जुबिली स्पेशल डेस्क
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की सियासत में लगातार बदलाव देखने को मिल रहा है। सारे विपक्षी एक हो गए है। हालांकि अखिलेश यादव की अब भी कोशिश है कि सारे विपक्षी एक होकर लोकसभा चुनाव लड़े लेकिन बसपा अलग ट्रैक पर चल रही है और उसने किसी पार्टी से गठबंधन नहीं किया है।
ऐसे में चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी बहुजन समाज पार्टी के खिसक रहे जनाधार का फायदा उठाना चाहती है। इसको लेकर उसने बड़ा प्लॉन तैयार किया है।
उसने पांच रा’यों के विधानसभा चुनाव में दो राजस्थान और मध्यप्रदेश में अपने प्रत्याशी उतारकर सबको चौंका डाला है। कई जानकारों की माने तो लोकसभा चुनाव से पहले जातीय समीकरण को मजबूत करने के लिए चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी ने ये कदम उठाया है।
वहीं लोकसभा चुनाव से पहले यूपी की 80 सीट को लेकर उसकी अलग तरह की रणनीति देखने को मिल रही है। दूसरी तरफ बसपा अब पहले से काफी कमजोर है और उसका वोट बैंक पहले जैसा नहीं रहा है।
मायावती अब राजनीति में उतनी सक्रिय नहीं जितनी पहले हुआ करती थी। इतना ही नहीं 2022 में चुनाव के बाद मायावती ने कोई बड़ी रैली तक नहीं की है।
चुनावी दंगल को लेकर उनका कोई फोकस नजर नहीं आ रहा है। दलित समुदाय के वोट बैंक भी बसपा से अब छिटकने का डर है। ऐसे में इसी वोट बैंक को अपने पाले में करने के लिए आजाद समाज पार्टी अपने पाले में करने के लिए पूरा फोकस कर रही है।
बता दें कि 2012 में सत्ता से बेदखल होने के बाद चुनावी प्रदर्शन में बसपा नाकाम रही है। पार्टी के कोर वोटबैंक भी कमजोर पड़ता हुआ नजर आ रहा है। चंद्रशेखर आजाद न केवल कांशीराम की सियासी विरासत को संभालने का दावा कर रहे हैं और उनकी पूरी नजर बसपा के मजबूत वोट बैंक पर है।