जुबिली न्यूज डेस्क
बिहार की सियासत में लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के संस्थापक रामविलास पासवान की कभी तूती बोला करती और केंद्र की राजनीति में भी दो दशकों तक वे साझीदार रहे। पिछले साल उनके निधन होने के बाद से एलजेपी की स्थिति लगातार कमजोर होती जा रही है। एलजेपी की कमान जब से चिराग पासवान ने संभाली है, तब से लगातार जनाधार खिसक रहा है और पार्टी नेता भी साथ छोड़कर दूसरे दलों का दामन थाम रहे हैं।
विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान के एनडीए से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने का दांव भी उल्टा पड़ा। राज्य में एलजेपी महज एक सीट ही जीत सकी। चुनाव नतीजे के बाद से पार्टी में भगदड़ मच गई है। चुनाव के दौरान बीजेपी और दूसरे दलों से आए नेताओं का भी मोहभंग हो रहा है।
एलजेपी के पांच दर्जन नेता पार्टी को अलविदा कहकर जेडीयू का दामन थामने जा रहे हैं। इसके चलते चिराग पासवान के सामने कई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं और उनके सियासी भविष्य को लेकर भी सवाल खड़े होने लगे हैं?
बिहार विधानसभा चुनाव में हार के बाद से एलजेपी में भगदड़ का दौर चल रहा है। एलजेपी के कई नेता पार्टी छोड़ कर अन्य दूसरे दलों में जा चुके हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी छोड़कर एलजेपी में आए रामेश्वर चौरसिया ने बुधवार को पार्टी से इस्तीफा दे दिया।
माना जा रहा है कि वे फिर बीजेपी में घर वापसी करेंगे। हाल में एलजेपी के दर्जन से ज्यादा नेताओं ने कांग्रेस का दामन थामा है। वहीं, एलजेपी के निष्कासित पूर्व प्रवक्ता केशव सिंह ने पार्टी के कई जिलाध्यक्ष और 60 से अधिक नेता अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ जेडीयू का हाथ थाम लिया है। इसके पहले जनवरी में भी एलजेपी में एक और बड़ी बगावत हो चुकी है। तब पार्टी के 27 नेताओं ने सामूहिक इस्तीफा दे दिया था।
माना जा रहा है कि एलजेपी में मची भगदड़ की वजह से पार्टी का सत्ता से दूर हो जाना है। बिहार चुनाव में एनडीए से अलग चुनाव लड़ने का पहला खामियाजा तो चुनाव उठाना पड़ा और दूसरा रामविलास पासवान की राज्यसभा सीट भी हाथ से हाथ से चली गई है। पीएम मोदी के नेतृत्व वाले केंद्र की एनडीए सरकार में भी एलजेपी को अभी तक हिस्सेदारी नहीं मिली सकी है। भविष्य में आगे मिलेगी भी या नहीं, इसे लेकर कोई सियासी तस्वीर साफ नहीं है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार होने पर उसमें एलजेपी को शायद ही जगह मिले, क्योंकि इस मामले में जेडीयू ने कड़ा रुख अख्तियार कर रखा है। विधानसभा चुनाव में एलजेपी ने जिस तरीके से एनडीए से खिलाफ जाकर चुनाव लड़ा। इसके चलते जेडीयू लगातार कह रही है कि एलजेपी ने उनके खिलाफ वोटकटवा की भूमिका निभाई, उसके चलते चिराग पासवान को शायद ही मंत्री बनाया जाए। ऐसे में सत्ता की चाहत व महत्वाकांक्षा के साथ पार्टी में आने वाले नेता बाहर का रास्ता पकड़ रहे हैं।
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चिराग पासवान भी पार्टी में असंतोष को दबाने के लिए हर एहतियाती कदम उठा रहे हैं, लेकिन फिर भी पार्टी में बागवत को नहीं थाम पा रहे हैं। बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद चिराग ने पांच दिसंबर को पार्टी की प्रदेश कार्य समिति, सभी प्रकोष्ठों एवं जिला इकाईयों को भंग कर दिया था।
तब राजनीतिक पंडितों का कहना था कि कुछ नेताओं के असंतोष को दबाने और पार्टी को संभावित टूट से बचाने के लिए ऐसा किया गया था। इसके बाद ढाई माह बीत गए, लेकिन चिराग ने अब तक प्रदेश एलजेपी की नई टीम खड़ी करने की हिम्मत नहीं दिखा सके।