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कोरोना काल में बढ़ी बाल मजदूरी

जुबिली न्यूज डेस्क

कोरोना महामारी और तालाबंदी ने बहुत सारी समस्याओं को बढ़ा दिया है। कोरोना संकट के बीच गरीबी बढ़ी, बेरोजगारी बढ़ी, क्राइम बढ़ा और इसके साथ न जाने और कितनी समस्याएं बढ़ गई। कोरोना महामारी की वजह से जहां गरीबी बढ़ी है तो वहीं बाल मजदूरी भी बढ़ गई है।

कोरोना महामारी की वजह से पूरे देश में पिछले छह माह से तमाम स्कूल बंद हैं। हालांकि स्कूल ऑनलाइन पढ़ाई करवा रहे हैं पर बहुत बच्चों के पास इंटरनेट और स्मार्टफोन या कंप्यूटर की सुविधा न होने की वजह से ये आज भी ये शिक्षा से वंचित हैं। ऐसे में घर-परिवार की सहायता के लिए इन बच्चों के मजदूरी करने पर मजबूर होना पड़ रहा है।

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एक अनुमान के अनुसार देश में पांच से 18 साल तक की उम्र के मजदूरों की तादाद 3.30 करोड़ है। इस आंकड़े में कोरोना, बाढ़ और अंफान जैसी प्राकृतिक विपदाओं की वजह से तेजी से वृद्धि हुई है।

पश्चिम बंगाल राइट टू एजुकेशन (आरटीई) फोरम और कैम्पेन अगेंस्ट चाइल्ड लेबर (सीएसीएल) की ओर से किए गए ताजा सर्वेक्षण में कहा गया है कि तालाबंदी के दौरान पश्चिम बंगाल में स्कूल जाने वाले बच्चों के बीच बाल मजदूरी बढ़ी है।

सर्वेक्षण के अनुसार तालाबंदी का असर हर व्यक्ति पर पड़ा है। राज्य में स्कूल जाने वाले बच्चों के बीच बाल मजदूरी में 105 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इस दौरान लड़कियों में बाल मजदूरों की संख्या 113 प्रतिशत बढ़ी है जबकि लड़कों के बीच इस संख्या में 94.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि स्कूल जाने वाले बच्चों में बाल मजदूरी का प्रतिशत छह से 10 वर्ष की उम्र वालों में कम हुआ है, लेकिन यह 10 से 14 वर्ष और 14 से 18 वर्ष आयु वर्ग वालों में बढ़ा है।

रिपोर्ट के अनुसार तालाबंदी के दौरान बाल विवाह की लगभग 42 कथित घटनाएं भी सामने आई हैं। पश्चिम बंगाल के 19 जिलों में 2,154 बच्चों को उक्त सर्वेक्षण में शामिल किया गया था। उनमें 173 दिव्यांग भी शामिल थे। इन दिव्यांग बच्चों में से महज 37.5 प्रतिशत ही ऑनलाइन पढ़ाई में सक्षम हैं। लॉकडाउन की अवधि के दौरान बीमार पडऩे वाले 11 प्रतिशत बच्चों को कोई चिकित्सीय सहायता भी नहीं मिल सकी।

रिपोर्ट में बताया गया है कि तालाबंदी के दौरान प्री-प्राइमरी से 12वीं कक्षा तक पढऩे वाले महज 29 प्रतिशत छात्र ही ऑनलाइन पढ़ाई करने में सक्षम हैं। छोटी कक्षाओं यानी प्री-प्राइमरी और प्राइमरी में तो यह प्रतिशत और कम सिर्फ 21.5 प्रतिशत ही है।

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हायर सेकेंडरी स्तर पर यह आंकड़ा 53.2 प्रतिशत है। रिपोर्ट के अनुसार इस दौरान ऑनलाइन पढ़ाई करने वालों में से 54 प्रतिशत बच्चों ने क्लास में शामिल होने के लिए व्हाट्सएप का सहारा लिया। सर्वेक्षण में शामिल 49.5 प्रतिशत यानी करीब आधे बच्चों ने कहा कि उनके पास ऑनलाइन शिक्षा हासिल करने को कोई विकल्प नहीं था। इसके अलावा 33 प्रतिशत बच्चों के पास घर में न तो स्मार्ट फोन था और न ही कंप्यूटर।

40 प्रतिशत बच्चों को नहीं मिल रहा मिड डे मील

सर्वेक्षण में बच्चों से जुड़ी कई समस्याओं पर चिंता जतायी गई है। रिपोर्ट के अनुसार राज्य में बाल सरंक्षण की स्थिति गंभीर है।

सर्वेक्षण में जितने बच्चे शामिल हुए उनमें 57 प्रतिशत बच्चों ने बताया कि उन्हें दिन में तीन बार खाना मिलता है जबकि 17 प्रतिशत बच्चों को रोजाना एक या दो बार ही मिलता है। इसके अलावा रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि पहली से आठवीं कक्षा तक के 40 प्रतिशत बच्चों को स्कूलों से मिड डे मील नहीं मिल रहा है।

वहीं इस मामले में आरटीई फोरम के संयुक्त संयोजक प्रबीर बसु कहते हैं, ” बच्चों को लेकर बंगाल के जो आंकड़े सामने आए हैं वह राष्ट्रीय आंकड़े से बेहतर हैं। देश में सिर्फ 14 प्रतिशत स्कूली बच्चे ही ऑनलाइन पढ़ाई कर पा रहे हैं। यहां तो इससे कही ज्यादा बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैें। हमारे सर्वेक्षण का मकसद इन बच्चों की बदहाली को सामने लाना था ताकि सरकार इस स्थिति में सुधार की ठोस रणनीति तैयार कर सके।”

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