जुबिली न्यूज डेस्क
विश्व प्रसिद्ध स्वीडिश युवा पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थुनबर्ग एक बार फिर सड़क पर उतर आई हैं। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने हुए 25 सितंबर को स्वीडन की संसद के बाहर अपने पहले फ्राइडेज फॉर फ्यूचर आंदोलन का आगाज किया। थुनवर्ग के आह्वान पर दुनिया के कई देशों में युवाओं ने जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया।
अगस्त 2018 में जब जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर 15 साल की ग्रेटा हाथों में तख्ती लिए हर शुक्रवार को स्कूल से छुट्टी कर स्वीडन के संसद के बाहर बैठती थी तो उन्हें उस समय किसी ने गंभीरता से नहीं लिया। उस समय किसी को अंदाजा नहीं था कि उनके इस आंदोलन से पूरी दुनिया के युवा जुड़ेंगे।
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ग्रेटा के एक आह्वान पर दुनिया के कई देशों के युवा उनके साथ खड़े हो रहे हैं। उनका ‘फ्राइडे फॉर फ्यूचर’ अभियान आज पूरी दुनिया में छा गया है।
शुक्रवार को ऐसा ही नजारा दिखा। ग्रेटा ने स्वीडन के संसद के बाहर अपने अभियान का आगाज किया तो उनके इस अभियान के साथ एशिया से लेकर अफ्रीका तक के युवा जुड़े। शुक्रवार को विश्व के 3,100 स्थलों पर फ्राइडेज फॉर फ्यूचर के प्रदर्शन हुए।
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कोरोना महामारी की वजह से जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ठोस कदमों की मांग करने वाला स्कूली बच्चों और युवाओं का यह अभियान ऑनलाइन दुनिया में सिमट गया था।
संसद के बाहर पत्रकारों से बात करने हुए 17 साल की थुनबर्ग ने कहा, “सबसे बड़ी आशा यह है कि लोगों में जागरूकता के स्तर और आम राय पर असर डाल सके।.”
थुनवर्ग ने 20 अगस्त 2018 को स्वीडन के संसद के सामने पहली बार अकेले प्रदर्शन किया था। देखते ही देखते उनके साथ पूरे विश्व के स्कूली बच्चे जुड़ते गए।
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थुनवर्ग के आंदोलन के एक साल के भीतर ही उन्हें संयुक्त राष्ट्र ने राजनेताओं और बिजनेस लीडर्स की एक सभा को संबोधित करने बुलाया। थुनबर्ग ने स्विट्जरलैंड के दावोस के विश्व आर्थिक मंच से भी विश्व को संदेश दिया।
थुनवर्ग ने विश्व के बड़े-बड़े नेताओं से कड़े सवाल पूछा था। वैज्ञानिक तथ्यों की बात कर थुनबर्ग ने विश्व नेताओं से ग्रीनहाउस गैसों में कटौती करने और दूसरी हानिकारक गैसों के उत्सर्जन को घटाने की जवाबदाही तय करने की मांग की। इस कदम के लिए उन्हें दुनिया भर के पुरस्कार और प्रशंसा तो मिली लेकिन साथ ही तमाम आलोचनाओं और जान से मारने की धमकियां तक मिलीं।
दुनिया भर में जोर पकड़ते इस अभियान को भी कोरोना संक्रमण के कारण घरों में सिमटना पड़ा। स्कूल बंद हो गए और बच्चे घरों में कंप्यूटर से ही अपने स्कूलों से और इस अभियान से भी जुड़े रहे। अगस्त में थुनबर्ग और कुछ अन्य एक्टिविस्ट ने जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल से बर्लिन में मुलाकात की और अपने सुझावों वाली चिट्ठी सौंपी। इसके पहले अप्रैल में डिजिटल स्ट्राइक का आयोजन हुआ था जिसमें वैसे तो तादाद कम रही लेकिन आंदोलन जिंदा रहा।
अभियान से जुड़े युवा और किशोर कार्यकर्ता कहते हैं कि वे तब तक अपना प्रदर्शन जारी रखेंगे जब तक प्रकृति का दोहन जारी रहेगा।