जीएसटी के कारण हमारी असंगठित क्षेत्र का उद्योग लगभग नष्ट हो गया है। अधिकांश लघु व सुक्ष्म औद्योगिक ईकाईयां बंद हो चुकी हैं।
इस प्रकार हमारी अर्थव्यवस्था की लगभग 73 प्रतिशत औद्योगिक गतिविधियां बंद हो चुकी हैं, जिससे बड़े पैमाने पर लोग बेरोजगार हो गए हैं। लोगों की जेब में पैसे नहीं हैं, इसलिए बाजार में मांग घटती जा रही है। जब पैसे नहीं हैं, मांग नहीं है तो जाहिर है उत्पादन भी नहीं हो रहा है। इस दुष्चक्र ने हमारी अर्थव्यवस्था को अपने बाहूपाश में जकड़ लिया है।
सरकार की अपनी जिद्द है। नोटबंदी और जीएसटी क्रांतिकारी कदम थे। पर इस क्रांति ने जो बदहाली पैदा की है उससे निपटने की बात तो दूर उसकी चर्चा तक से सरकार भाग रही है। मर्ज कुछ और है, और इलाज कुछ और चल रहा है। रिजर्व बैंक से 1.76 लाख करोड़ रुपए सरकार ने लिए थे, जिसमें से 1.46 लाख करोड़ रुपए कॉर्पोरेट घरानों पर टैक्स घटा कर लुटा दिए गए।
अर्थव्यवस्था कह रही है कि गरीबों की गरीबी दूर करो और सरकार अमीरों की गरीबी दूर करने में लगी है। बैंको को आर्थिक संकट से उबारने के लिए धन्नासेठों के एनपीए बट्टे खातों में डाल दिए गए। इसकी भरपाई सरकार कर रही है। जाहिर है सरकार के एजेंडे में गरीब नहीं धन्नासेठ हैं।
उसको लगता है कि अगर अमीर गरीब न होने पाए तो इस देश से अंतत: गरीबी दूर ही हो जाएगी। अब मेरी समझ में नहीं आता है कि भाजपा महाराष्ट्र में किनको नौकरियां देंगी। गरीबी तो इस देश में है ही नहीं। क्या रईसों को नौकरी देने की तैयारी कर रही है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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