Friday - 25 October 2024 - 7:40 PM

बिहार में सर्दी तो कम है सियासी माहौल गरम है

कुमार भवेश चंद्र

‘सर्दी में भी गर्मी का अहसास’ बिहार में यह नया सियासी सिगूफा बन गया है। जनता दल यूनाइटेड की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में पार्टी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने के बाद से ही सियासी गर्मी बढ़ने की उम्मीद की जा रही है।

विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद से ही जेडीयू एनडीए में खुद को असहज महसूस कर रहा है। कारणों की लंबी फेहरिश्त है। पार्टी नेता और मुख्यमंत्री के असहज होने की एक वजह फीकी पड़ती है तो दूसरी वजह सिर उठा लेता है।

विधानसभा चुनाव में एनडीए के पूर्व सहयोगी पार्टी एलजेपी का रुख, बीजेपी की उसके प्रति नरमी, चुनावी नतीजे में साफ तौर पर जेडीयू को नुकसान। अपनी पसंद के कैबिनेट चुनने की आजादी पर पहरा जैसे अनेक कारणों के बीच जब बिना किसी ठोस कारण के अरुणाचल प्रदेश में बीजेपी ने जेडीयू के छह विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल करा दिया तो लगा कि जेडीयू के सब्र का बांध टूट जाएगा।

लेकिन नीतीश कुमार की सियासत को समझने वाले समझ रहे हैं कि वे अपने विरोधियों से निपटने में हड़बड़ी नहीं दिखाते बल्कि पूरे सुकून से योजना के साथ उसका निपटारा करते हैं।

जेडीयू में नेतृत्व परिवर्तन का उनका फैसला इसी दिशा में एक मजबूत कदम माना जा रहा है। पार्टी के अध्यक्ष के तौर पर उनका कार्यकाल अभी दो साल और बाकी था। लेकिन मौजूदा सियासी परिस्थितियों ने उन्हें अपने फैसले पर पुनर्विचार करने को मजूबर किया है। जेडीयू में कभी बेहद ताकतवर रहे आरसीपी सिंह को उस वक्त पार्टी की कमान सौंपी गई है जब वे पार्टी से थोड़ी दूरी बढ़ा रहे थे।

कहा ये भी जा रहा है कि वे बीजेपी के करीब आ रहे थे। लेकिन पार्टी के लिए बेहद कठिन और चुनौती भरे समय में नीतीश ने उनपर भरोसा किया है। उन्हें अपनी ताकत सौंपी है तो जाहिर है कि उनकी रणनीति इसके जरिए किसी बड़े उद्देश्य के लिए है।

कभी प्रशांत किशोर को नेतृत्व सौंपने का इशारा करने वाले नीतीश के इस कदम को पार्टी के भीतर और बाहर आम तौर पर स्वागत हुआ है। खासकर पार्टी के भीतर तो उत्साह का माहौल है। प्रशांत किशोर को सहजता से स्वीकार करने की गुंजाइश तो कम थी लेकिन आरसीपी का पार्टी के हर तबके में स्वागत हो रहा है।

ऐसे गाढ़े समय में जब अंदर और बाहर अपने सभी सियासी विरोधियों को सबक सिखाना है पार्टी के भीतर में संतोष और उत्साह बेहद जरूरी पहलू है। नीतीश का ये फैसला ये बताता है कि वे इस फैसले के साथ इससे भी बड़े फैसले की ओर बढ़ने की कोशिश में हैं। उनका अगला कदम समझना इतना आसान भी नहीं है।

बीजेपी के प्रति पार्टी की नाराजगी को सही वक्त तक प्रखर रूप से उजागर नहीं होने देना भी एक रणनीति है। प्रदेश का पूरा विपक्ष और सियासी लोग उनसे चौकाने वाले फैसले की उम्मीद बांधे बैठे हैं। लेकिन जेडीयू ये पत्ते अपने हिसाब से खेलने के मूड में दिख रही है।

बीजेपी के प्रति जेडीयू की नाराजगी कम नहीं है, ये जाहिर करना भी जरूरी है। लेकिन यह सब्र और समय जेडीयू ने बीजेपी को इसलिए देना जरूरी समझा है ताकि वह सरकार में दखलंदाजी से जब तक परहेज कर सकती है करे।

जेडीयू के नए अध्यक्ष ने पार्टी की कमान संभालने के साथ इरादे साफ कर दिए हैं। पार्टी की ओर से जारी इस ट्वीट को समझने की जरूरत है। आरसीपी सिंह को कोट करते हुए इस ट्वीट के जरिए इशारों में बीजेपी को यह समझा दिया है कि अब बस……। देखिए इस ट्वीट को, जिसमें बगैर नाम लिए बीजेपी के लिए क्या संदेश है?

बहरहाल है एनडीए के बीच बढ़ती गरमागरमी को देखते हुए विपक्ष की उम्मीदें जाग जाना भी स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। आरजेडी के दिग्गज शिवानंद तिवारी से लेकर दूसरे बड़े नेता नीतीश कुमार के सियासी स्वाभिमान को झकझोड़ने की कोशिश में हैं।

इसमें कांग्रेस का साथ भी मिल रहा है। और यह सब इसलिए क्योंकि 2020 के चुनावी आंकड़े यह उम्मीद पैदा करते हैं। 125 विधायकों के समर्थन से बहुमत के हासिए पर खड़ी एनडीए सरकार को मजबूती देने का गणित सामने किया जा रहा है।

नीतीश को यह संदेश देने की कोशिश हो रही है कि यदि वे चाहें तो मौजूदा विपक्ष उन्हें अपने स्वाभिमान को ठेस पहुंचाने वाले को सबक सिखाने के लिए कंधा देने को तैयार है। इशारा किया जा रहा है कि वे अगर वे 2015 को दोहराने का विचार रखते हैं तो एक बार फिर वे विपक्ष के हीरो बन सकते हैं। और इतना ही नहीं आरजेडी उन्हें 2024 में पीएम के रूप में प्रोजेक्ट करने का भरोसा दे सकते हैं।

सवाल उठता है कि क्या नीतीश ने सियासत की इतनी कच्ची गोलियां खेली है कि वे इस ऑफर पर उछलकर विपक्ष के सपने को अपना सपना बना लेंगे। जाहिर है वे इस चर्चा को थोड़ा और गरम होने देने का इंतजार कर रहे हैं।

रही बात बीजेपी के प्रति जेडीयू के दबाव की तो उनके नए नेतृत्व ने देशभर में अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर यह काम छोटे रूप में कर दिया है। अब तो बस पश्चिम बंगाल और दूसरे पांच राज्यों के चुनाव थोड़ा और करीब आने का इंतजार है।

पश्चिम बंगाल, असम में पार्टी की सक्रियता से इस काम को आगे बढ़ाया जा सकता है। बहरहाल इतना तो तय है कि 2020 के चुनाव ने जेडीयू-बीजेपी गठजोड़ को कमजोर कर दिया है। बीजेपी की महात्वाकांक्षा भी जोर मार रही हैं। वे नीतीश को मुख्यमंत्री कुबूल करने के बावजूद प्रदेश में दो मुख्यमंत्रियों का दबाव और अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश में है।

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दूसरी ओर छोटे भाई की कमजोर भूमिका के बावजूद नीतीश कुमार सरकार में अपनी हनक और ताकत को कम होते नहीं देखना चाहते। लेकिन यह पावर बैलेंस इतना आसान नहीं दिख रहा है। इसलिए इस सरकार की आयु को लेकर एक आशंका बिहार की सियासत में बनी हुई है।

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पश्चिम बंगाल के चुनाव से पहले इसको लेकर बिहार से कोई नया संदेश मिलने लग जाए तो आश्चर्य की बात नहीं। नीतीश कुमार की सियासत को समझने वाले उनके सब्र का इंतजार भी कर रहे हैं। लेकिन इतना तय है कि बिहार की इस सरकार के पांच साल चलने की भविष्यवाणी करना जोखिम मोल लेने जैसा है।

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