जुबिली स्पेशल डेस्क
ओम प्रकाश राजभर को Y श्रेणी की सुरक्षा मिलने की चर्चाओं के बीच यह बात अहम हो गई है कि क्या ओम प्रकाश राजभर का बीजेपी के साथ जाना तय हो गया है। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर के लिए वाई श्रेणी की सुरक्षा देने वाली चिट्ठी से जाहिर है कि ये फैसला 15 जुलाई को ही हो गया था। यह बात और है कि इसे करीब एक हफ्ते तक छिपाया गया। अब जबकि राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे आ चुके हैं और इस जीत में राजभर के समर्थन का भी सहयोग है, ये चर्चा जोर पकड़ने लगी है कि क्या वे एक बार फिर एनडीए का हिस्सा बन सकते हैं?
यह भी इत्तेफाक नहीं है कि 15 जुलाई को ही ओम प्रकाश राजभर ने प्रेस कांफ्रेंस करके ऐलान किया था राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करने जा रहे हैं। इसी प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने खुलासा किया था कि केंद्रीय गृहमंत्री से दिल्ली में उनकी मुलाकात हुई और उनसे बातचीत के बाद ही उन्होंने फैसला किया है। अब जबकि उसी दिन उन्हें वाई श्रेणी की सुरक्षा मिलने की चिट्ठी जारी हो गई तो यह समझा जा सकता है कि यह उसी बैठक में तय हुई डील का एक हिस्सा था। और अब ये सवाल हवा में है कि बीजेपी और राजभर के बीच और क्या क्या डील हुई है?
अब्बास अंसारी के लिए राजभर ने क्या मांगा?
ओमप्रकाश राजभर बेहद मुखर और जमीनी नेता माने जाते हैं। वे अपनी बात कह जाते हैं। उन्होंने यह भी बता दिया था कि अमित शाह से मुलाकात में अब्बास अंसारी के बारे में भी बात हो गई है और वे भी मुर्मू के समर्थन में वोट करेंगे। मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी उन्हीं की पार्टी के विधायक हैं। राजभर ने राष्ट्रपति के लिए वोटिंग वाले दिन ये भी बता दिया कि अब्बास अंसारी ने वोट क्यों नहीं दिया। राजभर की माने तो उन्होंने मीडिया को साफ-साफ बता दिया कि अब्बास अंसारी पर गैर जमानती वारंट की वजह से यही तय हुआ कि वे वोट नहीं करेंगे।
वारंट जारी होने के बावजूद उनके वोट करने को लेकर सवाल उठते या गिरफ्तारी हो जाती लिहाजा यही तय हुआ कि वे वोट नहीं करें। और उन्होंने यह भी साफ किया कि वोट न देने की रणनीति भी जानबूझकर लिया गया। और ये फैसला भी कहीं न कहीं एनडीए उम्मीदवार की मदद ही होती। अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या गृहमंत्रालय ने अब्बास अंसारी को भी किसी तरह की राहत देने का फैसला किया है? सवाल तो ये भी है कि क्या राजभर की कोशिशों से मुख्तार अंसारी को भी कुछ राहत मिल सकती है? यूपी की सियासत में आने वाले दिनों में ये सवाल प्रमुखता से उभरेंगे।
ओम प्रकाश राजभर का अगला कदम क्या होगा?
इन सवालों से इतर इस बात की चर्चा भी जोरों पर है कि क्या ओम प्रकाश राजभर एनडीए के साथ जाने का मन बना चुके हैं? वैसे 15 जुलाई के बाद कई टीवी इंटरव्यू में राजभर ये कह चुके हैं कि वे बहन जी यानी मायावती से बात करेंगे। सपा से खराब होते रिश्तों के बाद क्या वे किसी नए दल के साथ गठबंधन पर विचार कर सकते हैं? इस सवाल को राजभर ने बीएसपी के साथ जाने की संभावनाओं से जोड़ दिया था। उन्होंने कहा कि उनके लिए कांग्रेस भी एक रास्ता है। वे लगातार इस बात को दोहराते हैं कि उनके ताल्लुकात सभी दलों में हैं। वैसे माना ये भी जा रहा है कि एनडीए में सम्मानजनक वापसी के लिए दबाव बनाने की रणनीति के तहत राजभर ने बसपा और कांग्रेस के साथ जाने की संभावनाओं का हवामहल खड़ा किया है। बसपा में तो वह रह भी चुके हैं। मायावती के कामकाज के तौर तरीकों का विरोध जताते हुए ही उन्होंने पार्टी छोड़ी थी और अपनी पार्टी बनाई थी। ऐसे में बसपा के साथ जाने को लेकर कितनी संभावनाएं हैं, इसपर कई तरह के सवाल हैं। ऐसे में यह सवाल भी प्रमुख हो गया है कि वाई श्रेणी की सुरक्षा के साथ-साथ राजभर कई और मुद्दों पर आश्वासन के बाद ही बीजेपी के साथ डील को फाइनल करने की ओर बढ़ेंगे।
वैसे 15 जुलाई के बाद सामाजिक न्याय की चर्चा करते हुए राजभर अंबेडकर और लोहिया के साथ ही दीन दयाल उपाध्याय के सामाजिक न्याय की बातें भी जोड़ने लगे हैं। मुमकिन है आने वाले दिनों में बीजेपी के साथ राजभर के रिश्तों का रहस्य समाप्त हो जाएगा। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पर एसी में बैठकर राजनीति करने का तंज करने वाले राजभर ने फिलहाल उनके नवरत्नों पर निशाना साध रखा है। वे बार-बार अखिलेश यादव पर अपने नवरत्नों से घिरे होने का व्यंग्यबाण भी चलाते हैं और नवरत्नों के नाम भी उछालते हैं। ऐसे में सपा की ओर जाने वाली हर सड़क उनके लिए बंद दिखाई दे रही है।
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