जुबिली न्यूज डेस्क
बाल श्रम के खिलाफ लड़ाई लड़ रही दुनिया जमीन खोने के कगार पर पहुंच गई है। कोरोना महामारी ने इस लड़ाई को और कठिन बना दिया है।
इस महामारी की वजह अनगिनत बच्चे काम करने को मजबूर हुए हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने भी इस पर चिंता जतायी है।
आईएलओ और यूनिसेफ ने कहा कि दुनिया ने 20 वर्ष में पहली बार बाल श्रम में बच्चों की संख्या में वृद्धि देखी गई है। इन संस्थाओं द्वारा जारी की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि कोरोन संकट से और अधिक किशोरों को एक ही भाग्य की ओर धकेले जाने का खतरा है।
रिपोर्ट के मुताबिक बाल मजदूरों की संख्या 2016 के 15.2 करोड़ से बढ़कर 16 करोड़ हो गई है। यह आंकड़ा यह दर्शाता है कि 2000 के बाद से हासिल प्रमुख लाभ, जब 24.6 करोड़ बच्चे श्रम में लगे हुए थे, वह पलट रहा है।
साझा रिपोर्ट में चिंता जताते हुए कहा गया है कि अगर इस दिशा में बड़े कदम नहीं उठाए गए तो 2022 के अंत तक यह आंकड़ा 20.6 करोड़ तक जा सकता है।
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यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरीटा फोर के अनुसार, “हम बाल श्रम के खिलाफ लड़ाई में जमीन खो रहे हैं, और पिछले साल ने उस लड़ाई को आसान नहीं बनाया है।”
हेनरीटा फोर के अनुसार, “अब, वैश्विक लॉकडाउन के दूसरे साल में स्कूल बंद होने, आर्थिक व्यवधान और सिकुड़ते बजट के कारण परिवारों को दिल तोडऩे वाले विकल्प चुनने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। ”
अफ्रीका में स्थिति चिंताजनक
अफ्रीका में जनसंख्या वृद्धि, संकट और गरीबी के कारण बाल मजदूरों में सबसे बड़ी बढ़ोतरी देखी गई है। उप-सहारा अफ्रीका में, पांच से 17 वर्ष की आयु के लगभग एक चौथाई बच्चे पहले से ही बाल श्रम में हैं, जबकि यूरोप और उत्तरी अमेरिका में यह 2.3 फीसदी है।
एजेंसियों ने चेतावनी दी कि कोरोना संकट पहले से ही बाल श्रम करने वाले बच्चों को लंबे घंटे और बिगड़ती परिस्थितियों में काम करने की ओर धकेल सकता है।
रिपोर्ट की सह लेखक और यूनिसेफ सांख्यिकी विशेषज्ञ क्लाउडिया कापा के अनुसार, “अगर सामाजिक सुरक्षा कवरेज मौजूदा स्तरों से फिसल जाती है तो खर्च में कटौती और अन्य कारकों के परिणामस्वरूप बाल श्रम में पडऩे वाले बच्चों की संख्या अगले साल के अंत तक (अतिरिक्त) 4.6 करोड़ तक बढ़ सकती है।”
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आईएलओ और यूनिसेफ हर चार साल में यह रिपोर्ट प्रकाशित करता है। इस साल जो रिपोर्ट प्रकाशित हुई है उससे पता चलता है कि 5 से 11 साल की उम्र के बच्चों की संख्या वैश्विक संख्या के आधे से अधिक है। हालांकि लड़कों के बाल श्रम में जाने की संभावना ज्यादा है।
रिपोर्ट के अनुसार 5 से 17 साल के बीच के बच्चों की संख्या में भी वृद्धि हुई है, जो सप्ताह में 43 घंटे से अधिक समय तक खनन या भारी मशीनों के साथ “खतरनाक काम” में लगे हुए हैं।
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वहीं आईएलओ के महानिदेशक गाए रायडर ने अपने एक बयान में कहा, “नए अनुमान एक चेतावनी हैं। बच्चों की एक नई पीढ़ी को जोखिम में जाता हुए हम नहीं देख सकते। हम एक महत्वपूर्ण क्षण में हैं और हम कैसे प्रतिक्रिया देते हैं इस पर बहुत कुछ निर्भर करता है।”
उठाने होंगे कदम
संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2021 को अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम उन्मूलन वर्ष के रूप में घोषित किया है। यूएन ने 2025 तक देशों से इसे खत्म करने की दिशा में तत्काल कार्रवाई करने के लक्ष्य हासिल करने का आग्रह किया है।
यूएन का कहना है कि इस दिशा में तत्काल कदम उठाए जाने की जरूरत है क्योंकि कोविड-19 के कारण अधिक बच्चे खतरे में आते दिख रहे हैं और सालों की प्रगति संकट में पड़ती दिख रही है।
भारतीय श्रम कानून के मुताबिक 15 साल से कम उम्र के बच्चों से श्रम कराना गैर कानूनी है, लेकिन स्कूल के बाद वे परिवार के व्यवसाय में हाथ बंटा सकते हैं। इस प्रावधान का नियोक्ता और मानव तस्कर व्यापक रूप से शोषण करते हैं।
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बिहार जैसे राज्यों में जहां साढ़े चार लाख बच्चे मजदूरी करते हैं, वहां ऐसे तंत्र तैयार किए जा रहे हैं जिससे बाल श्रम को मैप किया जा सके। पूरे देश में 5 से 14 साल तक की उम्र वाले कामकाजी बच्चों की संख्या करीब 44 लाख है।