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मल्लिका मिश्र
गोरखपुर । सीएम सिटी में जिस दिन सपा सांसद प्रवीण कुमार निषाद को पुलिस ने पीटा उसी दिन लोकसभा चुनाव में उनके सहयोगी पूर्व विधायक राजमति निषाद और उनके पूर्व अमरेंद्र निषाद ने भाजपा ज्वाइन किया। सियासत का यह कंट्रास्ट लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बेहद अहम है।
सीएम योगी आदित्यनाथ के गृहक्षेत्र के संसदीय सीट क्षेत्र में चुनावी नैया पार कराने में ‘माझी” ही पतवार बनने जा रहा है। योगी जब खुद मैदान में नहीं होंगे तो यहां गोरक्षपीठ के प्रति आस्था को भुनाने वाला फार्मूला काम नहीं आएगा। यह उनके सीएम बनने के बाद दिए गए इस्तीफे के चलते हुए उप चुनाव में साबित भी हो चुका है। ऐसे में परिणाम तय करने का बहुत हद तक दारोमदार माझी यानी निषाद बिरादरी के वोटरों पर ही होगा।
गोरखपुर में वर्ष 1989 के चुनाव से ही गोरक्षपीठ का सिक्का चलता रहा है। लगातार तीन चुनाव जीत का सेहरा महंत अवेद्यनाथ के सिर बंधा तो उसके बाद लगातार पांच चुनाव उनके उत्तराधिकारी और पीठ के महंत योगी आदित्यनाथ के नाम। चुनावों में योगी को एक बार नजदीकी टक्कर मिली थी वर्ष 1999 के चुनाव में। तब सपा प्रत्याशी के रूप में जमुना निषाद ने उनके गले तक मुकाबला किया।
इस चुनाव में योगी की विनिंग मार्जिन महज सात हजार वोटों की ही थी। वजह, इस क्षेत्र में निषाद वोटरों की बहुलता। जमुना निषाद अपनी बिरादरी के स्थानीय कद्दावर नेता थे। निषाद वोटरों की पकड़ के चलते ही सपा ने उन्हें 1998, 1999 और 2004 के लोकसभा चुनाव में गोरखपुर संसदीय क्षेत्र का प्रत्याशी बनाया था। पर, गोरक्षपीठ के प्रति आस्था अन्य समीकरणों पर इतनी भारी रही कि उन्हें सफलता नहीं मिल पायी।
गोरखपुर संसदीय सीट पर सपा को पहली बार सफलता उप चुनाव में 2018 में मिली भी तो निषाद प्रत्याशी के रूप में ही। जमुना निषाद के निधन के बाद निषाद बिरादरी के नए नेता के रूप में उभरे निषाद पार्टी के संस्थापक संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद को सपा ने अपना प्रत्याशी बनाया। प्रवीण की जीत के बाद से ही जमुना निषाद के बेटे अमरेन्द्र निषाद को अपना सियासी करियर खतरे में नजर आने लगा। वह योगी के संपर्क में आने लगे।
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इस बीच उप चुनाव की शिकस्त के बाद भाजपा को अपनी प्रतिष्ठा दांव पर नजर आ रही थी। जमुना निषाद के बनाए जनाधार पर अमरेंद्र की कुछ हद तक पकड़ बनी हुई है, खासकर पिपराइच विधानसभा क्षेत्र में जहां से जमुना विधायक थे और उनके निधन के बाद उनकी पत्नी राजमति दो बार विधायक रहीं।
पांच मार्च को अमरेंद्र की योगी से करीब एक घंटे बात हुई, छह मार्च को उन्होंने निषाद पार्टी से सपा के गठबंधन को लेकर अपनी नाराजगी जरिए प्रेस कांफ्रेंस सार्वजनिक कर दी और सात मार्च को लखनऊ पहुंचकर भाजपा में शामिल हो गये। इस बीच निषाद पार्टी को अमरेंद्र की बिरादरी पर पकड़ ढीली करनी थी।
निषादों को एससी आरक्षण की मांग को लेकर रैली की प्लानिंग की गयी और उसी दिन कार्यक्रम स्थल से गोरक्षपीठ में घुसकर सीएम आवास का ऐलान कर दिया गया। नतीजा, लाठीचार्ज हुआ सांसद प्रवीण निषाद भी पिट गए। इस आंदोलन से निषाद पार्टी ने अपनी बिरादरी में मैसेज देने की कोशिश की।
बदले हालात में यह माना जा रहा है कि भाजपा अमरेंद्र निषाद पर दांव खेलने जा रही है। हालांकि अभी तक उसके पास विकल्प के रूप में बसपा से आए पूर्व विधायक जयप्रकाश निषाद का नाम था जो भाजपा में क्षेत्रीय उपाध्यक्ष के रूप में बने हुए हैं। चूंकि जयप्रकाश की अपनी जमीनी पकड़ चौरीचौरा विधानसभा क्षेत्र में रही और यह बांसगांव संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है। अमरेंद्र निषाद बाहुल्य वाले पिपराइच विधानसभा में बिरादरी के बीच मजबूत हैं और यह गोरखपुर संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है।
गठबंधन के तहत गोरखपुर की सीट सपा के खाते में है और यहां से वर्तमान सांसद प्रवीण या उनके पिता संजय निषाद का ही प्रत्याशी बनना तय है। सीएम योगी की सीधी प्रतिष्ठा वाले गोरखपुर संसदीय क्षेत्र में यह बात काफी हद तक साफ हो चुकी है कि यहां की चुनावी पतवार ‘माझी” के ही हाथ होगी।
पालीटिकल फैक्ट्स
– गोरखपुर संसदीय क्षेत्र में करीब 25 फीसदी निषाद वोटर हैं
– योगी आदित्यनाथ 1999 में निषाद बिरादरी के जमुना निषाद से महज सात हजार वोट से जीत पाये थे
– गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र में सपा को पहली बार कामयाबी निषाद प्रत्याशी के रूप में 2018 के उप चुनाव में मिली
– वर्तमान सांसद प्रवीण निषाद के पिता ने निषाद बिरादरी के वोटरों को सहेजकर निषाद पार्टी का गठन किया है
– भाजपा में शामिल अमरेंद्र निषाद के पिता जमुना पिपराइच विधानसभा से एक बार आैर माता राजमति दो बार विधायक रही हैं