Wednesday - 30 October 2024 - 2:29 PM

नागरिकता संशोधन कानून बिल का क्‍यों हो रहा है विरोध

न्‍यूज डेस्‍क

जम्‍मू-कश्‍मीर से अनुच्‍छेद 370 हटाने के बाद अब मोदी सरकार नागरिकता कानून को बदलने जा रही है। नागरिकता संशोधन बिल के चौतरफा विरोध के बीच गृहमंत्री अमित शाह आज लोकसभा में नागरिकता संशोधन कानून बिल को पेश करेंगे।

सड़क से संसद तक इस बिल का विरोध हो रहा है लेकिन मोदी सरकार ने इसपर आगे बढ़ने की ठान ली है। कांग्रेस, टीएमसी समेत कई अहम विपक्षी पार्टियों ने इसका विरोध करने की बात कही है। इस बिल में मुस्लिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता नहीं दिए जाने के प्रावधान का जबर्दस्त विरोध हो रहा है।

सबसे ज्‍यादा इस बिल का विरोध असम में हो रहा हैं जहां बीजेपी की ही सरकार है। असम में इस बिल के विरोध में सोमवार को 16 संगठनों ने 12 घंटे का बंद बुलाया है। इनके अलावा आदिवासी छात्रों ने भी इस बंद का समर्थन किया है, असम के अलावा अन्य राज्यों में भी बिल के खिलाफ प्रदर्शन चल रहा है।

हालांकि तमाम विरोध के बीच शिया वक्फ बोर्ड के प्रमुख वसीम रिज़वी ने गृह मंत्री अमित शाह को चिट्ठी लिखी है। इसमें लिखा गया है कि नागरिकता संशोधन बिल में शियाओं को भी शामिल किया जाए।

भारतीय जनता पार्टी ने अपने सभी सांसदों के लिए व्हिप जारी किया है। संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा है कि केंद्र सरकार आज ही नागरिकता बिल को लोकसभा में पास कराएगी। यानी इस बिल पर लोकसभा में सोमवार को ही चर्चा हो सकती है।

गृह मंत्रालय सूत्रों की मानें तो नागरिकता कानून के तहत मणिपुर की चिंताओं को भी देखा गया है। इनर लाइन परमिट में मणिपुर को भी शामिल किया जा सकता है, अभी तक अरुणाचल, नगालैंड और मिजोरम को ही शामिल किया गया था। इससे पहले 1950 से लेकर अभी तक सभी को फॉरेन ऑफिस में रजिस्टर करने की जरूरत थी।

 

गौरतबल है कि ये बिल पहले लोकसभा में पास हो चुका था, लेकिन कार्यकाल खत्म होने के साथ ही बिल भी समाप्त हुआ। इसलिए बिल को दोबारा लोकसभा-राज्यसभा में पेश किया जाएगा। बीजेपी के पास लोकसभा में तो बहुमत है लेकिन राज्यसभा में विपक्ष के विरोध का सामना करना पड़ सकता है।

कांग्रेस पार्टी पहले दिन से इस बिल का विरोध कर रही है, कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी का कहना है कि वह एड़ी-चोटी का जोर लगाकर इसके खिलाफ प्रदर्शन करेंगे। कांग्रेस के अलावा टीएमसी, सपा, बसपा, लेफ्ट, एनसीपी, डीएमके, राजद समेत कई बड़ी पार्टियां बिल का विरोध करेंगी।

शिवसेना अब एनडीए का साथ छोड़ चुकी है लेकिन इस बिल पर उसका क्या रुख रहता है, इसपर हर किसी की नज़र है। शिवसेना नेता संजय राउत ने सोमवार को ट्वीट किया कि

अवैध नागरिकों को बाहर करना चाहिए, हिंदुओं को भारत की नागरिकता देनी चाहिए। लेकिन उन्हें कुछ समय के लिए वोटिंग का अधिकार नहीं देना चाहिए। क्या कहते हो अमित शाह? और कश्मीरि पंडितों का क्या हुआ, क्या 370 हटने के बाद वो वापस जम्मू-कश्मीर में पहुंच गए?

सीपीआई (एम) की ओर से नागरिकता कानून में दो बदलाव करने की मांग की गई है, इसमें चिन्हित देशों की जगह सभी पड़ोसी देशों का नाम जोड़ने की बात कही है। इसके अलावा भारत सभी नागरिकों के लिए है और वसुधैव कुटुम्बकम की नीति पर चलने की मांग की गई है।

संसद में नागरिकता संशोधन बिल आने से पहले बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के टीचर, छात्र और कर्मचारियों ने सांसदों के नाम एक चिट्ठी लिखी है। इस चिट्ठी में सांसदों से अपील की गई है कि वो इस बिल का विरोध करे। इसके लिए आने वाली पीढ़ियां उन्हें सलाम करेंगी। इसमें कहा गया है कि नागरिकता संशोधन बिल हमारे मूल अधिकार के खिलाफ है, जो हमें संविधान से मिले हैं।

क्या कहता है नया नागरिकता कानून?

गौरतलब है कि मोदी सरकार जो संशोधित बिल ला रही है, उस बिल के अनुसार अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश से आने वाले हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख यानी गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिलने में आसानी होगी। पहले नागरिकता हासिल करने के लिए 11 साल का समय था, लेकिन अब इसे घटाकर 6 साल करने की तैयारी है। विपक्ष इसी का विरोध कर रहा है और मोदी सरकार पर धर्म के आधार पर बंटवारा करने का आरोप लगा रहा है।

विधेयक में कौन सा मुद्दा महत्वपूर्ण

नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 छह दशक पुराने नागरिकता कानून में संशोधन के जरिए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के शिकार सिर्फ गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को ही भारतीय नागरिकता देने का प्रस्ताव है। बिल मुताबिक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के कारण 31 दिसंबर 2014 तक भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को अवैध शरणार्थी नहीं माना जाएगा बल्कि उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी।

यह विधेयक 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी का चुनावी वादा था। बीजेपी नीत एनडीए सरकार ने अपने पूर्ववर्ती कार्यकाल में इस विधेयक को लोकसभा में पेश किया था और वहां पारित करा लिया था, लेकिन पूर्वोत्तर राज्यों में प्रदर्शन की आशंका से उसने इसे राज्यसभा में पेश नहीं किया। पिछली लोकसभा के भंग होने के बाद विधेयक की मियाद भी खत्म हो गई।

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