राजेंद्र कुमार
सब कुछ उम्मीद के मुताबिक़ ही हुआ। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने नागरिकता संशोधन बिल 2019 लोकसभा में पेश कर दिया। सदन में विपक्षी सदस्यों ने हंगामा किया। कई सांसदों ने कहा कि इस बिल के कारण संविधान के कई प्रावधानों का उल्लंघन होगा और इसलिए इसे सदन में पेश करना असंवैधानिक होगा। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि यह बिल अल्पसंख्यकों के खिलाफ है। यह उन्हें टारगेट करते हुए बनाया गया है। ऐसे विरोध के बीच सदन में विधेयक पेश किये जाने के विरोध में 82 मत पड़े, वही समर्थन में 293 मत पड़े।
इसके पहले अधीर रंजन को जवाब देते हुए अमित शाह ने कहा, ‘यह बिल कहीं पर भी इस देश के अल्पसंख्यकों के खिलाफ नहीं है। ये बिल .001 प्रतिशत भी अल्पसंख्यकों के खिलाफ नहीं है और वॉकआउट मत करना मैं इस बिल के बारे में सदन को पूरी जानकारी दूंगा।’
बाद में बिल पर बोलते हुए अमित शाह ने कहा कि आजादी के वक्त अगर कांग्रेस ने धर्म के आधार पर देश का विभाजन न किया होता, तो ये बिल लाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। अमित शाह के अनुसार, इस बिल का मकसद ऐसे अल्पसंख्यकों को नागरिकता देना है जो दूसरे देशों से प्रताड़ित होकर आए हैं।
हम किसी मुस्लिमों से उनका कोई अधिकार नहीं छीन रहे हैं। लेकिन अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश का कोई भी मुस्लिम हमारे कानून के आधार पर नागरिकता के लिए आवेदन करता है तो हम इस पर विचार करेंगे। अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदू, सिख, बौद्ध, क्रिश्चियन, पारसी और जैनों के खिलाफ भेदभाव होता है इस बिल के जरिए उनको नागरिकता दी जाएगी। लेकिन यह कहना है कि इससे मुस्लिमों के अधिकार छिन गए हैं यह गलत है। नागरिकता संशोधन बिल 2019 लोकसभा में स्वीकार हो गया है। लोकसभा के अंदर सरकार के पास बहुमत है। जिसके चलते वहां बिल पास कराने में उसे कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन राज्यसभा में संख्या कम होने के कारण सरकार की राह आसान नही है।
सरकार को राज्यसभा में बिल पास कराने के लिए रणनीति की जरूरत होगी। उम्मीद तो यही है कि सरकार वहां भी बिल पास कराने में सफल हो जाएगी। विपक्ष को भी इसका पूरा अहसास है। इसी वजह से विपक्ष भी अपने स्तर पर रणनीति बनाने में जुटा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृहमंत्री अमित शाह भी विपक्ष के इस मंसूबे से वाकिफ हैं, और उन्हें यह भी खबर है कि विपक्षी दलों के साथ कौन सा दल अंतिम समय में जा सकता है। इसके चलते बसपा जैसे दलों कई दलों को अपनी तरफ करने की मुहिम में सरकार के मंत्री लगे हैं।
दूसरी तरफ विपक्ष को भी अपनी कमजोरी और सरकार की ताकत का अहसास है। विपक्ष को पता है कि अगर वह बिल का खुलकर विरोध करता है तो कई सारे दल एक साथ नहीं आएंगे। ऐसे में विपक्ष की रणनीति बिल को फिलहाल स्टैंडिंग कमिटी में भेजने की रहेगी। इसके लिए हो सकता है कि इस पर और विचार की जरूरत बताई जाए। इस मांग पर ऐसे दल भी साथ आ सकते हैं जो वैसे तो बिल का विरोध कर रहे हैं, लेकिन खुलकर सामने नहीं आना चाहते हैं।
बीजेडी और टीआरएस इसमें अहम हैं। एक सीनियर नेता के अनुसार कांग्रेस इसी पर फोकस कर रही है। उसके नेता सभी गैर बीजेपी दलों के नेताओं से मिलकर बिल को स्टैंडिंग कमिटी में भेजने के लिए एक साथ आने का आग्रह कर रहे हैं।
कांग्रेस को लगता है कि शिवसेना भी इस मुद्दे पर साथ आ सकती है। वैसे शिवसेना ने कांग्रेस-एनसीपी से साफ कह दिया है कि वह इस बिल का विरोध करते हुए नहीं दिखना चाहती है। लेकिन अंतिम समय में यह दल क्या फैसला लेंगे यह अभी स्पष्ट नहीं है। समाजवादी पार्टी ने इस बिल का विरोध किया है। वास्तव में इस बिल को लेकर मीडिया में सरकार की मंशा पर खुलकर सवाल खड़े किये गए हैं।
साफतौर पर लिखा गया है, नागरिकता संशोधन बिल एक खतरनाक बिल है। यह बिल भारतीय राष्ट्र राज्य की मूल अवधारणा पर चोट करता है। यह उस प्रस्तावना की खिल्ली उड़ाता है जो हर भारतीय नागरिक को धर्म, जाति, भाषा या किसी भी भेदभाव से परे हर तरह की समता का अधिकार देती है। क्योंकि यह बिल पहली बार धर्म के आधार पर कुछ लोगों के लिए नागरिकता का प्रस्ताव करता है, और इसी आधार पर कुछ लोगों को बाहर रखे जाने की बात करता है। यह क़ानून इस देश के डीएनए को बदलने की कोशिश है। चूंकि यह संवैधानिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से भी बेहद अहम बिल है। इसलिए इस बिल को लेकर संवैधानिक सवाल खड़े हो रहे हैं। संविधान के अनुच्छेद 14 में धर्म, जाति, नस्ल, रंग आदि के आधार पर किसी से भेदभाव नहीं करने का प्रावधान किया है। संविधान की प्रस्तावना में भारत को धर्मनिरपेक्ष बनाया गया है। इसलिए मीडिया में यह सवाल उठता है कि भारत कैसे धर्म के आधार पर भेदभाव कर सकता है? कानून बनने के बाद इसी आधार पर इसको अदालत में चुनौती मिलेगी। कहा यह भी जा रहा है कि संवैधानिक और कानूनी सवालों से ज्यादा इसका सामाजिक असर होने वाला है।
विपक्ष की मंशा
इस बिल को लेकर देश में हो रही ऐसी चर्चाओं के आधार पर विपक्षी दलों में यह हौसला जगा है कि लोकसभा से पास होने के बाद जब यह बिल राज्यसभा में बहस के लिए आएगा तो पहले ही सर्वसम्मति से इसे स्टैंडिंग कमिटी के पास भेजा जा सकता है। दूसरी तरफ बीजेपी इसके लिए बिलकुल तैयार नहीं है। बीजेपी नेताओं के मुताबिक जिन दलों ने आर्टिकल 370 को हटाने का सपोर्ट किया था, वे फिर सपोर्ट करेंगे। उसे उम्मीद है कि शिवसेना भी इस मसले पर अपना राजनीतिक नुकसान नहीं करेगी और उसे बिल के सपोर्ट में आना ही होगा।
बीजेपी के सीनियर नेता इसके लिए सभी दलों के लोगों से मिल रहे हैं। बीजेपी नेता उत्तर पूर्व के नाराज नेताओं को भी अपने पक्ष में लाने का प्रयास कर रहे हैं। और उन्हें बता रहे हैं कि बिल में इनर परमिट लाइन वाले इलाकों को छूट दी गई है।
बीजेपी नेताओं का दावा है कि ऐसी परिस्थिति में केंद्र सरकार नागरिकता संशोधन बिल के पास होने के बाद ही इस मुद्दे पर आगे बढ़ना चाहेगी, क्योंकि उसमें मुस्लिमों को छोड़कर बाकी धर्म वाले लोगों को नागरिकता लेने में रियायत दी गई है। अब देखना यह है कि विपक्ष नागरिकता बिल के मसले पर किस तरह के तर्क रख कर राज्यसभा में इसे स्टैंडिंग कमिटी के पास भेजने में सफल हो सकता है? या फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर जिस तरह आर्टिकल 370 हटाने के मसले पर विरोध कर रही पार्टियों के ही नेता अपनी पार्टी के खिलाफ आकर उसके समर्थन में बोलने लगे थे, वैसा ही नागरिकता संशोधन बिल पर भी होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)