जुबिली न्यूज़ ब्यूरो
लखनऊ. उत्तर प्रदेश विधानसभा के मौजूदा विधायकों में से 45 विधायकों की मुश्किलें बढ़ती दिखाई दे रही हैं. एसोसियेशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म (ADR) और यूपी इलेक्शन वाच ने वर्ष 2017 में चुने गए 396 विधायकों के शपथपत्रों का विश्लेषण किया है. इनमें से 45 ऐसे विधायक हैं जिन पर लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8 (1), (2), और (3) के तहत न्यायालय ने इनके खिलाफ आरोप तय कर दिए हैं.
आरोप तय हो जाने के बाद की स्थितियों की समीक्षा करें तो हम यह पायेंगे कि जो विधायक धारा 8 (1) के अंतर्गत आते हैं, उन्हें दोषी ठहराए जाने पर वह अयोग्य घोषित हो जायेंगे. जो धारा 8 (2) के अंतर्गत आते हैं वह कम से कम छह महीने की सज़ा के साथ दोषी ठहराए जाने पर अयोग्य घोषित हो जायेंगे, और जो विधायक धारा 8 (3) के अंतर्गत आते हैं वह दो साल से कम की सज़ा के साथ दोषी ठहराए जाने पर अयोग्य घोषित हो जायेंगे.
जनप्रतिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 में संसद के किसी भी सदन के सदस्य के साथ-साथ विधानसभा या विधानपरिषद के सदस्य के रूप में होने और चुने जाने वाले व्यक्तियों के लिए अयोग्यता का प्रावधान है. अधिनियम की धारा 8 की उप-धाराएं (1), (2) और (3) में यह प्रावधान है कि इनमें से किसी भी उपधारा में उल्लिखित अपराध के लिए दोषी व्यक्ति को दोषसिद्धि की तारीख से अयोग्य किया जाएगा और उसकी रिहाई के छह साल बाद तक की अवधि के लिए वह अयोग्य बना रहेगा.
धारा 8(1), (2) और (3) के तहत सूचीबद्ध अपराध गंभीर/भयानक/जघन्य प्रकृति के हैं और भारतीय दंड संहिता, 1860(आईपीसी) के तहत हत्या, बलात्कार, डकैती, लूट, अपहरण, महिलाओं के ऊपर अत्याचार, रिश्वत, अनुचित प्रभाव, धर्म, नस्ल, भाषा, जन्म स्थान के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शुत्रता जैसे अपराध शामिल हैं.
इसमें भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग, उत्पादन/विनिर्माण/खेती, कब्जा, बिक्री, खरीद, परिवहन, भंडारण और/या किसी भी नशीली दवा या मनःप्रभावी पदार्थ के सेवन से संबंधित अपराध एफईआरए 1973 से संबंधित अपराध, जमाखोरी और मुनाफाखोरी से संबंधित अपराध, भोजन और दवाओं में मिलावट, दहेज आदि से संबंधित अपराध भी शामिल हैं.
इसके अलावा, धारा 8 में उन सभी अपराधों को भी शामिल किया गया है जहां एक व्यक्ति को दोषी ठहराया जाता है और कम से कम दो साल के कारावास की सजा सुनाई जाती है.
शपथपत्र में 45 विधायकों ने आपराधिक मामले घोषित किए हैं, जिनके ऊपर आर.पी. अधिनियम 1951 की धारा 8(1), (2) और (3) के तहत आरोप तय किए गए हैं. इनमें बीजेपी के सबसे अधिक 32 विधायक, समाजवादी पार्टी के पांच, और बीएसपी व अपना दल (एस) के तीन-तीन विधायकों ने अपने ऊपर आपराधिक मामले घोषित किए हैं. जिनके ऊपर आर.पी. अधिनियम 1951 की धारा 8(1), (2) और (3) के तहत आरोप तय किए गए हैं.
45 विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित रहने की औसत संख्या 13 वर्ष है. 32 विधायकों के खिलाफ दस साल या उससे अधिक समय से कुल 63 आपराधिक मामले लंबित हैं.
जिन विधायकों पर 20 से अधिक वर्षों से मामले लंबित हैं. जिनमें पहले स्थान पर बीजेपी के मरिहन निर्वाचन क्षेत्र से रमाशंकर सिंह, दूसरे स्थान पर बीएसपी के मऊ से मुख्तार अंसारी और तीसरे स्थान पर बीजेपी के धामपुर से अशोक कुमार राना हैं.
10 अगस्त 2021 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 13 फरवरी 2020 और 25 सितंबर 2018 के सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का पालन नहीं करने के लिए बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में चुनाव लड़ने वाले 10 राजनीतिक दलों को दंडित किया. जिन्होंने राजनीतिक दलों को निर्देश दिया था कि वे अपने सोशल मीडिया प्लेटफॅार्म सहित अपनी वेबसाइट पर 72 घंटों के भीतर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के चयन करने के कारणों को सूचीबद्व करें.
नरम रुख अपनाते हुए राजनीतिक दलों पर एक लाख से पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया. क्योंकि राजनीतिक दल सर्वोच्च न्यायालय और अन्य मुख्य हितधारकों के बार-बार याद दिलाने के बावजूद सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन करने में विफल रहे थे. वास्तव में चुनाव जीतने के अपने एकमात्र उदेश्य के साथ, राजनीतिक दलों ने जानबूझकर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले ऐसे दागी उम्मीदवार को मैदान में उतारा था और प्रतिभा, सत्यनिष्ठा, योग्यता और उपलब्धियों जैसे सहभागी लोकतंत्र में आवश्यक महत्वपूर्ण साख की अनदेखी की गयी थी.
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