डॉ. सीमा जावेद
भारत और पाकिस्तान में पिछले लंबे समय से चल रही ताप लहर (हीटवेव) की वजह से इंसानी आबादी को बड़े पैमाने पर मुश्किलों का सामना करना पड़ा है और इसने वैश्विक स्तर पर गेहूं की आपूर्ति पर भी असर डाला है।
दुनिया के प्रमुख जलवायु वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय दल द्वारा किए गए रैपिड एट्रीब्यूशन विश्लेषण के मुताबिक इंसान की नुकसानदेह गतिविधियों के कारण उत्पन्न जलवायु परिवर्तन की वजह से ऐसी भयंकर गर्मी पड़ने की संभावना करीब 30 गुना बढ़ गई है।
भारत और पाकिस्तान के अनेक बड़े हिस्सों में इस साल समय से पहले अप्रत्याशित हीटवेव शुरू हो गई। यह मार्च के शुरू में प्रारंभ हुई और काफी हद तक अब भी बरकरार है। भारत में मार्च का महीना पिछले 122 सालों में सबसे गर्म माह रहा।
वहीं, पाकिस्तान में भी तापमान ने कई रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए। इसके अलावा अप्रैल में ताप लहर और भी प्रचंड हो गई। मार्च का महीना बेहद सूखा रहा। इस दौरान पाकिस्तान में सामान्य से 62% कम मानसूनपूर्व बारिश हुई जबकि भारत में यह आंकड़ा 71% रहा।
हीटवेव की वजह से कम से कम 90 लोगों की मौत हुई। अगर मौतों का आंकड़ा ठीक से दर्ज किया जाए तो इस संख्या में निश्चित रूप से बढ़ोत्तरी होगी।
हीटवेव की जल्द आमद और बारिश में कमी की वजह से भारत में गेहूं के उत्पादन पर बुरा असर पड़ा। नतीजतन सरकार को गेहूं के निर्यात पर पाबंदी का ऐलान करना पड़ा, जिसकी वजह से वैश्विक स्तर पर गेहूं के दामों में तेजी आई।
भारत ने इससे पहले रिकॉर्ड एक करोड़ टन गेहूं के निर्यात की उम्मीद लगाई थी जिससे यूक्रेन-रूस युद्ध की वजह से पैदा हुई गेहूं की किल्लत को दूर करने में मदद मिलती।
पूरी दुनिया में आज जिस तरह की ताप लहर चल रही है उसे जलवायु परिवर्तन ने और भी ज्यादा तीव्र और जल्दी-जल्दी आने वाली आपदा में तब्दील कर दिया है।
भारत और पाकिस्तान में लंबे वक्त तक अधिक तापमान पर जलवायु परिवर्तन के असर को नापने के लिए वैज्ञानिकों ने पियर रिव्यूड मेथड का इस्तेमाल करके कंप्यूटर सिमुलेशन और मौसम संबंधी डाटा का विश्लेषण किया ताकि मौजूदा जलवायु की तुलना 19वीं सदी के उत्तरार्ध से 1.2 डिग्री सेल्सियस ग्लोबल वार्मिंग पर, पूर्व की जलवायु से की जा सके।
यह अध्ययन मार्च और अप्रैल के दौरान गर्मी से सबसे बुरी तरह प्रभावित हुए उत्तर पश्चिमी भारत तथा दक्षिण पूर्वी पाकिस्तान के औसत अधिकतम दैनिक तापमान पर केंद्रित है।
इसके नतीजे दिखाते हैं कि लंबे समय से चल रही मौजूदा हीटवेव की संभावना अभी बहुत कम है, यानी कि इसकी संभावना हर साल मात्र 1% ही है मगर इंसान की गतिविधियों के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन ने इसकी संभावना को 30 गुना बढ़ा दिया है। यानी कि अगर मनुष्य की हरकतों की वजह से उत्पन्न जलवायु परिवर्तन नहीं होता तो यह भीषण हीटवेव का दौर अत्यंत दुर्लभ होता।
जब तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन पर पूरी तरह रोक नहीं लगती तब तक वैश्विक तापमान इसी तरह बढ़ता रहेगा और इससे संबंधित चरम मौसमी घटनाएं और भी जल्दी जल्दी होती रहेंगी।
वैज्ञानिकों ने पाया है कि अगर वैश्विक तापमान में वृद्धि 2 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाती है तो ऐसी हीटवेव की संभावना हर 5 साल में एक बार होगी। यहां तक कि प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में कटौती की धीमी प्रक्रिया की वजह से भी ऐसी हीट वेव की संभावनाएं बरकरार रह सकती हैं।
हो सकता है कि इस अध्ययन के नतीजे इस बात को कम करके आंकें कि अब ऐसी हीटवेव कितनी सामान्य बात है और अगर ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन इसी तरह जारी रहा तो यह हीटवेव और कितनी जल्दी जल्दी उत्पन्न होंगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि मौसम से संबंधित डाटा रिकॉर्ड उतने विस्तृत रूप में उपलब्ध नहीं है कि शोधकर्ता उनका सांख्यिकीय विश्लेषण कर सकें।
इस अध्ययन को 29 शोधकर्ताओं ने वर्ल्ड वेदर अटरीब्यूशन ग्रुप के तहत अंजाम दिया है। इस समूह में भारत, पाकिस्तान, डेनमार्क, फ्रांस, नीदरलैंड्स, न्यूजीलैंड, स्विटजरलैंड, ब्रिटेन और अमेरिका के विभिन्न विश्वविद्यालयों तथा मौसम विज्ञान संबंधी एजेंसियों से जुड़े वैज्ञानिक शामिल हैं।
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अपनी प्रतिक्रिया देते हुए आईआईटी दिल्ली में सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक साइंस के प्रोफेसर कृष्ण अचुता राव ने कहा, ‘‘भारत और पाकिस्तान में तापमान का उच्च स्तर पर पहुंच जाना एक सामान्य सी बात है लेकिन इस बार अप्रत्याशित बात यह रही कि यह सिलसिला बहुत जल्दी शुरू हो गया और लंबे वक्त से जारी है। दोनों देशों के ज्यादातर हिस्सों में लोगों को आखिरी के हफ्तों में भीषण गर्मी से कुछ राहत मिली।
भीषण गर्मी से खासतौर पर खुले में काम करने वाले करोड़ों श्रमिकों और मजदूरों को बहुत मुश्किल भरे हालात का सामना करना पड़ा। हम जानते हैं कि आने वाले वक्त में ऐसी स्थितियां बार-बार पैदा होगी क्योंकि तापमान बढ़ रहा है और हमें इससे निपटने के लिए और बेहतर तैयारी करने की जरूरत है।’’
आगे, आईआईटी मुंबई के सिविल इंजीनियरिंग और क्लाइमेट स्टडीज में प्रोफेसर अर्पिता मोंडल ने बताया, “हीटवेव में जंगलों में आग लगने का खतरा बढ़ाने की क्षमता है। यहां तक कि इससे सूखा भी उत्पन्न हो सकता है। क्षेत्र के हजारों लोग, जिनका ग्लोबल वार्मिंग में बहुत थोड़ा सा योगदान है, वे अब इसकी भारी कीमत चुका रहे हैं। उन पर यह आपदा जारी रहेगी, अगर वैश्विक स्तर पर प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में उल्लेखनीय कटौती नहीं की गई।”
इसी क्रम में इंपीरियल कॉलेज लंदन के ग्रंथम इंस्टीट्यूट के डॉ फ्रेडरिक ओटो ने कहा, “ऐसे देशों में जहां हमारे पास डाटा उपलब्ध है, वहां हीटवेव सबसे जानलेवा चरम मौसमी घटना है। साथ ही साथ तेजी से गर्म होती धरती में यह हीटवेव सबसे मजबूती से बढ़ रही चरम मौसमी घटना भी है। जब तक ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन जारी रहेगा तब तक ऐसी मौसमी आपदाएं और भी ज्यादा आम मुसीबत बनती जाएंगी।”
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अपने विचार रखते हुए डेनमार्क की यूनिवर्सिटी ऑफ कोपनहेगन के पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट के डॉक्टर इमैनुअल राजू ने कहा, “हीटवेव को आपदा कहे जाने पर जोर देना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि अगर ऐसा नहीं किया गया तो इनके प्रभावों में योगदान देने वाले अनेक कारकों को नजरअंदाज किया जा सकता है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि क्षतिपूर्ति और राहत प्रणालियों पर आपदाओं के गंभीर प्रभाव पड़ते हैं।”
पाकिस्तान से इस्लामाबाद से क्लाइमेट एनालिटिक्स के लिए काम कर रहे जलवायु वैज्ञानिक डॉक्टर फहद सईद ने कहा, सबसे अफसोस की बात यह है कि ग्लोबल वार्मिंग के मौजूदा स्तर पर क्षेत्र की एक बड़ी गरीब आबादी के लिए अनुकूलन की सीमा का उल्लंघन किया जा रहा है।
सईद ने कहा, ”क्या कोई कल्पना कर सकता है कि 2 डिग्री सेल्सियस गर्म दुनिया के लिए भी यह कितना बुरा होगा। एक मजबूत अनुकूलन और शमन वाली कार्रवाई के अभाव में डेढ़ डिग्री सेल्सियस से अधिक की कोई भी वार्मिंग कमजोर आबादी के लिए अस्तित्व का खतरा पैदा कर सकती है।”
सरबोने यूनिवर्सिटी के इंस्टिट्यूट पियरे सिमोन लाप्लास सीएनआरएस के प्रोफेसर रॉबर्ट वाटार्ड कहते हैं, ‘‘जलवायु परिवर्तन से खाद पानी पाई हीटवेव की वजह से खाद्य पदार्थों के दामों में प्रत्यक्ष बढ़ोत्तरी हो रही है।
भारत ने इस साल गेहूं का रिकॉर्ड निर्यात करने की योजना बनाई थी ताकि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पैदा हुई किल्लत को दूर करने में मदद मिल सके। मगर अब जलवायु परिवर्तन के कारण पड़ी हीटवेव के चलते गेहूं का ज्यादातर निर्यात रद्द कर दिया गया है, जिसकी वजह से वैश्विक स्तर पर गेहूं के दामों में इजाफा हुआ है और पूरी दुनिया में भुखमरी बढ़ी है।”
(लेखिका पर्यावरणविद & जलवायु परिवर्तन की रणनीतिक संचालक हैं)