गिरीश चंद्र तिवारी
देश में चुनावी बयार बह रही है। इस बयार में शीतलता कम गर्मी ज्यादा है। और तो और हर रोज इसका तापमान बढ़ता ही जा रहा है, जिसका नतीजा है कि गांव के चौपाल से लेकर शहर के एसी कमरों में सिर्फ एक ही चर्चा है कि आखिर सरकार किसकी बनेगी। सभी अपने बुद्धि विवेक से आंकलन कर रहे हैं। शहर में चौराहे की दुकान पर चाय की चुस्की के साथ जो बहस होती है उसमें कुछ जमीनी मुद्दों पर चर्चा नहीं हो रही लेकिन गांवों में शाम को होने वाली चौपाल में राजनीति की बारीक से बारीक बात पर चर्चा होती है।
गांव के बड़े बुजुर्ग अपने चुनावी अनुभव को तो बयां करते ही साथ ही पीएम मोदी और कांग्रेस के राहुल की तुलना भी करते हैं। कोई इंदिरा गांधी के समय की राजनीति का चर्चा करता है तो कोई अटल बिहारी बाजपेयी के। किसी की नजह में पीएम मोदी अ’छे नेता है और वह फिर सत्ता में आयेंगे तो कोई अपनी उपेक्षा से आहत कांग्रेस के सरकार की उम्मीद करता है। फिलहाल गांव के चौपाल में इस समय सिर्फ और सिर्फ चुनावी सरगर्मी की चर्चा हो रही है और गांव के बड़े-बुजुर्ग नेताओं के दांवपेंच के बारे बता रहे हैं।
लखनऊ से सटे सीतापुर जिले में कई गांव के चौपाल में सिर्फ चुनाव की ही चर्चा है। दिन भर खेतों में हाड़तोड़ मेहनत के बाद शाम को चौपाल में इकत्र होते हैं और बातों का क्रम शुरु होता तो चुनाव से। इस चौपाल में 70 साल से लेकर 20 साल तक के लोग शामिल होते हैं।
अजयपुर गांव की आबादी करीब पांच हजार है। यहां केवट, यादव, पासी, कोरी, लोनिया, धोबी आदि जाति के लोग रहते हैं। आय का साधन मेहनत मजदूरी और थोड़ी-बहुत खेती-किसानी है। यहां के लोग चुनाव की बारीकी तो समझते हैं लेकिन वोट गांव के प्रधान के कहने पर देते हैं।
उनका मानना है कि गांव के प्रधान हमारी सुनते हैं तो हम उनकी क्यों न सुने। गांव के ही एक बुजुर्ग राम जितावन (70) कहते हैं, ‘हम तो कई चुनाव देखे हैं। पहिले और अब के चुनाव में बहुत अंतर है। पहिले हमरे गांव में पूरे दिन नेता लोग अपने लावा-लस्कर के साथे आवत रहे। पूरे गांव में बैनर पोस्टर लगत रहे। दिन भर भोपू बजत रहत रहे। अब तो सब चुपचाप आवत है और आपन शकल दिखाई के चल जात है। ‘
पुराने दिनों को याद करते हुए राम जितावन कहते हैं, ‘इंदिरा गांधी और अटल जी के समय में तो चुनाव त्योहार जैसन होत रहै। चुनावी मुद्दों के बारे में वह कहते हैं, ‘हम लोग के जीवन में केतना बदलाव आय है देख सकत हो। हा ई है कि गांव में बिजली है। लड़कन के पास फोन है। कई लोग के घर टीवी आई गय है। बाकी तो सब वैसे है। मेहनत मजदूरी से ही दो रोटी नसीब होत है।’
चौपाल में उपस्थित कुट्टुर (35)जो जाति से धोबी हैं, कहते हैं ‘हम लोगन कै सामने सबसे बड़ी दिक्कत है कि बिना पैसा दिये कोई काम नाई होत। इसीलिए हम लोग उन्हीं लोगन को वोट देइत है जो हम लोग के काम कराई देत है’। हालांकि वह यह भी कहते हैं कि ‘हम लोग जानित है कि आज के नेता लोग भरोसा करे लायक नाई हैं। ऊ लोग हम लोगन कै मूर्ख बनाई कै वोट लई लेत हैं।’
योजनाओं के लाभ पर यज्ञ राम (40) जो जाति से केवट है कहते हैं हम लोगन को बहुत पता तो नाई रहत की हम लोगन के लिए सरकार का कर रही है। गांव में जो थोड़े पढ़े-लिखे हैं वू बतावत है कि सरकार ने गरीबन के लिए कुछ किया है लेकिन जानत हो, बिना पैसा दिये कोई लाभ नाई मिलत है।
उसी गांव के ही सुनील यादव ( 27) जो दसवीं तक पढ़े हैं कहतेहैं सारी फसाद की जड़ भ्रष्टाचार है। यदि वह खत्म हो जाए तो हम सबकी जिदंगी खुशहाल हो जायेगी। लेकिन हमारी कौन सुनेगा। जब पुलिस बिना पैसे के कुछ नहीं करती तो हम और लोगों से क्या उम्मीद करें।
ऐसा ही नजारा दूसरों गांवों की चौपाल में देखने को मिला। बसंतापुर जहां केवट, मुस्लिम की आबादी ज्यादा है, कुसमौरा, दतूनी, रमवापुर में पंडितों की संख्या ज्यादा है। इसके अलावा इन गांवों में पासी जाति की भी ठीक-ठाक संख्या है। इन गांवों की फिजा में भी राजनीति घुली मिली है। उन्हें जमीनी मुद्दे मालूम और साथ में राजनीतिक दलों की रणनीति, लेकिन अधिकांश लोग वोट अपने विवेक से नहीं बल्कि जो काम कराता है उनके कहने से देते हैं।
इधर के गांवों में सबसे मजबूत स्थिति में ग्राम प्रधान है। ग्राम प्रधान के पास सारे वोट बंधक हैं। वो जिसे कहेगा वोट उसी को जायेगा। महिलाओं की स्थिति का आलम यह है कि घर के पुरुष जिसे कहेंगे वह उसे देंगी। जो थोड़े पढ़े-लिखे हैं उनकी सोच है जिससे लाभ मिलेगा उसे वोट मिलेगा। लाभ किस आशय में कहा गया है मतलब आप निकालिए।