जुबिली पोस्ट ब्यूरो
लखनऊ। देश के सबसे बड़े राज्य की राजधानी की सफाई पर करोड़ो का बजट खर्च होने के बाद भी साफ़ सफाई में लखनऊ का हाल एक दम जीरो है। सफाई की जिम्मेदारी नगर निगम पर है। नगर आयुक्त के तौर पर वरिष्ठ पीसीएस अधिकारी इस निगम के मुखिया हैं। दो अपर नगर आयुक्त पर आधे- आधे शहर की जिम्मेदारी है।
सभी के पास अपने- अपने जोन की जिम्मेदारी है। यही नहीं आठ जोन में बंटे नगर निगम के पास आठ जोनल अधिकारी, तीन जोनल सेनेटरी आफिसर, नगर स्वास्थ्य अधिकारी के पद पर पर्यावरण अभियंता की जिम्मेदारी है। हजारो में सफाई कर्मचारी के साथ पूरा सहयोग करना चाहता है, लेकिन फिर भी शहर गन्दा ही है।
लखनऊ स्वच्छता सव्रेक्षण- 2019 में रैकिंग छह पायदान फिसलकर 121वें स्थान पर पहुंच गई। इसके बाद भी सुधार के मामले में बड़े फैसले नहीं किए गए। सफाई कराने में कदम- कदम पर भ्रष्टाचार ने लखनऊ की छवि देश में धूमिल हुई है।
उपभोक्ता फोरम का आदेश आईना हो सकता है, इससे पहले हाईकोर्ट, एनजीटी भी समय -समय पर आदेश देता रहा है। लेकिन अधिकारी से कर्मचारियों तक किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा।
शहर को साफ सुथरा रखने के लिए आठ जोनों में बांटा गया है। हर जोन में जोनल अधिकारियों के पास सफाई का भी प्रभार है लेकिन उनके स्तर पर ही सफाई की अनदेखी की जाती है। हालत ये है कि हर साल सफाई पर भारी भरकम खर्च होने के बावजूद शहरवासी गंदगी को लेकर परेशान रहते हैं।
यही नहीं तीन जोनों में जोनल सेनेटरी अफसर भी हैं। शहर में करीब 6200 सफाई कर्मचारी ठेकेदारी पर कार्य कर रहे हैं। नगर निगम प्रतिदिन मानदेय के तौर पर 250 रुपये प्रति कर्मचारी भुगतान कर रहा है, लेकिन हकीकत में आधे कर्मचारियों से ही काम चलाया जा रहा है।
ट्रैक्किंग वॉच से खुल चूका है राज़
ह्यूमन रिसोर्स ट्रैक्किंग वॉच से यह सच सामने आ चुका है कि कर्मचारियों की लोकेशन उन्नाव और दिल्ली में है और भुगमान यहां हो रहा है। दूसरी तरफ शहरवासियों को खुद के खर्च पर ही सफाई करानी पड़ती है। कई इलाकों में तो महीनों सफाई नहीं हो पाती है। नगर निगम के अधिकारियों ने ठेकेदारों पर सख्ती दिखाई तो पार्षद, नेता और ठेकेदारों के राजनीतिक दबाव बनाया जाने लगा।
इस तरह से सफाई व्यवस्था पर हर महीने में करीब सौ करोड़ खर्च हो रहे हैं। अफसर, पार्षद और ठेकेदारों का गठजोड़ ही शहर को गंदा कर रहा है। कूड़ा उठान में बड़े खेल से पर्दा उठ चुका है।
1300 मीटिक टन कूड़ा उठाने का दवा फेल
नगर निगम का दावा है कि हर दिन वह अपने वाहनों से 1300 मीटिक टन कूड़ा उठा रहा है, जबकि घर- घर से कूड़ा कर रही कंपनी मेसर्स इकोग्रीन एक हजार मीटिक टन कूड़ा उठाने का दावा कर रही है और हर दिन 1604 रुपये मीटिक टन के हिसाब से नगर निगम से भुगतान भी ले रही है। जबकि शहर में हर दिन 1500 मीटिक टन ही कूड़ा निकलता है।
ऐसे में आठ सौ मीटिक टन कूड़ा उठान के भुगतान में खेल चल रहा है। इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। मेयर ने अल्टीमेटम दिया था, मगर समय बीता तो बात आई गई हो गई। स्वच्छता रैकिंग में सबसे कम नंबर कूड़ा उठान में मिला है। इसमें नगर निगम को कूड़ा प्रबंधन में सुधार करना था।
यानी घर- घर से कूड़ा एकत्र हो और कूड़े की छंटाई घर पर ही हो जाए, लेकिन शहर के 5.59 लाख भवनों और मकानों में से 1.40 लाख से ही कूड़ा एकत्र हो पा रहा है और वह भी बिना छंटाई के। इस मामले में भी सिर्फ नोटिस ही दी जाती रही है।
मंत्री के निरीक्षण का नहीं पड़ा असर
सरकार बनने के बाद हर माह के पहले शनिवार को नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना शहर के चार से पांच इलाकों का स्वयं दौरा कर वहां की सफाई व्यवस्था का निरीक्षण करते रहे हैं। सफाई से जुड़े अधिकारियों पर मंत्री ने कार्रवाई भी की लेकिन कोई असर नहीं दिख रहा।
60 करोड़ के काम में खेल
सफाई का बजट 50 करोड़ का और काम धेले भर नहीं। नगर निगम के कई इलाकों में चल रही ठेके पर सफाई व्यवस्था में बड़ा छेद है। हाल यह है कि बिना टेंडर प्रक्रिया के 60 करोड़ के काम ऐसे ही बांटे जा रहे हैं। अधिकारी, पार्षद और ठेकेदार मिलकर सफाई के बजट में खेल कर रहे हैं। ठेकेदारों ने ही कहा था कि अधिकारियों से लेकर कुछ पार्षद कमीशन लेते हैं।
पार्षद ही संतोषजनक सफाई होने की रिपोर्ट देकर भुगतान को हरी झडी दे देते हैं, जबकि हकीकत में सफाई कुछ प्रभावशाली घरों तक ही सीमित रह जाती है। करीब 6 सालों में इस व्यवस्था पर एक अरब से ज्यादा खर्च कर दिये गये लेकिन नतीजा शून्य है।
ये है संसाधन
सफाई बेड़े में 300 गांडियां हैं। इन पर रोजाना छह हजार का डीजल फूंका जाता है। इसके बावजूद शहर की सफाई ढाक के तीन पात है। आंकड़े के मुताबिक 21 जेसीबी, 21 लीलैंड गाडियां, 30 टाटा एस, 5 ट्रैक्टर 2 ओमनी मारुति 16 टाटा 407 जैसी कई गाड़िया शामिल है।