न्यूज डेस्क
लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बाद नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी गठबंधन नई सरकार बनाने जा रही है। मोदी लहर के बीच बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले इस चुनाव में बड़ी जीत हासिल की है, लेकिन बड़ी जीत के साथ टीम मोदी के सामने बड़ी चुनौतियाँ भी होगी।
अब मोदी सरकार इनसे कैसे पार पाएगी, यह देखने वाली बात होगी। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए ने 2014 का भी रिकॉर्ड तोड़ते हुए 351 सीटें हासिल की हैं तो यूपीए सौ सीटों तक सिमट गई, जबकि अन्य के खाते में भी 91 सीटें आई हैं।
चुनाव में जीत के बाद मोदी कई मंचों से कह चुके हैं कि जितनी बड़ी जीत उतनी बड़ी चुनौती है। जनता के उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए मोदी ने एक बार फिर कमर कस ली है, लेकिन कुछ ऐसी चुनौतियां हैं, जिनका नरेंद्र मोदी सरकार को सामना करना पड़ेगा।
रोजगार
रोजगार के मुद्दे ने 2014 नरेंद्र मोदी को सत्ता दिलाई, लेकिन रोजगार संकट को लेकर विपक्ष लगातार उनपर हमलावर रहा। नई सरकार के सामने रोजगार बढ़ाने की बड़ी चुनौती होगी. देश में हर महीने 10 लाख से ज्यादा लोग रोजगार पाने की होड़ में आ जाते हैं, लेकिन उनमें से ज्यादातर लोगों को रोजगार नहीं मिलता। बेरोजगारी दर के आंकड़ों को लेकर नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन की कुछ महीने पहले लीक हुई रिपोर्ट के मुताबिक, 2017-18 में यह 6.1 फीसदी थी, जो 45 साल में सबसे ज्यादा है। यूपीए-2 के दौरान 2011-12 में यह 2.2 फीसदी थी। आर्थिक मंदी से रोजगार के नए अवसर कम पैदा होंगे।
धारा 370
लोकसभा चुनाव की रैलियों में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह खुलकर कह चुके हैं कि दोबारा बहुमत से सरकार बनी तो जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटेगा। यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार प्रदान करता है। संसद से पास कई कानून यहां लागू नहीं होते। लोकसभा चुनाव के नतीजों के आने के बाद बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद ने भी बयान दिया है कि सरकार बनाने के बाद धारा 370 और 35ए पर काम करेंगे।
जम्मू-कश्मीर के क्षेत्रीय दल कई बार कह चुके हैं कि धारा 370 से छेड़छाड़ करने पर घाटी सुलग उठेगी। कभी बीजेपी की सहयोगी रही पीडीपी मुखिया महबूबा मुफ्ती भी अंजाम भुगतने की धमकी दे चुकी हैं। संसद में प्रस्ताव लाकर बीजेपी अनुच्छेद 370 हटाने में कैसे सफल होगी, यह बड़ी चुनौती होगी।
जीडीपी
नई सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती आर्थिक विकास की है। वित्त मंत्रालय की एक रिपोर्ट में वित्त वर्ष 2019 में जीडीपी ग्रोथ के 7 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है। देखा जाए तो यह 2014 मोदी सरकार के बाद सबसे कम वृद्धि है। जबकि अक्तूबर-दिसंबर 2018 तिमाही में वृद्धि 6.6 फीसदी के साथ 6 साल के निचले स्तर पर चली गई थी। जनवरी-मार्च 2019 तिमाही के आंकड़े 31 मई को जारी किए जाएंगे जिसमें जीडीपी ग्रोथ के और फिसलने की आशंका जताई जा रही है।
विदेश नीति
नई सरकार के लिए विदेश नीति के मोर्चे पर चुनौतियां कम नहीं होंगी। अमेरिका में प्रतिष्ठित भारतीय विशेषज्ञों का मानना है कि रक्षा क्षेत्र में भारत और अमेरिका के रिश्तों में प्रगति हुई है, लेकिन व्यापार एवं आर्थिक मोर्चे पर तनाव बढ़ा है। ऐसे में घरेलू मोर्चे पर आर्थिक सुधारों में तेजी लानी होगी. संस्थाओं को भी मजबूती देनी होगी।
महंगाई
नई सरकार को बढ़ती महंगाई की चुनौती का सामना करना पड़ेगा। पिछले कुछ महीनों में कई खाद्य वस्तुओं की कीमतें लगातार बढ़ी हैं। पिछले दिनों न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के एक सर्वे में जानकारों ने यह बात मानी कि अप्रैल माह के लिए महंगाई दर बढ़कर छह महीने की ऊंचाई पर जा सकती है। सब्जियों-अनाज के दाम बढ़ रहे है। कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ना तय है। ईंधन की कीमतों के बढ़ने खाद्य वस्तुओं की कीमतें और बढ़ जाएंगी।
मॉब लिंचिंग
पिछले पांच सालों में देश के अंदर मॉब लिंचिंग जैसी घटनाएं बढ़ी हैं, जिसको लेकर मोदी समेत कई बड़े नेताओं ने चिंता भी जताई हैं। मोदी सरकार के सामने ये बड़ी चुनौती होगी की कैसे इन घटनाओं पर रोक लगे।
कश्मीर
नरेंद्र मोदी सरकार पिछले पांच साल में कोई ऐसी ठोस नीति नहीं बना सकी, जिससे घाटी में शांति लाई जा सके। पिछले वर्षों में पत्थरबाजी की घटनाओं में काफी इजाफा हुआ। यह दीगर है कि कश्मीर समस्या के हल के लिए मोदी सरकार ने सभी पक्षों से बातचीत की पहल की। इसके लिए खुफिया ब्यूरो के पूर्व निदेशक दिनेश्वर शर्मा को नियुक्त भी किया। मगर जरूरी रिजल्ट नहीं दिखे. कश्मीर की हालत वर्ष 2016 से और खराब हुई, जब एनकाउंटर में हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान मुजफ्फर वानी को मार गिराने के बाद हिंसक प्रदर्शनों का दौर शुरू हुआ. अलगाववादी और सेना का लगातार आमना-सामना होता रहा।
कमजोर मॉनसून
अगर मॉनसून कमजोर होता है तो ग्रामीण संकट और बदतर हो जाएगा. इसके अलावा, कम थोक महंगाई इस ओर इशारा करता है कि किसानों को उनके खाद्य उत्पादों की उचित कीमत नहीं मिल पा रही है। ऐसे में सरकार को इस संकट से पार पाने के लिए परिश्रम करना होगा।
इंफ्रास्ट्रक्चर
इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र पर मोदी सरकार ने काफी जोर दिया था। केयर रेटिंग की हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, अभी देश में कुल 1,424 प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। इनमें से 384 देरी से चल रहे हैं। इनकी कुल लागत 12.4 लाख करोड़ रुपये है। नई सरकार के लिए इनकी फंडिंग मुश्किल हो सकती है। बैंक लंबी अवधि के इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के लिए कर्ज नहीं देना चाहते। वित्त वर्ष 2017-18 में बैंकों का कुल बैड लोन 10.4 लाख करोड़ था। सरकार के लिए अपनी जेब से इनकी फंडिंग भी आसान नहीं होगी। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में भी नरमी देखी जा रही है।
राजस्व
अगली सरकार को राजस्व बढ़ाने के लिए काफी जोर लगाना होगा। ऐसे समय में जब अर्थव्यवस्था पर मंदी का खतरा है और जीएसटी सुधार की प्रक्रिया में है, अगली सरकार को रेवेन्यू कलेक्शन बढ़ाने के लिए संघर्ष करना होगा ताकि नकदी बांटने की योजना को चला सके।