जुबिली न्यूज़ डेस्क
महापर्व छठ की शुरुआत बुधवार को नहाय खाय से हो चुकी है। चार दिन के इस महापर्व का आज दूसरा दिन यानी खरना आज मनाया जा रहा है। खरना कार्तिक शुक्ल की पंचमी को मनाया जाता है। इसे लोहंडा भी कहा जाता है। कहा जाता है कि इस दिन विशेष प्रसाद बनाने की परंपरा है तो आइये जानते हैं खरना के विशेष महत्त्व और शुभ मुहूर्त के बारे में। शुक्रवार को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य के साथ इस व्रत का तीसरा चरण पूरा होगा।
पूर्वोत्तर भारत का ये प्रमुख पर्व घर की बुजुर्ग महिलाएं अपने पूरे परिवार की सुख शांति और समृद्धि के लिए करती हैं। कुछ पुरुष और युवा महिलाएं भी इस पर्व को करने लगी हैं। उत्तर भारत में विशेषकर बिहार और यूपी के पूर्वांचल में इस मौके पर पूरा परिवार जुटता है।
खरना का मतलब होता है शुद्धिकरण। खरना के दिन छठ पूजा का विशेष प्रसाद बनाया जाता है। इस पर्व को बेहद कठिन माना जाता और इसे बहुत सावधानी से किया जाता है। ऐसा बताया जाता है कि जो भी महिला छठ के नियमों का पालन करती हैं उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
खरने के दिन महिलाएं और छठ व्रती सुबह स्नान करके साफ सुथरे वस्त्र धारण करती हैं। इस दिन महिलाएं दिन भर व्रत रखती हैं और शाम के समय लकड़ी के चूल्हे पर साठी के चावल और गुड़ की खीर बनाती है। सादे रोटी के साथ व्रती इस खीर का भोजन करती हैं। इससे पहले सूर्य भगवान और अन्य देवताओं की पूजा की जाती है।
खरना के प्रसाद को ग्रहण करने के बाद ही महिलाओं का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है। यानी सुबह सूर्य के अर्घ्य तक व्रती जल तक भी ग्रहण नहीं करती हैं। ऐसी मान्यता है कि खरना पूजा के बाद ही घर में देवी षष्ठी (छठी मइया) का आगमन हो जाता है।
खरना का महत्व
खरना के दिन महिलाएं शुद्ध मन से सूर्य देव और छठ मां की पूजा करके गुड़ की खीर का भोग लगाती हैं। साथ ही जो प्रसाद बनता है, उसे नए चूल्हे पर बनाया जाता है। इस खीर का प्रसाद महिलाएं अपने हाथों से ही पकाती हैं। इस दिन महिलाएं सिर्फ एक ही समय भोजन करती हैं। आम तौर पर इस दिन दिन सूर्यास्त के बाद व्रती प्रसाद ग्रहण करती है।
छठ पूजा मुहूर्त 2020:
20 नवंबर (संध्या अर्घ )- सूर्यास्त का समय : 17:25:26
21 नवंबर (उषा अर्घ )- सूर्योदय का समय : 06:48:52
संपूर्ण विधि
छठ पूजा वाले दिन, सबसे पहले तीन बांस और पीतल की तीन टोकरियों या सूप लें। इसके बाद अब एक सूप में नारियल, गन्ना, शकरकंद, चकोतरा या बड़ा निम्बू, सुथनी, लाल सिन्दूर, चावल, कच्ची हल्दी, सिंघारा आदि, रखें, जबकि दूसरे में प्रसाद के लिए मालपुआ, खीर पूरी, ठेकुआ, सूजी का हलवा और चावल के लड्डू रखें।
इसके साथ ही एक अन्य टोकरी में इन सामग्री के साथ ही कर्पूर, चन्दन, दिया, शहद, पान, सुपारी, कैराव, नाशपाती, भी रखें। इसेक बाद दोनों सूप में दिया और अगरबत्ती जलाएं। फिर सूर्य को अर्घ देने के लिए नदी या तालाब में उतरे। साथ ही संध्या अर्घ और उषा अर्घ की प्रक्रिया पूरी करते हुए, इस पर्व का समापन करें।