के पी सिंह
लोकसभा चुनाव से फारिग होते ही प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक्शन मोड में आ गये हैं। प्रशासन को नई रफ्तार देने के लिए उन्होंने अधिकारियों के साथ मैराथन बैठकें शुरू कर दी हैं। दो वर्ष पहले जब उत्तर प्रदेश की सत्ता संभाली थी, उस समय भी उन्होंने विभागवार अधिकारियों से उनके काम करने के खाके को लेकर प्रेजेन्टेशन लिया था। उम्मीद की गई थी कि इसके बाद प्रदेश में सभी क्षेत्रों में नवाचार और चुस्त कार्य प्रणाली से बड़ा परिवर्तन देखने को मिलेगा। लेकिन उनका एजेण्डा साम्प्रदायिक एंगिल में भटक गया।
एंटीरोमियों अभियान जैसे कई अच्छे कदम भी इस वजह से सकारात्मक संदेश नहीं दे पाये। उन्होंने अधिकारियों को ईमानदारी और स्वच्छता की शपथ दिलाई थी। इसके तहत उनसे अपनी आय और परिसंपत्तियों का ब्यौरा देने को कहा गया था। लेकिन अधिकारियों ने अवहेलना का रूख अपनाया और आखिर मुख्यमंत्री को उनकी हठधर्मिता के आगे हथियार डाल देने पड़े।
दबाव में सीएम बनाये गये थे योगी
दो वर्ष पहले प्रदेश के राजनैतिक हालात कुछ और थे। संघ के दबाव में उन्हें मुख्यमंत्री तो बना दिया गया था लेकिन केन्द्रीय नेतृत्व को कहीं न कहीं उनकी क्षमताओं पर भरोसा नहीं था। जिसकी वजह से उनके साथ दो उपमुख्यमंत्री जोड़ दिये गये थे। इनमें केशव प्रसाद मौर्या जो कि विधान सभा चुनाव के समय प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष थे, उन्होंने खासतौर से समानान्तर शक्ति केन्द्र के रूप में कार्य करने की कोशिश की।
माना गया था कि उनके चेहरे को सामने रखकर प्रदेश में विधान सभा का चुनाव लड़ा गया था जिसकी वजह से भाजपा पिछड़ी जातियों का छप्पर फाड़ समर्थन जुटाकर एतिहासिक बहुमत हासिल कर सकी थी। इस गुमान की वजह से योगी आदित्यनाथ का नेतृत्व उन्हें अपने लिए हजम नहीं था। बहुत विद्रूप स्थिति बन गयी थी जब वे एनेक्सी में मुख्यमंत्री के लिए निर्धारित कमरे में उनके आसन पर विराजमान हो गये थे। नतीजतन उन्हे वहां से बेदखल करने के लिए बड़ा कौशल दिखाना पड़ा था।
उपचुनावों के नतीजों से और गिरा इकबाल
इसके बाद लोकसभा के तीन उपचुनावों में हुई भाजपा की किरकिरी ने योगी का इकबाल और घटा दिया। संगठन महामंत्री सुनील बंसल ने नौकरशाही में अपने को सुपर चीफ मिनिस्टर के रूप में पेश करके योगी की और ज्यादा भद पीट डाली थी। इस बीच योगी आदित्यनाथ ने बहुत धैर्य से काम करते हुए नरेन्द्र मोदी और अमित शाह का विश्वास अर्जित करके अपनी लाइन बड़ी करने का उद्यम किया और इसमें काफी हद तक सफल रहे। मोदी -शाह के मेहरबान हो जाने से उन्हें भाजपा के राष्ट्रीय स्टार प्रचारक के रूप में अपना कद बढ़ाने के लिए भरपूर मौका और प्रोत्साहन उपलब्ध कराया गया।
लोकसभा चुनाव के नतीजों ने एकाएक काफी ऊंचा किया कद
लोकसभा चुनाव में सपा बसपा गठबंधन के बावजूद उत्तर प्रदेश में भाजपा को जितनी क्षति की आशंका थी उस पर परिणामों में काफी हद तक नियंत्रण पाया गया। नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता अन्य राज्यों की तरह उत्तर प्रदेश में भी सभी कारकों पर भारी पड़ी। हालांकि, इसमें केशव मौर्या के योगदान को भी नकारा नहीं जा सकता। उन्होंने चुनाव के कुछ महीने पहले से पिछड़े समाज की जातियों को अपनी पार्टी के साथ जोड़ने के लिए जमकर मेहनत की थी। चुनाव नतीजों के बाद अब वे योगी के मुकाबले काफी पीछे छूट गये हैं।
यह नहीं भूला जाना चाहिए कि भाजपा मूल रूप से वर्ण व्यवस्था वादी पार्टी है और मोदी सरकार की प्रचंड बहुमत से वापिसी के बाद उसने अपने पत्ते खुलकर खेलने शुरू कर दिये हैं जिसमें पिछड़े नेताओ के लिए अपनी महत्वाकांक्षाओं का संवरण करना उनकी नियति बना दी गई है।
बढ़े मनोबल के साथ एक्शन में आये योगी
इन बदलती हुई परिस्थितियों का प्रभाव योगी के मनोबल पर साफ दिख रहा है। वे अधिक आत्मविश्वास के साथ सरकार संचालन में जुट पड़े हैं। अभी तक उनकी प्राथमिकताएं गोरक्षा, कुम्भ और जिलों के नाम बदलने के रूप में प्रसारित रहीं हैं। इन एकांगी फैसलों की वजह से उन्होंने इतिहास में तुगलक के रूप में अपने को दर्ज कराने के आसार बना लिये थे। लेकिन कानून व्यवस्था, शिक्षा और चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में बड़े दखल के साथ उन्होंने नये श्रीगणेश का सूत्रपात किया है जिससे सिद्ध हो रहा है कि उन्होंने सरकार की असली प्राथमिकताओं को समझना शुरू कर दिया है।
महिला सुरक्षा पर कारगर टिप्स
महिला सुरक्षा को लेकर उन्होंने उच्चस्तरीय बैठक की जो काफी हद तक कारगर साबित होगी, यह विश्वास किया जाना चाहिए। हर पुलिस रेंज में महिलाओं पर अपराध के 10 बड़े मामले चिहिंत करके उनमें दोषियों को जल्दी और कठोर सजा दिलाने का टास्क उन्होंने पुलिस को सौपा है। यह सही दिशा में कदम है। जिससे इस तरह के अपराधियों के हौसले पस्त किये जा सकेंगे। चार महिला एडीजी को मॅानीटरिंग की जिम्मेदारी सुपुर्द करने और कई अन्य फलदायी निर्देश जारी करके उन्होंने महिलाओं से जुड़े अपराधों पर लगाम के लिए सुदृढ़ रणनीति कार्यान्वित करने का आभास दिया है।
12 जून को उन्होंने जिलों के डीएम और पुलिस प्रमुख लखनऊ तलब किये हैं। 13 जून को सीएमओ और सीएमएस व 14 जून को डीआईओएस और बीएसए के साथ बैठक करेंगे। उन्हें पता है कि अनुपमा जायसवाल के भरोसे बेसिक शिक्षा तबाह हो जायेगी क्योंकि जब तक बीएसए लाखों रूपये लेकर पोस्ट होते रहेंगे तब तक जिलों में शिक्षकों से वसूली चलेगी और इसके एवज में शिक्षकों को बिना स्कूल पहुंचे वेतन निकालने की सुविधा जारी रहेगी।
प्राइवेट स्कूलों की मनमानी फीस और संस्कृति को भ्रष्ट करने के उनके तौर तरीकों पर अभी तक लगाम नहीं लग पाई है। जब तक इस दिशा में कुछ नहीं किया जायेगी तब तक शिक्षा में कोई सुधार सार्थक नहीं होगा। हालांकि योगी सरकार की इसके लिए प्रशंसा करनी होगी कि उसने नकल पर काफी हद तक अंकुश लगा दिया है। अस्पतालों के काम न करने से बेमौत मरना गरीबों का नसीब बन गया है। इसलिए अगर दिल्ली की तरह स्वास्थ्य और चिकित्सा सेवाए उत्तर प्रदेश में सुधारी जा सकी तो यह एतिहासिक उपलब्धि होगी।
पोस्टिंग में क्या बदल सकेंगे जातिवादी नजरिया
योगी ने अब तूफानी ढ़ंग से काम करने का संकेत दिया है। लेकिन भ्रष्टाचार व पीड़ितों की शिकायतों के प्रति सरकार और प्रशासनिक तंत्र की संवेदनहीनता ऐसी कमजोरियां है जो उनकी सदिच्छाओं को आडंवर साबित करके रख देती हैं। देखना है कि इसमें कितना परिवर्तन हो पाता है। जातिगत पूर्वाग्रह सीएम योगी की बड़ी कमजोरी है जिसके बने रहने तक अंततोगत्वा अच्छे परिणामों की आशा नहीं की जा सकती है। चुनाव बाद उन्होंने अधिकारियों की ट्रांसफर पोस्टिंग में दलित और पिछड़े वर्ग के अफसरों को हीन भावना के गर्त में धकेलने की नीयत दिखाने से वे बाज नहीं आ सके। यह उनकी कार्यप्रणाली पर एक बटटे की तरह है। जिसे भूला नहीं जा सकता ।