Monday - 28 October 2024 - 12:16 AM

बॉलीवुड में जो चल रहा है उसकी क्रोनोलॉजी समझ रहे हैं क्या ?

अविनाश भदौरिया

सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद से बॉलीवुड के भीतर काफी कुछ चल रहा है, जितना चल रहा है उससे कहीं ज्यादा चर्चा है। चर्चा का अलाम तो यह है कि देश के मीडिया और लोगों को कोरोना की चिंता न होकर इस बात की फ़िक्र है कि कंगना का घर गिरेगा या नहीं और रिया चक्रवर्ती को क्या सजा मिलेगी। खैर लोगों को क्या है उन्हें तो आदत है कभी हरी चटनी और मूंगफली के साथ रामलीला देखने की और कभी पॉपकॉर्न के साथ रंग दे बसंती देखने की।

जनता को बस मनोरंजन चाहिए लेकिन सरकार या मनोरंजन कराने वाले बेवकूफ तो होते नहीं कि फ़ोकट में अपना समय और रुपया बर्बाद करेंगे उनके तो अपने एजेंडे होते हैं जिन्हें वो पूरा करते हैं और फिर दुकान समेटकर कहीं और कोई पिक्चर दिखा रहे होते हैं। चलिए छोडिए यह सब अब आते हैं असल मुद्दे पर। मुद्दा यह है कि बॉलीवुड में चल क्या रहा है और इतना क्या ख़ास है कि सभी मीडिया चैनल से लेकर आम आदमी तक उस पर ही चर्चा कर रहे है।

एक पिक्चर तो बिलकुल साफ़ है जो आप दिनभर हर जगह देखते हैं लेकिन एक और पिक्चर है जिसे शायद बहुत कम लोग देख पा रहे हैं। पहली कहानी में सुशांत है, रिया है, कंगना है और बहुत ज्यादा सोचेंगे तो बिहार में चुनाव दिखेगा लेकिन इसके आलावा एक और कहानी है जिसे समझने के लिए आपको क्रोनोलॉजी समझनी होगी।

वैसे ये तो आपको मालूम ही होगा कि, क्रोनोलॉजी शब्द को फेमस करने वाले हमारे गृह मंत्री अमित शाह हैं, इस बात का जिक्र इसलिए किया ताकि आपको ‘क्रोनोलॉजी’ शब्द की राजनीति में अहमियत समझ आ जाए। हाँ तो हम बात कर रहे थे कि इस पूरे मसले के पीछे की कहानी क्या है।

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तो शुरू करते हैं राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ़ हो जाने के बाद आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान से। सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर पर फैसला आने के बाद ऐसी चर्चा थी कि संघ और बीजेपी अब मथुरा और काशी में नई मुहीम शुरू करेंगे लेकिन संघ प्रमुख ने अपने बयान में बिलकुल साफ़ तौर पर कहा कि अब इस तरह के किसी मुद्दे को प्रमुखता नहीं दी जाएगी। उस वक्त उन्होंने एक बात और स्पष्ट की थी कि अब व्यक्ति निर्माण में ध्यान दिया जाना चाहिए।

राम मंदिर भूमि पूजन के अवसर पर मोहन भागवत ने आशा व्यक्त करते हुए कहा कि अयोध्या में राम मंदिर बनने के साथ ही सभी लोग अपने मन मंदिर का भी निर्माण करेंगे। इसके बाद एक और घटना को समझते हैं।

यह मामला है आमिर खान से जुड़ा हुआ। आमिर खान की हाल ही में तुर्की के राष्ट्रपति की पत्नी के साथ एक फोटो बड़ी वायरल हुई और फिर लोगों की तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं आईं। इस मामले पर आरएसएस के मुखपत्र ‘पांचजन्य’ में एक लेख प्रकाशित हुआ था। उस लेख की भी कुछ प्रमुख बातों को समझ लेते हैं।

पांचजन्य में लिखा गया कि जिस तरह आमिर खान तुर्की जाकर देशवासियों की भावनाओं को ठेंगा दिखा रहे है, उन्हें इसे समझने की जरूरत है। लेख में आमिर खान को चीन की सत्ताधारी पार्टी का प्यारा बताया गया। आमिर खान पर यह भी आरोप लगाया गया कि वह भारत विरोधी ताकतों से हिल-मिल रहे है।

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इसी लेख में संघ ने यह भी कहा कि आजादी के बाद देश में देशभक्ति फिल्मों का चलन हो गया था। यह फिल्में देश की जनता के अंदर देश भावना जगाती थी। पर कुछ समय तक यह फिल्में नेपथ्य में चली गई। पिछले कुछ समय से एक बार फिर देशभक्ति फिल्में बनने लगी। लेकिन दूसरी तरफ ऐसे अभिनेता और फिल्मकार हैं जिन्हें अपने देश के दुश्मनों से प्यार है। उन्हें देश से ज्यादा चीन और तुर्की पसंद है।

अब बात करते हैं हाल ही में समाजवादी पार्टी के महाराष्ट्र अध्यक्ष व विधायक अबू आज़मी के दिए गए उस बयान की जिसमे उन्होंने कंगना रनौत पर आरएसएस का एजेंडा चलाने का आरोप लगाया था।

दरअसल कुछ दिनों पहले अभिनेत्री कंगना रनौत ने कहा था कि उन्हें महाराष्ट्र सरकार और यहां के पुलिस पर भरोसा नहीं है, इस पर समाजवादी पार्टी के महाराष्ट्र अध्यक्ष व विधायक अबू आज़मी ने पत्रकारों के सवाल का जवाब देते हुए कहा था कि, ‘मुझे महाराष्ट्र सरकार पर और यहां के पुलिस पर पूरी तरह भरोसा है और वह कहीं भी नाकामयाब नहीं है, अगर कंगना रनौत को ऐसा लगता है तो वे उनके महाराष्ट्र राज्य में ना आए और उनके हिमाचल राज्य में रहे।’

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आज़मी ने आगे यह भी कहा कि, ‘कंगना रनौत पूरी तरह आरएसएस और बीजेपी का एजेंडा चला रही है। अब तक फिल्म इंडस्ट्री में कभी धर्मवाद नही हुआ पर कंगना आरएसएस और बीजेपी की बोली बोलते हुए फिल्म इंडस्ट्री में धर्मवाद फैला रही है।’

कुलमिलाकर अगर गौर से समझा जाए तो सुशांत सिंह से लेकर शुरू हुई कहानी जो कि अभी उत्तर प्रदेश में बन रही फिल्म सिटी तक पहुंची है बड़ी लम्बी चलने वाली है। यह सिर्फ बिहार चुनाव तक या महाराष्ट्र की राजनीति तक सिमटी कहानी नहीं है इसका कैनवास बहुत बड़ा है जिसमें अभी बहुत रंग भरे जाने बाकी हैं।

मन्दसौर विश्वविद्यालय के जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ. मनीष जैसल का कहना है कि, फिल्मों का प्रभाव लोगों पर काफी गहरा होता है। इसलिए जाहिर तौर पर किसी भी विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए यह एक बेहतर माध्यम है।

उन्होंने कहा कि, संघ की नजर अब तक शिक्षण संस्थानों पर रही है जिसका परिणाम है कि आज देश के लगभग सभी बड़े विश्वविद्यालयों में उनके लोग हैं और उनकी विचारधार का प्रसार हो रहा है वहीं अब आरएसएस संस्कृति पर भी अपनी पकड़ और मजबूत करना चाहता है इसके लिए फिल्मों यानी विसुअल्स मीडियम सबसे सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसलिए इस एजेंडा को प्रमुखता दी जा रही है।

डॉ.मनीष जैसल की माने तो संस्कृति और व्यक्ति के निर्माण में सिनेमा की अहम भूमिका है और चूंकि अब संघ प्रमुख भी व्यक्ति निर्माण और समाज के नव निर्माण की बात कह चुके हैं तो सिनेमा बनाने के लिए फिल्म सिटी का निर्माण भी जरुरी है। उन्होंने यह भी कहा कि यूपी में फिल्म सिटी बनने से उत्तर भारतीय लोगों को काफी अवसर मिलेंगे। सरकार की ओर से उन्हें सहायता भी दी जाएगी।

मनीष जैसल का मानना है कि सीएम योगी की फिल्म सिटी में राष्ट्रवाद और मेथोलॉजी विषय पर अधिक फिल्मों का निर्माण किया जाएगा। जिससे कि पाश्चात्य सभ्यता के मुकाबले हिन्दू सभ्यता को उत्कृष्ट दिखाया जा सके और लोगों को इसकी ओर आकर्षित किया जा सके।

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