राजीव ओझा
उत्तर प्रदेश और देश खुले में शौच से लगभग मुक्त हो चुका। सर पर मैला ढोने की प्रथा भी लगभग समाप्त हो चुकी है। लेकिन बंद सीवेज और सेप्टिक टैंक बन रहे जानलेवा। सेप्टिक टैंक के नर्क में उतर कर सफाई कर्मी लगातार जान गवा रहे हैं। समस्या अभी गंभीर है। शौचालय का जरूरी हिस्सा हैं सीवर और सेप्टिक टैंक। लेकिन इससे सफाईकर्मियों की जान आफत में है। सफाई कर्मियों के लिए सेप्टिक टैंक और सीवर गैस चेंबर साबित हो रहे हैं। हर महीने कहीं किसी न किसी जिले से ऐसी खबर आती है कि सेप्टिक टैंक में उतरे सफाईकर्मी की मौत हो गई। ताजा मामला सुल्तानपुर का है।
पिछले हफ्ते सुल्तानपुर के दोस्तपुर थानाक्षेत्र में शुक्रवार को पुराने सेप्टिक टैंक के पुनर्निर्माण के समय जहरीली गैस का रिसाव हुआ जिसकी चपेट में आकर पांच लोगों की मौत हो गई। इसी वर्ष जुलाई में हापुड़ में सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय तीन मजदूरों की मौत हो गई थी। सरकार के पास दो साल में सीवर और सैप्टिक टैंक की सफाई के दौरान लगभग 25 लोगों के मरने की सूचना है।
आरटीआई के तहत प्राप्त मिली जानकारी से पता चलता है कि 1993 से साल 2019 तक उत्तर प्रदेश में 78 मौत के मामलों में सिर्फ़ 23 में ही 10 लाख का मुआवज़ा दिया गया। अन्य राज्यों में भी स्थिति ऐसी ही है। महाराष्ट्र में सीवर सफाई के दौरान हुई 25 लोगों की मौत के मामले में किसी भी पीड़ित परिवार को 10 लाख रुपये का मुआवज़ा नहीं दिया गया। गुजरात में सीवर में 156 लोगों की मौत के मामले में सिर्फ़ 53 को ही 10 लाख का मुआवज़ा दिया गया।
सुल्तानपुर जिले के दोस्तपुर थानाक्षेत्र में शुक्रवार को कटघरा पट्टी गांव निवासी रामतीरथ के पुराने सीवर टैंक के पुनर्निर्माण के समय गैस पाइप नहीं निकालने की वजह से जहरीली गैस का रिसाव हुआ। उसकी चपेट में 6 लोग आ गये। इलाज के दौरान इनमे से पांच लोग राजेश निषाद (32), अशोक निषाद (40), रविन्द्र निषाद (25), शरीफ (52) और राम किशन (40) की मौत हो गयी।
दरअसल सेप्टिक टैंक या सीवर लाइन में मिथेन, इथेन और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी जहरीली गैस पैदा हो जाती हैं। इस कारण सीवर की सफाई को बिना ओक्सिजन मास्क के उतरने वाले हर सफाईकर्मी की जान को गंभीर खतरा होता है। अकसर होता यह है कि पहले उतरने वाला सफाईकर्मी जहरीली गैस की चपेट में आकर बेहोश हो जाता है। उसको बचाने के लिए सेप्टिक टैंक में उतरने वाले भी चपेट में आ जाते हैं। इनमें से कई जान गवां बैठते हैं।
हाल ही में सीवर सफाई के दौरान होने वाली मौतों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा, ‘दुनिया के किसी देश में लोगों को मरने के लिए गैस चैंबर्स में नहीं भेजा जाता है। हर महीने सीवर सफाई के काम में लगे चार से पांच लोग की मौत हो रही है। स्कैवेंजिंग एक्ट 2013 के तहत किसी भी व्यक्ति को सीवर में भेजना पूरी तरह से प्रतिबंधित है। अगर किसी विषम परिस्थिति में सफाईकर्मी को सीवर के अंदर भेजा जाता है तो इसके लिए 27 तरह के नियमों का पालन करना होता है। लेकिन इनका पालन किया नहीं जाता।
सीवर में अंदर घुसने के लिए इंजीनियर की अनुमति होनी चाहिए और पास में ही एंबुलेंस होना चाहिए ताकि दुर्घटना की स्थिति में जल्द अस्पताल पहुंचाया जा सके। सीवर टैंक की सफाई के दौरान विशेष सूट, ऑक्सीजन सिलेंडर, मास्क, गम शूज, सेफ्टी बेल्ट व आपातकाल की अवस्था के लिए एंबुलेंस को पहले सूचित करने जैसे नियमों का पालन करना होता है। हालांकि ऐसे कई सारे मामले हैं, जिसमें ये पाया गया है कि इन नियमों का पालन न तो सरकारी एजेंसियां कर रही हैं और न ही निजी एजेंसियां। थोड़े से पैसे के चक्कर में गरीब सफाई कर्मी जान पर खेल रहे हैं। अब यह सोचने वाली बात है कि प्रदेश और देश खुले में शौच की समस्या से तो मुक्त हो गया लेकिन इससे जुड़े सीवर और सेप्टिक टैंक जानलेवा हो रहे हैं। सिर्फ मुआवजा देने से समस्या का समाधान नहीं होगा। जबतक सफाई कर्मियों का जीवन सुरक्षित नहीं इस अभियान को पूरा नहीं कहा जा सकता।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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