न्यूज डेस्क
लोकसभा में सरकार और विपक्ष की तीखी बहस के बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आज नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 पेश किया।लोकसभा में नागरिकता बिल पेश होने के लिए जो वोटिंग हुई उसमें 293 हां के पक्ष में और 82 विरोध में वोट पड़े। लोकसभा में इस दौरान कुल 375 सांसदों ने वोट किया।
एक तरफ जहां विपक्ष ने बिल के अल्पसंख्यक विरोधी होने का आरोप लगाया तो दूसरी तरफ अमित शाह ने जवाब देते हुए कहा कि इस बिल की जरूरत कांग्रेस की वजह से पड़ी। धर्म के आधार पर कांग्रेस ने देश का विभाजन किया। इस बिल की जरूरत नहीं पड़ती अगर कांग्रेस ऐसा नहीं करती, कांग्रेस ने धर्म के आधार पर देश को बांटा।
मुसलमानों को नागरिकता संशोधन बिल में शामिल नहीं किए जाने के सवाल पर अमित शाह ने कहा कि पड़ोसी देशों में मुसलमानों के खिलाफ धार्मिक प्रताड़ना नहीं होती है। इसलिए इस बिल का फायदा उन्हें नहीं मिलेगा।
अगर ऐसा हुआ तो यह देश उन्हें भी इसका फायदा देने पर विचार करेगा। साथ ही दावा किया कि यह बिल अल्पसंख्यकों के खिलाफ नहीं है। विपक्ष ने कहा कि ऐसे बिल पर सदन में चर्चा हो ही नहीं सकती।
वहीं, कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा कि संसद को ऐसे विधेयक पर चर्चा का अधिकार नहीं है। यह भारतीय गणतंत्र के मूलभूत मूल्यों का उल्लंघन है। क्या हमारी राष्ट्रीयता का निर्णय धर्म के आधार पर होगा? यह संविधान की प्रस्तावना का भी उल्लंघन करता है।
इसके अलावा कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने विधेयक को संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया। उन्होंने कहा कि सरकार आर्टिकल-14 को नजरअंदाज कर रही है। यह हमारे लोकतंत्र का ढांचा है।
तृणमूल कांग्रेस सांसद सौगत राय ने कहा, ‘संविधान का अनुच्छेद-14 कहता है कि राज्य भारत में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। ये बिल नेहरू-अंबेडकर की सोच के भारत के खिलाफ है।
एमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता इस देश के मूलभूत ढांचे का हिस्सा है। यह विधेयक मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। अमित शाह ने पलटवार करते हुए कहा कि सदन के नियम 72(1) के हिसाब से यह बिल किसी भी आर्टिकल का उल्लंघन नहीं करता है। अनुच्छेद-11 को पूरा पढ़िए। कुछ सदस्यों को लगता है कि इस बिल से समानता के अधिकार का उल्लंघन होता है।
पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने 1971 में निर्णय किया था कि बांग्लादेश से आए लोगों को भारत की नागरिकता दी जाए तो पाकिस्तान से आए लोगों के साथ ऐसा क्यों नहीं किया गया। उसके बाद युगांडा से आए सारे लोगों को कांग्रेस के शासन में नागरिकता दी गई। तब इंग्लैंड से आए लोगों को क्यों नहीं दी गई? फिर दंडकारण्य कानून लाकर नागरिकता दी गई। उसके बाद राजीव गांधी ने असम समझौता किया। उसमें भी 1971 की ही कट ऑफ डेट रखी तो क्या समानता हो पाई? हर बार तार्किक वर्गीकरण के आधार पर ही नागरिकता दी जाती रही है।
गृह मंत्री शाह ने कहा कि दुनियाभर के देश अलग-अलग आधार पर नागरिकता देते हैं। जब कोई देश कहता है कि उसके देश में निवेश करने वाले व्यक्ति को नागरिकता देगा तो क्या वहां समानता का संरक्षण हो पाता है? अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकार कैसे होंगे? वहां समानता का कानून कहां चला जाता है? क्या अल्पसंख्यकों को अपना शैक्षणिक संस्थान चलाने का अधिकार समानता के कानून के खिलाफ है? भारत की सीमा से पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान सटे हैं। भारत की 106 किमी जमीनी सीमा अफगानिस्तान से मिलती है। इसलिए उसे भी शामिल करना जरूरी था।