Tuesday - 29 October 2024 - 12:27 PM

तीन अप्रैल से होगा चेटीचंड महोत्सव का आयोजन

जुबिली न्यूज़ डेस्क

अजमेर। सिंधी समुदाय का त्योहार भगवान झूलेलाल का जन्मोत्सव ‘चेटीचंड’ के रूप में पूरे देश में हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस त्योहार से जुड़ी हुई वैसे तो कई किवंदतियां हैं परंतु प्रमुख यह है कि चूंकि सिंधी समुदाय व्यापारिक वर्ग रहा है सो ये व्यापार के लिए जब जलमार्ग से गुजरते थे तो कई विपदाओं का सामना करना पड़ता था।

जैसे समुद्री तूफान, जीव-जंतु, चट्‍टानें व समुद्री दस्यु गिरोह जो लूटपाट मचा कर व्यापारियों का सारा माल लूट लेते थे। इसलिए इनके यात्रा के लिए जाते समय ही महिलाएं वरुण देवता की स्तुति करती थीं व तरह-तरह की मन्नते मांगती थीं।

चूंकि भगवान झूलेलाल जल के देवता हैं अत: यह सिंधी लोग के आराध्य देव माने जाते हैं। जब पुरुष वर्ग सकुशल घर लौट आता था तब चेटीचंड को उत्सव के रूप में मनाया जाता था। मन्नतें मांगी जाती थी और भंडारा किया जाता था।

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राजस्थान के अजमेर में सिंधी समाज द्वारा 16 दिवसीय चेटीचंड महोत्सव का आयोजन तीन अप्रैल से शुरू होगा। समारोह समिति के अध्यक्ष कंवलप्रकाश किशनानी के अनुसार चेटीचंड समारोह का आगाज तीन अप्रैल को स्थानीय नगीना बाग स्थित जतोई दरबार में 21 फीट ऊंचे झूलेलाल की वरुण पर सवार मूर्ति की स्थापना के साथ होगा। इस दौरान सिंधी समाज के अनेक संत महात्मा उपस्थित रहेंगे।

उन्होंने बताया कि पूरे पखवाड़े शहर की विभिन्न कॉलोनियों, सिंधी समाज के मंदिरों आदि में अलग- अलग धार्मिक आयोजन भी रखे गए हैं। झूलेलाल जयंती समारोह समिति के महामंत्री महेंद्र कुमार तीर्थानि ने बताया कि 13 अप्रेल को चेटीचंड के मौके पर परंपरागत तरीके से शोभायात्रा का भी आयोजन होगा।

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यह शोभायात्रा दिल्ली गेट स्थित झूलेलाल मंदिर से ज्योत के साथ रवाना होगी और फिर विभिन्न मार्गों से जाएगी। हालांकि शोभायात्रा के स्वरुप को अंतिम रूप दिया जाना बाकी है क्योंकि कोरोना गाइडलाइन के नियमों के अनुसार ही इसका आयोजन होगा। अभी चूंकि एक माह से ज्यादा का समय बाकी है इसलिए शोभायात्रा कार्यक्रम को अंतिम रूप दिया जाना शेष रहेगा।

कौन है संत झूलेलाल

सिंधी समाज का चेटीचंड विक्रम संवत का पवित्र शुभारंभ दिवस है। इस दिन विक्रम संवत 1007 सन्‌ 951 ई. में सिंध प्रांत के नसरपुर नगर में रतनराय के घर माता देवकी के गर्भ से प्रभु स्वयं तेजस्वी बालक उदयचंद्र के रूप में अवतार लेकर पैदा हुए और पापियों का नाश कर धर्म की रक्षा की।

यह पर्व अब केवल धार्मिक महत्व तक ही सीमित न रहकर सिंधु सभ्यता के प्रतीक के रूप में एक-दूसरे के साथ भाईचारे को दृष्टिगत रखते हुए सिंधियत दिवस के रूप में मनाया जाता है।

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